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लद्दाख में बार-बार आ रहा भूकंप, कहीं वजह ये तो नहीं

14 अप्रैल को लद्दाख में 3.6 तीव्रता का भूकंप महसूस किया गया। नेशनल सेंटर ऑफ सिस्मोलॉजी (एनसीएस) ने ट्वीट कर इस विषय में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि भूकंप का केंद्र अल्ची (लेह) से 51 किमी पश्चिम में था और इसकी गहराई 5 किमी थी। यह भूकंप रात 9 बजे आया था।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत आने वाले नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी (एनसीएस) के पास देश भर में भूकंप संबंधित गतिविधियों की निगरानी के लिए 115 भूकंपीय स्टेशनों से युक्त एक राष्ट्रव्यापी भूकंपीय नेटवर्क है। भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के मानचित्र के आधार पर पूरे देश को चार क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। इन क्षेत्रों में भूकंप का सबसे अधिक खतरा जोन V में और सबसे कम खतरा जोन II में है। लद्दाख जोन IV में आता है।

भूकंपों का सिलसिला पिछले वर्ष से है जारी

ऐसा नहीं है कि लद्दाख में यह इस वर्ष का पहला भूकंप है। 30 मार्च को लेह के ही करीब 3.1 की तीव्रता का भूकंप दर्ज किया गया था। इससे पहले भी फरवरी माह में लद्दाख कई भूकंप झेल चुका है। इसी वर्ष 18 फरवरी को लद्दाख में रिक्टर पैमाने पर 3.7 की तीव्रता का भूकंप दर्ज किया गया था। इसकी गहराई 200 किलोमीटर थी। इसके ठीक एक दिन पहले लद्दाख में 3.5 की तीव्रता का भूकंप दर्ज किया गया था। इससे पहले 3 फरवरी को लेह के करीब 4.5 की तीव्रता का भूकंप आया था, जिसका केंद्र बिंदु लेह, लद्दाख से 69 किलोमीटर पूर्व-उत्तर पूर्व में था। पिछले वर्ष दिसंबर में भी लद्दाख में भूकंप के कई झटके महसूस किए गए थे।

वैज्ञानिकों के अनुसार टेकटोनिक फॉल्ट लाइन है वजह

कई वैज्ञानिक बताते हैं कि इन भूकंपों के पीछे का कारण एक टेक्टोनिक फॉल्ट लाइन है जो लद्दाख से होकर गुजरती है, जिसे पहले निष्क्रिय माना जाता था। लेकिन पिछले साल देहरादून के वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि फॉल्ट लाइन, जिसे सिंधु सिवनी जोन का नाम दिया गया है, वास्तव में एक सक्रिय फॉल्ट लाइन है और उत्तर की ओर बढ़ रही है। सिवनी जोन एक ऐसा क्षेत्र होता है जहां प्रमुख भू विकृतियां, टेकटोनिक प्लेट्स, मेटामोर्फिक इतिहास और विभिन्न प्रकार के भू क्षेत्र पाए जाते हैं।

कम वनस्पति है लद्दाख के लिए सबसे बड़ी समस्या

भूवैज्ञानिकों के अनुसार एक सक्रिय फॉल्ट लाइन न केवल क्षेत्र को भूकंप संभावित क्षेत्र बनाती है बल्कि भूस्खलन और कटाव के खतरे को भी बढ़ाती है।लद्दाख के लिए सबसे बड़ी समस्या यह है कि हिमालय और देश के बाकी इलाकों के विपरीत, यहां बहुत कम वनस्पति और पेड़ हैं। इस कारण बाढ़ या बादल फटने के स्थिति में इस क्षेत्र को भारी नुकसान पहुंच सकता है। राहत की बात यह है कि लद्दाख में अभी तक कोई अधिक तीव्रता वाला भूकंप दर्ज नहीं किया गया है और विशेषज्ञों के अनुसार इसकी संभावना भी कम है।

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