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संभल में शुरू हुई चौरासी कोसी परिक्रमा – कल्कि नगरी में लौट रहा है धर्म का स्वर्ण युग

संभल की चौरासी कोसी परिक्रमा एक पौराणिक यात्रा है, जो भगवान विष्णु के कल्कि अवतार की जन्मभूमि से जुड़ी मानी जाती है। यह परिक्रमा वैदिक काल से चली आ रही परंपरा है, जिसे अब योगी सरकार के प्रयासों से पुनर्जीवित किया गया है। वंशगोपाल कल्कि धाम से शुरू होकर यह यात्रा 84 कोस तक के 68 तीर्थों और 19 प्राचीन जलस्रोतों से होकर गुजरती है। हजारों श्रद्धालु इस यात्रा में शामिल होकर धर्म, संस्कृति और सनातन परंपरा के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त कर रहे हैं। यह आयोजन अब धार्मिक पर्यटन और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक बन चुका है।

  • भगवान विष्णु के कल्कि अवतार की जन्मभूमि संभल में सदियों पुरानी परिक्रमा का पुनः आरंभ; हजारों श्रद्धालुओं ने आस्था और परंपरा के इस दिव्य उत्सव में भाग लिया।

संभल (उत्तर प्रदेश)। उत्तर प्रदेश के पश्चिमी अंचल में स्थित संभल जिले का नाम आज फिर एक बार धार्मिक आस्था के केंद्र के रूप में चर्चा में है। कारण है – यहाँ की चौरासी कोसी परिक्रमा, जो एक साथ ऐतिहासिक, धार्मिक और पौराणिक महत्व रखती है। कहा जाता है कि यह परिक्रमा उस भूमि की परिक्रमा है जहाँ भविष्य में भगवान विष्णु का कल्कि अवतार प्रकट होगा। योगी आदित्यनाथ सरकार के प्रयासों से यह परिक्रमा एक बार फिर जीवंत हो उठी है, जिससे स्थानीय श्रद्धा, संस्कृति और तीर्थ-परंपरा को नया जीवन मिला है।

पौराणिक और धार्मिक महत्त्व

संभल को प्राचीन ग्रंथों में भगवान विष्णु के कल्कि अवतार की जन्मभूमि बताया गया है। स्कंद पुराण, भविष्य पुराण और विष्णु पुराण जैसे ग्रंथों में उल्लेख है कि कलियुग के अंत में भगवान विष्णु संभल नगर में विष्णुयश नामक ब्राह्मण के घर में जन्म लेंगे और धर्म की पुनर्स्थापना करेंगे। इस मान्यता के आधार पर संभल को “कल्कि नगरी” कहा जाता है।

चौरासी कोसी परिक्रमा इसी आस्था का प्रतीक है – यह उस पवित्र भूमि की परिक्रमा मानी जाती है जहाँ कल्कि अवतार का प्रादुर्भाव होगा। श्रद्धालु मानते हैं कि इस परिक्रमा से समस्त पाप नष्ट होते हैं, और जो इसे पूर्ण करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

संभल की चौरासी कोसी परिक्रमा का इतिहास बहुत प्राचीन माना जाता है। स्थानीय परंपरा के अनुसार, इस परिक्रमा की परंपरा वैदिक युग से चली आ रही है। धार्मिक विद्वानों का मत है कि यह परिक्रमा मूल रूप से अयोध्या की चौरासी कोसी परिक्रमा की तर्ज पर ही शुरू की गई थी। प्राचीन काल में इसे “कल्कि क्षेत्र यात्रा” कहा जाता था।

मुगल और ब्रिटिश काल के दौरान यह परंपरा धीरे-धीरे लुप्त होती गई। आज़ादी के बाद भी कई दशकों तक यह परिक्रमा बाधित रही। हालांकि, स्थानीय साधु-संतों और तीर्थ समितियों के प्रयास से 1970 के दशक में इसकी पुनः शुरुआत हुई, लेकिन व्यवस्थागत कारणों से यह लंबे समय तक स्थगित रही।

वर्ष 2025 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में इस परिक्रमा को फिर से पुनर्जीवित करने की योजना बनी। अब प्रशासनिक संरक्षण में इसका आयोजन किया जा रहा है।

परिक्रमा मार्ग और तीर्थ स्थल

चौरासी कोसी परिक्रमा का अर्थ है – 84 कोस (लगभग 252 किलोमीटर) की परिक्रमा। यह परिक्रमा संभल नगर से प्रारंभ होकर आसपास के अनेक प्राचीन तीर्थस्थलों, आश्रमों, सरोवरों और कूपों से होकर गुजरती है। परिक्रमा की शुरुआत वंशगोपाल कल्कि धाम (बेनीपुर चक) से होती है, जहाँ भगवान कल्कि की मूर्ति स्थापित है। श्रद्धालु यहाँ से परिक्रमा का संकल्प लेकर आगे बढ़ते हैं।

मुख्य पड़ावों में –

1. संभलेश्वर महादेव मंदिर – भगवान शिव का प्राचीन लिंगम, जो नगर के रक्षक देवता माने जाते हैं।
2. चंदेश्वर महादेव तीर्थ – परिक्रमा मार्ग का प्रमुख स्थल, जहाँ हजारों श्रद्धालु स्नान-पूजन करते हैं।
3. भुवनेश्वर तीर्थ – यह स्थान सप्तऋषियों के तपोस्थल के रूप में प्रसिद्ध है।
4. सूर्यकुंड तीर्थ – सूर्य उपासना का ऐतिहासिक केंद्र, यहाँ स्नान को अत्यंत शुभ माना जाता है।
5. कर्कटेश्वर तीर्थ – कार्तिकेय भगवान का यह स्थान परिक्रमा का प्रमुख विश्राम स्थल है।
6. अनेकों प्राचीन कूप और समाधियाँ – मार्ग में 19 प्राचीन जलस्रोतों और 68 तीर्थों का उल्लेख मिलता है।

परिक्रमा मार्ग ग्रामीण क्षेत्रों, खेतों, प्राचीन मंदिरों और आश्रमों से होकर गुजरता है। श्रद्धालु यह यात्रा आमतौर पर चार से पाँच दिनों में पूर्ण करते हैं। हर पड़ाव पर भंडारे, चिकित्सा शिविर और पूजा-पाठ की व्यवस्थाएँ होती हैं।

परिक्रमा का धार्मिक महात्म्य

धर्मशास्त्रों में परिक्रमा का विशेष महत्व बताया गया है -“परिक्रमा कृतं पुण्यं कल्पकोटिशतैरपि न लभ्यते।” अर्थात्, परिक्रमा करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, वह करोड़ों कल्पों के तप से भी कठिन है। संभल की चौरासी कोसी परिक्रमा इस सिद्धांत का सजीव उदाहरण है। यहां की आस्था इस विश्वास पर टिकी है कि कलियुग के अंत में जब कल्कि अवतार यहीं प्रकट होंगे, तब यह भूमि पुनः धर्म की पुनर्स्थापना का केंद्र बनेगी।

सरकार और प्रशासन की भूमिका

योगी सरकार ने संभल की धार्मिक विरासत को संरक्षित करने के लिए विशेष अभियान शुरू किया है। चौरासी कोसी परिक्रमा मार्ग के 68 प्राचीन तीर्थों और 19 जलस्रोतों की पहचान की जा चुकी है। इन स्थलों का सौंदर्यीकरण, संकेतक बोर्ड, विश्राम स्थल और सड़क निर्माण का कार्य चल रहा है।पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा और व्यवस्था के व्यापक इंतज़ाम किए हैं। श्रद्धालुओं के लिए मेडिकल कैंप, वाटर पॉइंट्स, मोबाइल टॉयलेट और सफाई व्यवस्था की गई है।

सांस्कृतिक और पर्यटन दृष्टि से महत्व

संभल की यह परिक्रमा न केवल धार्मिक आयोजन है, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण का भी प्रतीक है। परिक्रमा के दौरान स्थानीय लोकगीत, भजन-कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रम क्षेत्र की समृद्ध परंपरा को दर्शाते हैं। सरकार का मानना है कि यह आयोजन भविष्य में धार्मिक पर्यटन के बड़े केंद्र के रूप में विकसित होगा, जिससे संभल की पहचान विश्व स्तर पर स्थापित होगी।

संभल की चौरासी कोसी परिक्रमा केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि संस्कृति, आस्था और इतिहास का समागम है। यह उस भूमि की परिक्रमा है जहाँ धर्म की पुनर्स्थापना की भविष्यवाणी की गई है। आज जब यह परंपरा पुनः जीवित हो रही है, तो यह केवल श्रद्धालुओं की आस्था नहीं, बल्कि भारतीय सनातन संस्कृति की अमर चेतना का भी उत्सव बन चुकी है।

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