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पानी को तरसता धरती का वर्षा बहुल स्थान

चेरापूंजी (मेघालय) जनवरी (एएनएस) । धरती के वर्षा बहुल स्थानों में से एक चेरापूंजी में भारी वर्षा पानी की बहुतायत का पर्याय नहीं रह गयी है। लेकिन यह स्थिति हमेशा से ऐसी नहीं थी।

भारत के पूर्वोत्तर के दूरदराज राज्य, मेघालय में रह रही आठ बच्चों की मां तिलोद खोंगविर याद करती हैं, “पहले हमारे पास साल भर प्रचुर मात्रा में पानी रहता था क्योंकि प्राकृतिक रूप से यहां बहुत बारिश होती थी।”

उन्होंने कहा, “अब हम जब भी बारिश होती है जितना संभव हो पानी जमा कर लेते हैं और इसे बाद के लिए बचा लेते हैं।”

आज प्राकृतिक बसंत और जलभर कम होते जा रहे हैं- इसिलए यहां रह रहे लोगों को जब भी हो, जितना हो और जिस तरीके से हो पानी जमा कर रखना चाहिए।

मेघालय दोहरी समस्या का एक स्पष्ट उदाहरण है जहां पानी की मात्रा बहुत ज्यादा भी है और बहुत कम भी।

जलवायु परिवर्तन अस्थिर मौसम का कारण बन रहा है – बाढ़ भी और सूखा भी और कई बार एक ही इलाके में।

वैज्ञानिकों का कहना है कि मॉनसून अब कम बारिश लेकर आते हैं जबकि जनसंख्या, अर्थव्यवस्था और उद्योग के बढ़ने के साथ ही पानी की मांग भी बढ़ रही है।

बारिश अब भयंकर बाढ़ लेकर आ रही है लेकिन भंडारण के विकल्प बहुत कम रहने के चलते ज्यादातर पानी बह जाता है।

पिछले साल पूर्वी भारतीय राज्यों- बिहार, पश्चिम बंगाल और असम के साथ ही पड़ोसी नेपाल और बांग्लादेश में बाढ़ के चलते 1,000 लोग मारे गए थे।

इसी वक्त दक्षिणी और पश्चिमी भारत के बड़े हिस्सों में भयंकर सूखा पड़ा था।

वाटरएड के मुताबिक भारत में करीब 16.3 करोड़ लोगों को साफ पानी उपलब्ध नहीं है और यह स्थिति और खराब होने जा रही है क्योंकि अगले आठ साल में भारत विश्व का सबसे ज्यादा आबादी वाला राष्ट्र बनने वाला है।

वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि राष्ट्र पानी की भारी किल्लत से जूझ रहा है जो करोड़ों लोखों के स्वास्थ्य के साथ ही राष्ट्र के विकास को जोखिम में डाल रहा है।

वनों की कटाई और तेजी से अनियोजित शहरीकरण ने भारत के जख्मों को और हरा ही कर दिया है, जहां बाढ़ भयंकर होती जा रही है और सूखा लंबे समय तक पड़ने लगा है।

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