गंगा से लेकर समुद्र तट तक भक्तों का जनसैलाब, प्रवासी भारतीयों ने विदेशों में भी मनाया सूर्योपासना का महान पर्व
छठ पूजा, सूर्योपासना और लोकआस्था का महान पर्व इस वर्ष पूरे भारत में अभूतपूर्व उत्साह और अनुशासन के साथ मनाया गया। बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश सहित राजधानी दिल्ली, मुंबई, सूरत, कोलकाता और दक्षिण भारत के कई शहरों में व्रती महिलाओं और श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ा। घाटों पर अस्ताचलगामी और उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर मंगलकामना की गई। स्वच्छता, सुरक्षा और सामाजिक सहभागिता ने पर्व को और भव्य बनाया। विदेशों में बसे भारतीय समुदाय ने भी छठ मैया की पूजा कर अपनी मातृभूमि से भावनात्मक जुड़ाव व्यक्त किया। यह पर्व भारतीय संस्कृति की एकता और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का अनुपम उदाहरण है।
- बिहार, झारखंड और यूपी समेत पूरे देश में छठ का भव्य उत्सव: आस्था और अनुशासन का अनुपम संगम
बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के साथ-साथ भारत के तमाम राज्यों में लोकआस्था के महान पर्व छठ की भव्यता और भावनाओं ने इस वर्ष भी पूरे देश को एक सूत्र में बांध दिया। सूर्योपासना और कड़े अनुशासन का प्रतीक यह पर्व न केवल धार्मिक पहचान है बल्कि सांस्कृतिक विरासत और सामाजिक एकजुटता का अद्भुत संगम भी है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि भारतीय परंपराएं कितनी जीवंत, उत्साहपूर्ण और सामूहिक मंगलकामना से परिपूर्ण हैं। बिहार और पूर्वांचल के लोग चाहे देश में कहीं भी रहें, छठ उनके जीवन का अनिवार्य हिस्सा है और इसी वजह से मुंबई से लेकर दिल्ली, सूरत से लेकर कोलकाता, यहां तक कि विदेशों में भी इस पर्व का उत्साह अभूतपूर्व रूप से देखने को मिला।
पूरे पर्व के दौरान व्रती महिलाएं और पुरुष कठोर तपस्या के साथ अपनी मनोवांछा की पूर्ति के लिए भगवान भास्कर और छठ मैया की पूजा-अर्चना में निमग्न रहे। घर-आंगन से लेकर गली-मोहल्ले और समुद्र के तट तक, जहां-जहां पूर्वांचल और बिहार-झारखंड के लोग बसे हैं, वहां छठ की गूंज सुनाई देती रही। गीतों की मधुर लय, आराधना की पवित्र ध्वनि और आस्था के उज्ज्वल भावों ने मौसम में भावनाओं की सुगंध घोल दी। इस दौरान नदियों और तालाबों के घाटों पर भक्तों का जनसैलाब उमड़ पड़ा। सुरक्षा व्यवस्था, स्वच्छता से लेकर प्रकाश व्यवस्था तक, हर स्थान पर प्रशासन अलर्ट रहा और नागरिक स्वयंसेवा में भी आगे रहे।

छठ का महत्व और इसकी आध्यात्मिक चेतना
छठ महापर्व सूर्योपासना का सबसे प्राचीन और विशिष्ट पर्व माना जाता है। भारतीय संस्कृति में सूर्य केवल प्रकाश और ऊर्जा के देव ही नहीं, बल्कि जीवन और स्वास्थ्य के भी दाता माने गए हैं। छठ व्रत रखने वाली महिलाएं निराजल रहकर आत्म-संयम और दृढ़ निष्ठा का परिचय देती हैं, जिससे उनके भीतर आध्यात्मिक शक्ति और मनोबल का संचार होता है। पारिवारिक सुख-समृद्धि और संतान की मंगलकामना के लिए यह व्रत विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना गया है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी सूर्य की उपासना शरीर में विटामिन डी के अवशोषण और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने से जुड़ी है।
चार दिनों का अनुष्ठान और विधि विधान
इस महापर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इस दिन घर-परिवार में शुद्धता, स्वच्छता और सात्विकता का विशेष ध्यान रखा जाता है। दूसरे दिन खरना होता है, जब व्रती महिलाएं पूरे दिन उपवास रखकर शाम को प्रसाद स्वरूप गुड़-चावल की खीर ग्रहण करती हैं। इसके बाद निराजल व्रत शुरू होता है। तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। घाटों और जलाशयों के किनारे शाम के समय दीपों और सजावट की रौनक देखते ही बनती है। छठ गीतों की धुन वातावरण को पवित्र बना देती है। चौथे दिन उदीयमान सूर्य को अर्ध्य समर्पित किया जाता है और इसी के साथ पर्व का समापन होता है। इस दौरान व्रती महिलाएं और पुरुष जल में लंबे समय तक खड़े रहकर तपस्या करते हैं।
बिहार में छठ की भव्यता
बिहार को छठ की जन्मस्थली और सबसे बड़े उत्सव केंद्र के रूप में जाना जाता है। पटना के गंगा घाटों पर इस वर्ष भी श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में रही। दीघा, गांधी घाट, कलेक्ट्री घाट, कुरजी घाट, गुग्गुलपहाड़ी और कई अन्य ऐतिहासिक घाटों पर राज्य सरकार ने भव्य व्यवस्थाएं कीं। छठ गीतों की गूंज, दीपों की चमक और सुरक्षा में तैनात पुलिस-प्रशासन की सख्ती, सब मिलकर इस उत्सव को और भी विशेष बनाते रहे। राजधानी के अलावा भागलपुर, गया, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, सहरसा, समस्तीपुर और भोजपुर समेत हर इलाके में छठ का नज़ारा अप्रतिम रहा। गांवों में मिट्टी के कोलों पर बनाए गए पकवानों की खुशबू और पारंपरिक विधियों का पालन, संस्कृति को और गहराई देता रहा।
झारखंड में आस्था की जीत
झारखंड के रांची, धनबाद, जमशेदपुर, बोकारो और देवघर समेत तमाम जिलों में छठ का उत्साह अभूतपूर्व रहा। विशेषकर रांची के बूटी मोड़, कंकड़ बाग, धुर्वा और हरमू के छठ घाटों पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित हुए। यहां आदिवासी और शहरी संस्कृति का एक अनोखा संगम भी देखने को मिलता है। छठ पर्व ने सामाजिक एकता और आपसी सहयोग की मिसाल भी कायम की। लोग स्वयं सफाई करते, प्रकाश की व्यवस्था बनाते, और श्रद्धालुओं की सहायता में लगे रहे।
उत्तर प्रदेश में आयोजन की नई भव्यता
पूर्वांचल क्षेत्र वाराणसी, गोरखपुर, आजमगढ़, बलिया, देवरिया, सोनभद्र और मऊ में छठ पर्व का उत्साह वर्षों से देखने लायक रहा है। इस वर्ष भी घाटों को दुल्हन की तरह सजाया गया। वाराणसी के अस्सी घाट, राजघाट, नावघाट, एवं नमो घाट पर लाखों भक्तों की उपस्थिति ने यह स्पष्ट कर दिया कि छठ एक ऐसा पर्व है जो सीमाओं को पार कर सबको जोड़ता है। लखनऊ, कानपुर, प्रयागराज और नोएडा जैसे महानगरों में भी छठ का आकर्षण लगातार बढ़ता जा रहा है। प्रवासी परिवारों ने भी अपनी परंपरा को मजबूती से थाम रखा है।
दिल्ली और अन्य महानगरों में छठ
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कालिंदी कुंज, यमुना घाट और उत्तम नगर सहित कई स्थानों पर छठ की तैयारियों को देखते हुए प्रशासन ने विशेष इंतज़ाम किए। हजारों लोगों ने यहां सूर्योपासना में हिस्सा लिया। मुंबई के जुहू बीच, सान्ताक्रूज़, बोरीवली और मुलुंड इलाकों में भी प्रवासी बिहार और यूपी के लोग एकत्र हुए। सूरत और अहमदाबाद में भी घाटों पर लंबी-लंबी कतारें दिखीं। यहां स्थानीय लोग भी उत्सव में शामिल होने लगे हैं, जिससे सांस्कृतिक समन्वय और व्यापक हो रहा है।
छठ का अंतरराष्ट्रीय विस्तार
यूएई, नेपाल, मॉरीशस, फिजी, यूएसए, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में बसे भारतीय समुदाय ने भी छठ पर्व को पूरी श्रद्धा के साथ मनाया। सोशल मीडिया ने इस पारंपरिक त्योहार को वैश्विक पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्रवासी भारतीयों के लिए छठ केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि अपने मातृभूमि की संस्कृति से जुड़ाव का भावनात्मक माध्यम है।
भोजन, गीत और परंपराओं का पर्व
छठ के दौरान बनाए जाने वाले ठेकुआ, रसियाव, कद्दू-भात और मौसमी फलों का पंचामृत इस पर्व की विशेष पहचान है। लोकगीत जैसे केलवा के पात पर उगेलन सूरज देव, पिंडवा से निकलल चलs हे छठी मैया, और कई पारंपरिक गीत मन और वातावरण में भक्ति का संचार करते हैं। इन गीतों में मां-बहनों की पीड़ा, खुशियां, पारिवारिक भावनाएं और मंगलकामना की छवियां उभरती हैं।
स्वच्छता और सुरक्षात्मक प्रबंध
देश के प्रमुख शहरों में इस वर्ष स्वच्छ भारत अभियान की भावना को और अधिक शक्ति मिली। घाटों की सफाई, प्लास्टिक प्रतिबंध और कचरा पृथक्करण के प्रति लोगों की जागरूकता बढ़ी। प्रशासन की ओर से सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए। महिला सुरक्षा पर विशेष जोर दिया गया। एनडीआरएफ की टीमों और तैराकों की तैनाती ने श्रद्धालुओं में सुरक्षा का भरोसा बनाए रखा।
समाजिक समरसता का प्रतीक
छठ पर्व किसी एक धर्म, जाति या वर्ग तक सीमित नहीं है। सभी समुदायों के लोग इस पर्व की तैयारियों में सहयोग बढ़-चढ़कर करते हैं। यह पर्व समाज को समरसता, अनुशासन और सामूहिक उत्थान का संदेश देता है। अलग-अलग वर्गों के लोग जब एक ही घाट पर एक समान आस्था के साथ खड़े होते हैं, तब सामाजिक विभाजन स्वतः ही धूमिल हो जाता है।
पर्यावरण चेतना भी शामिल
छठ पर्व प्रकृति से सीधा संबंध स्थापित करता है। मिट्टी के बर्तनों का उपयोग पर्यावरण के अनुकूल है। लोग जलाशयों की सफाई करते हैं। सूर्य, नदी और पौधों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है। यह पर्व प्रकृति संरक्षण और सतत विकास के सिद्धांतों को भी मजबूती देता है।
आर्थिक आयाम और रोजगार
छठ पर्व स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती प्रदान करता है। प्रसाद सामग्री से लेकर साज-सज्जा, परिवहन, प्रकाश व्यवस्था, टेंट सेवा, फोटोग्राफी और छोटे व्यापारियों की आय में बढ़ोतरी होती है। फल मंडी और कपड़े-घरेलू सामान बाजारों में खासा उत्साह देखने को मिलता है। यह पर्व लाखों लोगों के लिए आजीविका के अवसर बनाता है।
छठ महापर्व केवल पूजा-पाठ का अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक उत्सव है जो भारतीय समाज को एकात्म भावना में बांधता है। बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और पूरे भारत की पहचान में छठ का योगदान अमूल्य है। यह पर्व हमें अनुशासन, शुचिता, सहयोग, संतुलित जीवन और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का संदेश देता है। बदलते समय और आधुनिक जीवनशैली के बावजूद छठ की पवित्रता और भव्यता निरंतर बढ़ती जा रही है। इस वर्ष पूरे देश में मनाए गए छठ पर्व ने आस्था, सामूहिकता और भारतीय सांस्कृतिक चेतना को नई ऊर्जा प्रदान की है। भविष्य में भी छठ महापर्व सामाजिक एकता और सकारात्मकता की इसी रोशनी को दूर-दूर तक फैलाता रहेगा।
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