भारतीय सैनिकों के लिए परेशानी के सबब बने स्नाइपर्स
कश्मीर के एलओसी पर स्नाइपर हमलों का बढ़ा खतरा
जम्मू : कश्मीर के भीतर आतंकवाद से जूझ रहे सुरक्षाबलों तथा एलओसी पर पाकिस्तानी सेना के हमलों से निपटने में जुटी सेना के जवानों के लिए दोहरा खतरा अब स्नाइपरों का है। दरअसल अधिकारी खुद कहते हैं कि आने वाले दिनों में कश्मीर में फैले आतंकवाद में महत्वपूर्ण मोड़ आ सकता है क्योंकि घुसपैठ करने वाले आतंकियों को स्नाइपर राइफलें मुहैया करवाए जाने के साथ ही इसका प्रशिक्षण देकर इस ओर भिजवाया जा रहा है।
करीब आधा दर्जन स्नाइपर मारे भी जा चुके हैं और दर्जनभर स्नाइपर राइफलें कश्मीर के भीतर से बरामद की जा चुकी हैं। एलओसी पर घुसपैठियों से भी ऐसी राइफलें मिली हैं। जबकि एलओसी पर आतंकी तथा पाक सैनिक स्नाइपर राइफलों का खुलकर इस्तेमाल कर भारतीय सैनिकों की नींद हराम किए हुए हैं। एलओसी और इंटरनेशनल बार्डर पर पाक सैनिकों के साथ आतंकी भी भारतीय जवानों को स्नाइपर अपना निशाना बना रहे हैं। आतंकियों को पाक फौज के कैंपों में स्नाइपर की ट्रेनिंग तक दी जा रही है। हालांकि आतंकियों को स्नाइपर राइफल मुहैया कराने के लिए फंड पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई दे रही है।
जानकारी के अनुसार पाकिस्तानी सेना के कैंपों में लश्करे तौयबा के आतंकियों को स्नाइपर की ट्रेनिंग दी जा रही है। आतंकियों के पास यूएसए और आस्ट्रिया निर्मित दूर मारक राइफल हैं।पुंछ, राजोरी, कुपवाड़ा, बारामुल्ला की एलओसी, जम्मू, सांबा और कठुआ के बार्डर पर आतंकी घुसपैठ नहीं कर पा रहे। खासकर जम्मू संभाग में आतंकियों की घुसपैठ बहुत कम हुई है। इसे देखते हुए आतंकी पाकिस्तान की फारवर्ड पोस्टों तक पहुंचे हैं। वह पाकिस्तानी सैनिकों के साथ मिलकर भारतीय जवानों को टारगेट कर रहे हैं।
उस कश्मीर के कोटली में स्थित पाकिस्तानी सेना का कैंप हैं। यहां पर सबसे अधिक लश्करे तौयबा के आतंकी हैं। इन आतंकियों को स्नाइपर की ट्रेनिंग दी जा रही है। सूत्रों का कहना है कि आईएसआई इसके लिए फंडिंग कर रही है। पाकिस्तानी सेना इनकी खरीद कर रही है और ट्रेनिंग देने के लिए आतंकियों को मुहैया करा रहे हैं। आतंकियों से फारवर्ड पोस्टों के अलावा अन्य हमले करने के लिए भी यह स्नाइपर राइफल दी जा रही है।
अमूमन आतंकी घुसपैठ करते वक्त अपने साथ कलाश्निकोव राइफल लेकर आते हैं। लेकिन ताजा ट्रेंड यह है कि आतंकी अपने साथ स्नाइपर राइफल लेकर भी आ रहे हैं। परंपरागत एके राइफल से लंबी व अधिक दूरी तक मारक राइफल का वजन कम रहता है। इसमें पांच से दस राउंड की मैगज़ीन रहती है। इसमें टेलिस्कोप भी लगाया जाता है, जिससे दूर बैठे निशाने पर भी सटीक मार कर सकें। आतंकी घुसपैठ करने के बाद कम वजन के चलते इनको अपने साथ ला रहे हैं। कश्मीर में दो महीने पहले लश्कर के मारे गए तीन आतंकियों के पास से अमेरिका निर्मित स्प्रिंगफ़ील्ड-m24 स्नाइपर राइफल, एम4 कारबाइन भी मिली थी। एलओसी पर भी ऐसी राइफलें बरामद की जा चुकी हैं।