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“प्रकाश की ओर बढ़ता जीवन : कार्तिक मास कब से है, जानिए विस्तार से”

“कार्तिक मास का आरंभ हो चुका है। यह महीना स्नान, दान, व्रत और दीपदान का अद्भुत संगम है। आकाशदीप का दान पितरों के उद्धार और जीवन में प्रकाश का प्रतीक माना जाता है। इस मास में भगवान विष्णु के दामोदर रूप, माँ लक्ष्मी, तुलसी माता और शालिग्राम की विशेष पूजा होती है। गंगा स्नान, तुलसी पूजन और संध्या दीपदान करने से पापों का नाश, पुण्य की प्राप्ति और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। कार्तिक मास धर्म, भक्ति और आध्यात्मिक उन्नति का महीना है - जो हमें सिखाता है कि अंधकार कितना भी गहरा क्यों न हो, एक दीप हमेशा उसे मिटा सकता है।”

  • ज्योतिर्विद रमन जी की विशेष रिपोर्ट

वाराणसी : गंगा किनारे दीपों की कतारें, हवा में तिल के तेल की सुगंध, मंदिरों में संध्या आरती की झंकार, और हर गली में ‘हरि बोल’ की गूँज – यह दृश्य संकेत दे रहा है कि अब आ गया है कार्तिक मास, वर्ष का सबसे पुण्य महीना। यह वह समय है जब प्रकृति, श्रद्धा और प्रकाश एक सूत्र में बंध जाते हैं। कहा जाता है – “कार्तिकं नाम मासानां, पुण्यानां चोत्तमं स्मृतम्।” अर्थात् – बारह महीनों में कार्तिक सबसे पवित्र और शुभ महीना है। यह महीना न केवल देवताओं की पूजा का काल है, बल्कि आत्मा की शुद्धि, पाप-क्षालन, दान, स्नान और भक्ति का पर्व है। भक्त इस मास में कहते हैं – “दीप जलाना मात्र एक क्रिया नहीं, यह अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है।”

कार्तिक मास कब से आरंभ होता है

भारतीय पंचांग के अनुसार कार्तिक मास आश्विन पूर्णिमा के अगले दिन, अर्थात् कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ होता है। इस मास की समाप्ति कार्तिक पूर्णिमा के दिन होती है।चंद्र-सौर गणना के अनुसार यह मास अक्टूबर से नवंबर के बीच पड़ता है। उदाहरण के रूप में – 2025 में कार्तिक मास का आरंभ अक्टूबर के तीसरे सप्ताह से होगा और इसका समापन नवंबर के मध्य में कार्तिक पूर्णिमा पर होगा।

हिंदू धर्म के पंचांग में कहा गया है कि: “कृष्ण प्रतिपदा से आरम्भः कार्तिकस्य महीममः।” यानी कार्तिक मास का शुभारंभ तब माना जाता है जब चंद्रमा घटने की दिशा में, यानी कृष्ण पक्ष प्रारंभ हो जाता है।

कार्तिक मास का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

भारत की धार्मिक परंपराओं में चार महीने – आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद और आश्विन – “चातुर्मास” कहलाते हैं। इन चार महीनों में भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं। कार्तिक मास इन चार महीनों का समापन करता है।कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवउठनी एकादशी) के दिन भगवान विष्णु अपनी निद्रा से जागते हैं। इसलिए यह महीना विष्णु जागरण मास कहलाता है।यह वह समय है जब – देवताओं की पूजा पुनः प्रारंभ होती है,विवाह संस्कार शुरू होते हैं,लोक जीवन में मंगल कार्य आरंभ किए जाते हैं। कार्तिक मास का प्रत्येक दिन दान, दीपदान, व्रत और भक्ति के लिए समर्पित होता है। यही कारण है कि इस मास को “धर्म, भक्ति और ज्ञान का संगम काल” कहा गया है।

इस माह में किसकी पूजा करनी चाहिए

भगवान विष्णु (विशेषतः श्री दामोदर रूप) कार्तिक मास भगवान विष्णु को समर्पित है। ‘दामोदर’ रूप में विष्णु की आराधना की जाती है – यह वह रूप है जब माता यशोदा ने बालकृष्ण को ऊखल से बांधा था। श्रीमद्भागवत में वर्णन आता है कि कार्तिक मास में भगवान श्रीकृष्ण ने यमलार्जुन वृक्ष उद्धार किया था। इसलिए कार्तिक मास “दामोदर मास” भी कहलाता है।

भक्त इस मास में प्रतिदिन यह मंत्र बोलते हैं – “नमामि दामोदरं भक्तिपादं।”

माता लक्ष्मी

यह महीना दीपमालिका का महीना है। दीप जलाने का उद्देश्य केवल रोशनी करना नहीं, बल्कि लक्ष्मी का स्वागत करना भी है। दीपावली इसी मास में आती है – इसलिए माँ लक्ष्मी की विशेष पूजा भी की जाती है।

तुलसी माता

कार्तिक मास में तुलसी पूजन अत्यंत फलदायी माना गया है। तुलसी विवाह (कार्तिक शुक्ल एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक) इसी महीने होता है। तुलसी के पौधे में भगवान विष्णु का वास माना जाता है। इसलिए तुलसी पूजन और तुलसी जल अर्पण को इस मास में बहुत शुभ माना गया है।

श्री शालिग्राम भगवान

शालिग्राम शिला की पूजा कार्तिक मास में अत्यधिक पुण्यदायी कही गई है। कहा गया है कि -“शालिग्राम शिला का पूजन कार्तिक में करने वाला भक्त जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होता है।”

पितरों की आराधना

कार्तिक मास में आकाशदीप दान पितरों के उद्धार के लिए किया जाता है। कहा गया है कि -“जो व्यक्ति कार्तिक मास में दीपदान करता है, उसके पितर प्रसन्न होकर स्वर्गगामी होते हैं।”

कार्तिक मास की पौराणिक कथा

एक प्राचीन कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक धर्मनन्द नामक राजा था। राजा ने अपने जीवन में कई पुण्यकर्म किए, लेकिन उसके पितर नरक में यातना भोग रहे थे। राजा ने ऋषि से उपाय पूछा। ऋषि ने कहा – “हे राजन्, कार्तिक मास आने वाला है। इस मास में दीपदान करो। आकाश में दीप जलाओ। वह दीप तुम्हारे पितरों तक प्रकाश पहुँचाएगा।” राजा ने वही किया। उसने अष्टदल कमल आकार के दीप बनाए, उनमें तिल का तेल भरा, और हर संध्या को आकाशदीप प्रज्वलित किया। कहा जाता है कि उसी क्षण उसके पितर नरक से मुक्त होकर दिव्य लोक को प्राप्त हुए।

इसलिए कहा गया – “आकाशदीपं दत्त्वा यः श्रद्धया नरः। पितृभ्यः प्रददाति लोकं, विष्णुलोकं स गच्छति॥” यानी – जो व्यक्ति आकाशदीप श्रद्धा से अर्पित करता है, वह स्वयं विष्णुलोक को जाता है और अपने पितरों को भी दिव्य गति देता है।

आकाशदीप क्यों करना चाहिए

आकाशदीप, यानी ऐसा दीपक जो घर की छत, मंदिर की ऊँचाई, या आँगन में ऊँचे स्थान पर जलाया जाता है। यह दीप “आकाश में दीपित ज्योति” के समान है, जो देवताओं, पितरों और विश्व-शक्ति को समर्पित की जाती है।

आकाशदीप का प्रतीकात्मक अर्थ

1. अंधकार से प्रकाश की यात्रा: यह दीप बताता है कि जीवन में जब अंधकार फैला हो, तब भी एक छोटा सा दीप सम्पूर्ण ब्रह्मांड को आलोकित कर सकता है।

2. पितरों के उद्धार का माध्यम:कहा गया है कि इस दीप का प्रकाश आकाशमार्ग से पितृलोक तक पहुँचता है और पितर तृप्त होकर आशीर्वाद देते हैं।

3. धर्म और भक्ति की दीर्घायु:आकाशदीप बताता है कि भक्ति का प्रकाश कभी बुझना नहीं चाहिए।

4. दैवी शक्तियों का आह्वान:दीप केवल प्रकाश नहीं देता, बल्कि वातावरण को दिव्यता से भर देता है।

आकाशदीप का दार्शनिक संदेश

आकाशदीप वह दीपक है जो “ऊँचाई” पर जलता है। इसका अर्थ है कि – हमारी भक्ति और आस्था को भी ऊँचा उठना चाहिए। जैसे यह दीप अंधकार से ऊपर होता है, वैसे ही हमारा मन सांसारिक मोह से ऊपर उठकर ईश्वर की ज्योति से जुड़ना चाहिए।

वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्व

तिल के तेल का दीपक वातावरण को शुद्ध करता है।दीपक की लौ मानसिक शांति और ध्यान के लिए लाभदायक है। सूर्यास्त के बाद दीप जलाना जैविक लय (biological rhythm) को संतुलित करता है।

आकाशदीप कैसे करें

सामग्री: 1 मिट्टी या पीतल का दीपक ,तिल का तेल,कपास की बत्ती ,छोटा स्टैंड या ऊँचा स्थान ,पुष्प, जल, अक्षत, गंध, दीपदान मंत्र

विधि:

1. संध्या समय स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. घर की छत या आँगन के ऊँचे स्थान पर दीपक रखें।
3. दीप में तिल का तेल भरें और बत्ती रखें।
4. दीप प्रज्वलित करते समय यह मंत्र कहें – “दामोदराय विश्वाय नमो व्योमदीपाय हरये नमः।”
5. दीप भगवान विष्णु और अपने पितरों को समर्पित करें।
6. दीप के नीचे तुलसी का पौधा रखना अत्यंत शुभ माना गया है।

कार्तिक मास में विशेष स्नान, व्रत और दान

1. कार्तिक स्नान: सूर्योदय से पहले पवित्र जल में स्नान करना चाहिए। यदि गंगा, यमुना या किसी तीर्थ पर स्नान संभव न हो, तो घर में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।

2. दीपदान:प्रत्येक संध्या को घर, मंदिर या नदी किनारे दीप जलाना चाहिए।

3. तुलसी पूजन: प्रतिदिन तुलसी पर जल चढ़ाएँ और दीपक जलाएँ।

4. दान:अन्न, वस्त्र, तिल, दीप, और गौदान कार्तिक में अत्यंत शुभ होता है।

5. व्रत:कार्तिक पूर्णिमा तक हर सोमवार या एकादशी व्रत रखना श्रेष्ठ माना गया है।

संध्या दीपदान और तुलसी विवाह

कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहते हैं।इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं।इस दिन से लेकर पूर्णिमा तक तुलसी विवाह का आयोजन होता है।तुलसी विवाह को लक्ष्मी-नारायण विवाह भी कहा गया है।इस समय दीपदान करना, तुलसी की आरती करना, और संध्या में आकाशदीप जलाना विशेष फलदायी माना गया है।

कार्तिक मास में मिलने वाले लाभ

1. पापों का नाश और आत्मशुद्धि
2. रोग, क्लेश और भय से मुक्ति
3. पितरों की तृप्ति और आशीर्वाद
4. धन-समृद्धि और लक्ष्मी की कृपा
5. मोक्ष और ईश्वर से निकटता
6. वैवाहिक जीवन में स्थिरता
7. मन की शांति और आध्यात्मिक आनंद

इस मास के विशेष उपाय

1. प्रतिदिन सूर्योदय से पहले स्नान करें।
2. तुलसी पर जल चढ़ाकर दीप जलाएँ।
3. हर संध्या को कम से कम एक दीप जलाएँ।
4. सोमवार, गुरुवार और एकादशी को उपवास रखें।
5. गरीब, गौशाला या मंदिर में अन्न-दान करें।
6. कार्तिक पूर्णिमा को गंगा स्नान अवश्य करें।
7. हरि नाम, राम नाम या विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।

कार्तिक मास केवल धार्मिक महीना नहीं, बल्कि जीवन दर्शन है। यह महीना सिखाता है कि -“अंधकार कितना भी घना क्यों न हो, एक दीपक हमेशा उसे मिटाने की शक्ति रखता है।”

यह महीना आत्मा की यात्रा का प्रतीक है -जहाँ भक्ति का दीप, आस्था का तेल और श्रद्धा की बत्ती मिलकर प्रकाश फैलाते हैं।जो व्यक्ति इस मास में स्नान, दान, दीपदान, पूजा और ध्यान करता है – वह केवल पुण्य नहीं, बल्कि प्रकाशमय जीवन प्राप्त करता है। “कार्तिक मास हमें याद दिलाता है -ईश्वर कहीं बाहर नहीं, वह उसी दीप में है जिसे हम श्रद्धा से जलाते हैं।” 

कार्तिक मास (8 अक्टूबर–5 नवम्बर 2025) – प्रमुख व्रत व त्योहार

* 8 अक्टूबर (बुध): कार्तिक मास स्नान
* 10 अक्टूबर (शुक्र): करवाचौथ
* 17 अक्टूबर (शुक्र): रमा एकादशी व्रत
* 18 अक्टूबर (शनि): प्रदोष व्रत, धन्वंतरी जयंती
* 19 अक्टूबर (रवि): हनुमान जयंती (कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी)
* 20 अक्टूबर (सोम): दीपावली (अमावस्या)
* 22 अक्टूबर (बुध): गोवर्धन पूजा, अन्नकूट
* 23 अक्टूबर (गुरु): भैयादूज, चित्रगुप्त पूजन
* 25 अक्टूबर (शनि): सूर्यषष्ठी/छठ की शुरुआत
* 27 अक्टूबर (सोम): छठ व्रत (संध्या अर्घ्य)
* 28 अक्टूबर (मंगल): छठ व्रत पारण (प्रातः अर्घ्य)
* 30 अक्टूबर (गुरु): अन्नपूर्णा अष्टमी, दुग्धाष्टमी और गोपाष्टमी
* 2 नवम्बर (रवि): देव प्रबोधिनी एकादशी
* 5 नवम्बर (बुध): कार्तिक पूर्णिमा, देव दीपावली

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