नवरात्र 2025 : षष्ठम दिवस मां कात्यायनी की पूजा से मिलता है साहस, विजय और दांपत्य सुख
दानवों का वध करने वाली योद्धा रूपी मां कात्यायनी की आराधना से भक्तों को साहस, विजय और विवाह-सुख की प्राप्ति होती है।
शारदीय नवरात्र का षष्ठम दिवस मां दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप को समर्पित है। मां कात्यायनी का रूप तेजस्वी और पराक्रमी माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उनकी आराधना से विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती हैं, दांपत्य जीवन सुखमय बनता है और जीवन में साहस व विजय की प्राप्ति होती है। विशेषकर अविवाहित कन्याओं के लिए मां कात्यायनी की पूजा अत्यंत फलदायी मानी जाती है।
मां कात्यायनी का स्वरूप
धर्मग्रंथों के अनुसार मां कात्यायनी सिंह पर सवार रहती हैं। उनके चार हाथ हैं – दाहिने ओर एक हाथ वरमुद्रा और दूसरा अभयमुद्रा में है, जबकि बाएं हाथों में तलवार और कमल का पुष्प सुशोभित है। उनका स्वरूप उग्र प्रतीत होता है, परंतु भक्तों के लिए वे करुणामयी और कृपालु मानी जाती हैं।
मां कात्यायनी की पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार जब दानव महिषासुर ने तीनों लोकों में अत्याचार मचाया तो देवगण भयभीत होकर भगवान विष्णु और महादेव की शरण में पहुंचे। देवताओं की प्रार्थना से महाशक्ति प्रकट हुईं और ऋषि कात्यायन के घर जन्म लिया। इसी कारण उन्हें कात्यायनी नाम मिला। महिषासुर का आतंक उस समय इतना बढ़ गया था कि देवताओं का स्वर्ग से वास छिन गया था। तब मां कात्यायनी ने महिषासुर से भीषण युद्ध किया और अंततः उसका वध कर संसार को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई। इसीलिए उन्हें महिषासुरमर्दिनी भी कहा जाता है।
पूजा-विधान
- प्रातः स्नान कर पीले या लाल वस्त्र धारण करें।
- मां कात्यायनी की प्रतिमा अथवा चित्र के सामने दीप प्रज्वलित करें।
- लाल पुष्प और गुलाब अर्पित करें।
- शहद का भोग लगाने का विशेष महत्व है।
- दुर्गा सप्तशती या कात्यायनी स्तोत्र का पाठ करें।
पूजन मंत्र
“चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यान्महासुरमर्दिनी॥”
दर्शन का शुभ मुहूर्त (27 सितम्बर 2025)
- प्रातः पूजन : 06:20 AM – 08:35 AM
- अभिजीत मुहूर्त : 11:55 AM – 12:45 PM
- संध्या दर्शन : 06:00 PM – 07:05 PM
राशि अनुसार दर्शन का महत्व
- मेष राशि : साहस और आत्मबल में वृद्धि।
- कन्या राशि : विवाह और संबंधों में सफलता।
- धनु राशि : करियर और शिक्षा में विजय।
- कुंभ राशि : पारिवारिक सुख और उन्नति।
व्रत-विधान
- प्रातः ध्यान और प्राणायाम करें।
- मां को शहद का भोग अर्पित करें।
- परिवारजनों व ब्राह्मणों को प्रसाद बांटें।
- संध्या समय दीप प्रज्वलित कर आरती करें।
मां कात्यायनी की आरती
जय अम्बे कात्यायनी माता।
महिषासुर मर्दिनी विख्याता॥
सिंहवाहिनी शत्रु नाशिनी।
भक्त जनों की संकट हरणी॥
वरमुद्रा कर में शोभित।
भक्तों को करतीं सुखदायक॥
शहद भोग से प्रसन्न भवानी।
सुख, समृद्धि देती वरदानी॥
जय जय माँ कात्यायनी माता।
महिषासुर मर्दिनी विख्याता॥
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