प्रयागराज । नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पिछले साल दिसंबर के महीने में जमकर हिंसा हुई थी। राज्य सरकार ने हिंसा में सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने वाले आरोपियों की तस्वीर के साथ शहर में कई पोस्टर लगा दिए हैं। इस मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया और अवकाश के दिन इसपर सुनवाई हुई। कोर्ट ने इस पूरे मामले पर नाराजगी जताई और इसे एक गंभीर प्रकरण माना। सुनवाई पूरी करने के बाद हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया। चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस रमेश सिन्हा की बेंच इस मामले में सोमवार दोपहर 2 बजे फैसला सुनाएगी। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कहा कि ऐसा काम न करें, जिससे किसी का दिल दुखे।
इस मामले पर शनिवार को भी सुनवाई हुई थी। चीफ जस्सिट गोविंद माथुर की अध्यक्षता वाली बेंच ने लखनऊ के डीएम व डिवीजनल पुलिस कमिश्नर से पूछा था कि कानून के किस प्रावधान के तहत लखनऊ में इस प्रकार के पोस्टर सड़क पर लगाए गए। हाईकोर्ट का मानना था कि सार्वजनिक स्थान पर संबंधित व्यक्ति की अनुमति के बिना उसका फोटो या पोस्टर लगाना गलत है और यह राइट टू प्राइवेसी (निजता के अधिकार) का उल्लंघन है।
नागरिकता कानून के विरोध में हिंसा के आरोपियों की फोटो वाली होर्डिंग लखनऊ के हजरतगंज समेत कई चौराहों पर लगाई गई है। इनमे सार्वजनिक और निजी सम्पत्तियों को हुए नुकसान का विवरण है। साथ ही लिखा है कि सभी से नुकसान की भरपाई की जाएगी। मजिस्ट्रेट की कोर्ट से आदेश जारी होने के 30 दिनों में हिंसा के दोषी पाए गए लोगों ने धनराशि जमा नही की तो उनकी संपत्तियां कुर्क कर इसकी वसूली की जाएगी। ऐसी होर्डिंगे उन सभी थाना क्षेत्रों में लगाई जाएंगी जहां जहां हिंसा हुई थी।
बीते 19 दिसंबर को राजधानी में सीएए के विरोध में 10 हजार लोग सड़कों पर उतरे थे। इस दौरान बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ और आगजनी भी हुई थी। आरोपियों के खिलाफ दर्ज मुकदमों के आधार पर शहर के तीन क्षेत्रो की कोर्ट से अलग अलग निर्णय सुनाया गया। खदरा और डालीगंज में हुई हिंसा पर एडीएम टीजी, हजरतगंज और परिवर्तन चौक पर एडीएम सिटी पूर्वी, कैसरबाग और ठाकुरगंज में हुई हिंसा पर दर्ज मुकदमों के बारे में एडीएम सिटी पश्चिम की कोर्ट से फैसला सुनाया जा चुका है।