
सोना फिर छू रहा आसमान: दीपावली में चमक बरकरार, लेकिन मध्यमवर्ग को सावधानी जरूरी
2008 की सोने की ऐतिहासिक तेजी - जब मंदी में ‘सेफ हेवन’ बना सोना,2013 की गोल्ड क्रैश - जब चमक अचानक फीकी पड़ी
- सुशांत श्रीवास्तव / आशुतोष गुप्ता
2025 के इस त्योहारी मौसम में सोना एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है। घरेलू बाजारों में इसका भाव नए रिकॉर्ड स्तरों पर पहुँच गया है। सोमवार को एमसीएक्स पर सोना 24 कैरेट 1,20,900 प्रति 10 ग्राम तक चला गया। इससे पहले कभी भी भारतीय बाजार में सोने ने इतना ऊँचा स्तर नहीं छुआ था। दीपावली के पहले हफ्ते में जैसे-जैसे त्योहारी खरीदारी तेज़ हो रही है, दुकानों पर भीड़ दिखने लगी है, लेकिन साथ ही बढ़ती कीमतों ने आम लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर यह बढ़ोतरी कब तक चलेगी और क्या इस समय सोना खरीदना वाकई समझदारी है।
वैश्विक बाजारों में भी इसी तरह की चमक देखी जा रही है। डॉलर में कमजोरी, ब्याज दरों में स्थिरता और मध्य पूर्व में बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव ने निवेशकों को फिर से सोने की ओर मोड़ा है। सोना एक बार फिर से वही पुरानी भूमिका निभा रहा है – जब दुनिया में अनिश्चितता होती है तो निवेशक सुरक्षित पनाह के तौर पर सोना ही खरीदते हैं। यही वजह है कि पिछले एक साल में सोने के दामों में लगातार तेजी बनी हुई है। भारत जैसे देशों में जहाँ यह सिर्फ निवेश नहीं, बल्कि परंपरा और आस्था का प्रतीक भी है, वहाँ इस तेजी का असर हर घर तक पहुँच रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा तेजी सिर्फ भावनात्मक या त्योहार आधारित नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई गहरे आर्थिक कारण हैं। अमेरिकी अर्थव्यवस्था के धीमेपन, यूरोप और एशिया के बाजारों में मंदी के संकेत, और डॉलर की कमजोरी ने सोने की मांग बढ़ा दी है। विश्व स्वर्ण परिषद (World Gold Council) की नवीनतम रिपोर्ट बताती है कि इस वर्ष की दूसरी तिमाही में वैश्विक स्तर पर सोने की मांग 1,249 टन तक पहुँच गई, जो पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 3 प्रतिशत अधिक है। मूल्य के हिसाब से यह 45 प्रतिशत की उछाल दर्शाती है। इसका मतलब साफ है – दुनिया के बड़े निवेशक, केंद्रीय बैंक और आम लोग सभी सोने में भरोसा दिखा रहे हैं।
भारत में भी स्थिति कुछ अलग नहीं है। यहाँ दीपावली और धनतेरस का त्योहार हमेशा से स्वर्ण खरीदारी के लिए शुभ माना जाता है। लेकिन इस बार बाजार का मिज़ाज पहले जैसा सहज नहीं है। दिल्ली, मुंबई, जयपुर और चेन्नई जैसे प्रमुख बाजारों में दुकानदारों का कहना है कि इस साल ग्राहक हैं तो सही, पर हर खरीद से पहले लंबी बातचीत हो रही है। लोग वजन घटा रहे हैं, डिज़ाइन बदल रहे हैं, और कई ग्राहक तो पुराना सोना बेचकर नया खरीद रहे हैं।
वाराणसी के जौहरी अनिल कुमार जैन ने बताया, “ग्राहक आ रहे हैं, लेकिन सोच-समझ कर खरीदारी कर रहे हैं। पहले जहाँ कोई 50 ग्राम लेता था, अब 25 या 30 ग्राम पर रुक जाता है। कीमतें इतनी ऊँची हैं कि मध्यमवर्गीय परिवार अब निवेश से ज्यादा आस्था के कारण खरीदारी कर रहा है।” सोने के इस रिकॉर्ड भाव के पीछे डॉलर की कमजोरी एक बड़ा कारण है। अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिज़र्व द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी रोकने के संकेतों के बाद डॉलर इंडेक्स गिरा है। डॉलर कमजोर होते ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोना निवेशकों के लिए आकर्षक हो जाता है। इसके अलावा चीन, रूस और तुर्की जैसे देशों के केंद्रीय बैंक अपने विदेशी मुद्रा भंडार में बड़ी मात्रा में सोना जोड़ रहे हैं। इससे वैश्विक मांग और बढ़ी है। वहीं भारत में रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर हुआ है, जिससे आयातित सोना और महँगा पड़ रहा है।
इस बीच, विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले महीनों में सोने की कीमतों में और 5 से 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह $4,000 प्रति औंस तक जा सकता है। गोल्डमैन सैक्स और जे.पी. मॉर्गन जैसे संस्थानों ने 2026 तक सोने के लिए नया उच्च लक्ष्य तय किया है। लेकिन चेतावनी भी दी जा रही है – यदि अमेरिकी अर्थव्यवस्था तेजी से उबरती है या ब्याज दरों में फिर बढ़ोतरी होती है, तो सोने में अस्थायी गिरावट संभव है। ऐसे में जिन्होंने ऊँचे दाम पर सोना खरीदा है, उन्हें कुछ समय तक इंतजार करना पड़ सकता है।
भारत के संदर्भ में वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल का अनुमान है कि वर्ष 2025 में देश में सोने की कुल मांग लगभग 600–700 टन रहेगी, जो पिछले पाँच वर्षों में सबसे कम है। इसकी वजह साफ है – कीमतें इतनी ऊँची हैं कि सामान्य उपभोक्ता के लिए बड़ी खरीदारी करना मुश्किल हो गया है। हालांकि शहरी क्षेत्रों में निवेशक वर्ग अब “डिजिटल गोल्ड” या “गोल्ड ETF” की ओर झुकाव दिखा रहा है। इससे आभूषण मांग में कमी आई है, लेकिन निवेश मांग अब भी मजबूत बनी हुई है।
दीपावली के मौसम में सोने की खरीदारी हमेशा भावनाओं से जुड़ी होती है। लोग मानते हैं कि इस दिन सोना खरीदना शुभ होता है। पर इस बार भावनाओं के साथ विवेक भी ज़रूरी है। बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि “शुभ मुहूर्त” का मतलब सिर्फ खरीदना नहीं है, बल्कि सही दाम पर सही निर्णय लेना भी है। इस समय की ऊँचाई पर खरीदना, खासकर सीमित आय वाले परिवारों के लिए, वित्तीय जोखिम बन सकता है।
वित्तीय सलाहकारों का मानना है कि मध्यमवर्गीय परिवारों को इस समय एकमुश्त खरीदारी से बचना चाहिए। यदि खरीदना ही हो तो छोटी मात्रा में, किस्तों में या सोने के फंड्स के ज़रिए खरीदें। यह रणनीति “डिप पर खरीद” (Buy on dips) की तरह काम करेगी – यानी जब बाजार थोड़ी गिरावट दिखाए, तब धीरे-धीरे निवेश बढ़ाएँ।
दिल्ली स्थित एक निवेश विशेषज्ञ ने कहा, “सोना निवेश के लिए अच्छा विकल्प है, लेकिन इसे लालच से नहीं, सुरक्षा की सोच से खरीदें। मध्यमवर्गीय परिवारों को यह नहीं भूलना चाहिए कि सोना ब्याज नहीं देता, और यदि अचानक नकदी की जरूरत पड़े, तो बेचने पर नुकसान भी हो सकता है।” उन्होंने कहा कि हर निवेशक को अपनी कुल संपत्ति का अधिकतम 10 प्रतिशत हिस्सा ही सोने में रखना चाहिए।
जहाँ तक दीपावली बाजार का सवाल है, इस बार दुकानदार उम्मीद कर रहे हैं कि त्योहारी सप्ताह में बिक्री में लगभग 20–25 प्रतिशत की वृद्धि होगी। हालांकि यह वृद्धि पिछले सालों की तुलना में कम मानी जा रही है। बाजार में मांग बनी हुई है लेकिन अधिकतर ग्राहक सावधानी बरत रहे हैं। कई लोग पुराने गहनों को एक्सचेंज करके नया ले रहे हैं ताकि जेब पर अतिरिक्त भार न पड़े। खुदरा बाजारों में भीड़ बढ़ी है, मगर खरीदारों का मूड “संतुलित” है – भावनाएँ तो हैं, पर विवेक भी उतना ही हावी है।
सोने की यह रैली भारतीय बाजार के लिए दोहरी स्थिति लेकर आई है। एक तरफ व्यापारी खुश हैं कि भाव ऊँचे हैं और कारोबार बढ़ रहा है, वहीं खरीदारों के लिए यह चुनौती का समय है। उच्च कीमतों के कारण विवाह सीजन की बड़ी खरीद पर भी असर पड़ सकता है। छोटे शहरों और कस्बों में जौहरी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि दीपावली के बाद भी निवेशक वर्ग कुछ खरीदारी करेगा, क्योंकि आम धारणा यही है – “सोना चाहे कितना भी महँगा हो, कभी घाटे का सौदा नहीं होता।”
हालांकि इस सोच को आँख मूँदकर अपनाना खतरनाक हो सकता है। इतिहास बताता है कि जब भी सोना अत्यधिक तेजी पर पहुँचता है, कुछ महीनों बाद सुधार (correction) अवश्य आता है। 2013 की तरह अचानक गिरावट भले न हो, पर यदि वैश्विक बाजारों में स्थिरता लौटी, तो सोना कुछ हज़ार रुपये तक नीचे आ सकता है। इसलिए विशेषज्ञ सलाह दे रहे हैं कि मध्यमवर्गीय परिवार भावनाओं में बहकर निवेश न करें। अगर उद्देश्य सिर्फ त्योहार मनाना है तो प्रतीकात्मक मात्रा में खरीदारी करें, और यदि निवेश करना है तो लंबी अवधि का दृष्टिकोण अपनाएँ।
दीपावली पर बाज़ारों में रोशनी जरूर रहेगी, पर इस बार चमक के साथ चिंता भी है। दुकानों पर ग्राहकों की भीड़, बाजार में उत्साह, और सोशल मीडिया पर सोने की रिकॉर्ड कीमतों की चर्चा – सब कुछ मिलकर इस त्योहारी माहौल को खास बना रहा है। लेकिन हर खरीदार के मन में यह सवाल भी है कि क्या सोने की यह चमक आने वाले महीनों में भी बरकरार रहेगी। विश्लेषक मानते हैं कि 2025 के अंत तक सोना 1,25,000 प्रति 10 ग्राम तक जा सकता है, लेकिन यह इस बात पर निर्भर करेगा कि डॉलर, ब्याज दर और वैश्विक तनाव किस दिशा में बढ़ते हैं। दीर्घकाल में इसकी नींव मजबूत दिखती है, पर अल्पकाल में अस्थिरता बनी रहेगी।
भारतीय संस्कृति में सोना सिर्फ धातु नहीं, आस्था और स्थायित्व का प्रतीक है। लेकिन समय यही कह रहा है कि चमक के साथ समझदारी भी जरूरी है। मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए यह संदेश अब पहले से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है -“हर त्योहार पर सोना जरूरी नहीं, सुरक्षा और संतुलन अधिक जरूरी है।”
2008 की सोने की ऐतिहासिक तेजी – जब मंदी में ‘सेफ हेवन’ बना सोना
2008 का साल दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए काला अध्याय साबित हुआ। अमेरिका की बड़ी वित्तीय कंपनियाँ – Lehman Brothers, Merrill Lynch, AIG – एक-एक कर ढहने लगीं। शेयर बाज़ारों में कोहराम मचा और डॉलर की साख गिरने लगी। ऐसे संकट के दौर में दुनिया भर के निवेशकों ने सुरक्षित विकल्प की तलाश शुरू की, और नज़रें सोने पर टिक गईं। यही वह क्षण था जब सोना ‘सेफ हेवन’ (Safe Haven) कहलाया।
2007 में अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का भाव करीब $650 प्रति औंस था। अगले ही वर्ष यह $1,000 के पार पहुँच गया। भारत में भी सोना 2007 के लगभग 9,000 प्रति 10 ग्राम से उछलकर 12,000 के ऊपर चला गया। यह वृद्धि सिर्फ कीमतों की नहीं थी, बल्कि भरोसे की भी थी – एक ऐसा भरोसा, जिसने सोने को आने वाले दशक का सबसे स्थिर निवेश बना दिया।
इस दौर में कच्चे तेल की कीमतें भी रिकॉर्ड स्तर पर थीं और मुद्रास्फीति बढ़ रही थी। डॉलर की कमजोरी, बैंकों की असफलता और अर्थव्यवस्थाओं की गिरावट ने सोने को सबसे सुरक्षित आश्रय बना दिया।2008–2011 के बीच सोने की कीमत लगभग तीन गुना हो गई और 2011 में यह 20,000 प्रति 10 ग्राम से भी आगे निकल गया।
इसलिए आज जब भी निवेशक सोने की “लॉन्ग टर्म स्टेबिलिटी” की बात करते हैं, वे 2008 को याद करते हैं – जब पूरी दुनिया संकट में थी, पर सोना हर पोर्टफोलियो की ढाल बन गया था।
2013 की गोल्ड क्रैश – जब चमक अचानक फीकी पड़ी
अप्रैल 2013, वो हफ्ता जब सोना अचानक धराशायी हो गया।सालों की लगातार तेजी के बाद निवेशकों ने अचानक बिकवाली शुरू कर दी।अमेरिका से संकेत मिले कि उसकी अर्थव्यवस्था सुधार पर है और फेडरल रिज़र्व “क्वांटिटेटिव ईज़िंग” (QE) यानी पैसा छापने की नीति खत्म करने जा रहा है।यह खबर आते ही दुनिया भर में सोने के फंड्स और ETF से भारी निकासी शुरू हो गई।सिर्फ दो दिनों में सोने की अंतरराष्ट्रीय कीमत $1,560 से गिरकर $1,330 प्रति औंस रह गई।
भारत में इसका असर सीधा दिखाई दिया – दिल्ली सर्राफा बाजार में भाव 31,000 से लुढ़ककर ₹25,800 प्रति 10 ग्राम तक जा पहुँचा। यह उस समय तक की सबसे तेज़ दो-दिवसीय गिरावट थी, जिसने निवेशकों को चौंका दिया।भारत में उस समय सरकार ने चालू खाते के घाटे को कम करने के लिए सोने के आयात पर ड्यूटी बढ़ाई थी।डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो चुका था, और बाजार में घबराहट फैल गई।कई लोगों ने नुकसान काटकर सोना बेचा, तो कई नए खरीदारों ने इस मौके को “सस्ते दाम पर सोना खरीदने” के अवसर की तरह देखा।
इस गिरावट के बाद बाजार को स्थिर होने में लगभग एक साल लगा।2014 तक भाव फिर 28,000 के आसपास लौटे, लेकिन “2013 की गोल्ड क्रैश” निवेशकों को हमेशा याद रही -एक सबक के तौर पर कि सोना भी हमेशा सिर्फ ऊपर नहीं जाता।
तालिका —
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