कैलाश सत्यार्थी की किताब ‘तुम पहले क्यों नहीं आए’ का लोकार्पण
नई दिल्ली । ‘तुम पहले क्यों नहीं आए’ में दर्ज हर कहानी अंधेरों पर रौशनी की निराशा पर आशा की, अन्याय पर न्याय की, क्रूरता पर करुणा की और हैवानियत पर इंसानियत की जीत का भरोसा दिलाती है। राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी की पुस्तक का आज कॉन्सिटीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में लोकार्पण किया गया। वहीं कार्यक्रम में फिल्म अभिनेता अनुपम खेर सहित कई लोग मौजूद रहे।
कार्यक्रम में अनुपम खेर ने कहा, ‘फिल्मों के नायक भले ही लार्जर देन लाइफ हों, लेकिन जी ने असली नायकों को बनाया है। वे खुद में एक प्रोडक्शन हाउस हैं।’ दिग्ग्ज अभिनेता ने कहा, ‘फिल्मों में जो नायक-नायिका होते हैं वे नकली होते हैं, असली नायक-नायिका तो इस किताब के बच्चे हैं, जिन्हें कैलाश सत्यार्थी जी ने बनाया है।
ये आपकी ही नहीं देश की भी पूंजी हैं। मैं लेखक के साथ राजकमल प्रकाशन को भी बधाई देता हूं कि उन्होंने ऐसी किताब प्रकाशित की है।’ दिग्गज अभिनेता ने कहा, ‘जैसा कि महात्मा गांधी जी ने कहा था कि उनका जीवन ही उनका संदेश है, ठीक वैसे ही कैलाश सत्यार्थी जी का जीवन ही उनका संदेश है।’
इसके बाद अनुपम खेर ने किताब की भूमिका के कुछ अंश भी पढ़कर सुनाए। अनुपम खेर से बातचीत में कैलाश सत्यार्थी ने कहा कि अगर इन कहानियों को पढ़कर आपकी आंखों में आसूं आते हैं तो वह आपकी इंसानियत का सबूत है। बच्चों से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। हमारे लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम खुद भी अपने भीतर के बच्चे को पहचानें।
लोकार्पण के मौके पर राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक माहेश्वरी ने कहा कि इस पुस्तक को प्रकाशित करना हमारे लिए विशेष रहा है क्योंकि यह बच्चों के बारे में है, वह भी उन बच्चों के बारे में जिन्हें समाज की विसंगतियों का शिकार होना पड़ा, जिन्हें हर तरह के अभाव और अपमान से गुजरना पड़ा।
‘तुम पहले क्यों नहीं आए’ किताब के बारे में
पुस्तक में ऐसी 12 सच्ची कहानियां हैं जिनसे बच्चों की दासता और उत्पीड़न के अलग-अलग प्रकारों और विभिन्न इलाकों तथा काम-धंधों में होने वाले शोषण के तौर-तरीकों को समझा जा सकता है। जैसे; पत्थर व अभ्रक की खदानें, ईंट-भट्ठे, कालीन कारखाने, सर्कस, खेतिहर मजदूरी, जबरिया भिखमंगी, बाल विवाह, दुर्व्यापार (ट्रैफिकिंग), यौन उत्पीड़न, घरेलू बाल मजदूरी और नरबलि आदि। हमारे समाज के अंधेरे कोनों पर रोशनी डालती ये कहानियां एक तरफ हमें उन खतरों से आगाह करती हैं जिनसे भारत समेत दुनियाभर में लाखों बच्चे आज भी जूझ रहे हैं।
दूसरी तरफ धूल से उठे फूलों की ये कहानियां यह भी बतलाती हैं कि हमारी एक छोटी-सी सकारात्मक पहल भी बच्चों को गुमनामी से बाहर निकालने में कितना महत्त्वपूर्ण हो सकती है, नोबेल पुरस्कार विजेता की कलम से निकली ये कहानियां आपको और अधिक मानवीय बनाती हैं, और ज्यादा जिम्मेदार बनाती है।(हि.स.)