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भारत, मालदीव में खोलेगा एक और दूतावास, दक्षिण एशिया में मजबूत होगा प्रभाव

भारत सरकार ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसला लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में, 2021 में मालदीव के अड्डू शहर में एक नए वाणिज्य दूतावास खोलने को मंजूरी दी गई है। क्षेत्र में लगातार बढ़ते अन्य देशों के दखल के चलते भारत सरकार का यह फैसला सामरिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।

खबर है कि श्रीलंका की सरकार ने कोलंबो पोर्ट सिटी इकनॉमिक कमीशन बिल पास कर दिया है। इसके तहत बाहरी देश, कोलंबो में एक पोर्ट सिटी का निर्माण करेंगे। जानकारों का मानना है, इस कदम से बाहरी देश, दक्षिण एशिया में अपनी स्थिति को और मजबूत करने की कोशिश करेंगे। भारत को भी अपनी स्थिति इस क्षेत्र में मजबूत करनी होगी, दूतावास स्थापना का कदम उसी परिपेक्ष्य में उठाया गया लगता है।

भारत का मालदीव में दूतावास खोलना क्यों है महत्वपूर्ण
मालदीव के पिछले राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन, भारत के मुकाबले दूसरे देशों के बहुत करीबी माने जाते थे। उन्होंने उन देशों के साथ कई समझौते किए, जिससे मालदीव में उन देशों का हस्तक्षेप काफी बढ़ गया है। उन देशों ने यहां भारी निवेश किया है, जिसमें माले का एयरपोर्ट भी शामिल है। इब्राहिम मोहम्मद सोलीह की वर्तमान सरकार का झुकाव भारत की ओर माना जाता है। भारत इसी का फायदा लेकर क्षेत्र में बढ़ते अतिक्रमण को कम करना चाहता है। इसी क्रम में भारत ने वाणिज्य दूतावास खोलने का निर्णय लिया है।

भारतीय कंपनियों को मिलेगा लाभ
यह ‘सबका साथ सबका विकास’ की हमारी संवृद्धि और विकास की राष्ट्रीय प्राथमिकता की नीति को आगे बढ़ाने की दिशा में एक कदम भी हैI भारत की राजनयिक उपस्थिति में बढ़ोतरी से भारतीय कम्पनियों को वहां के बाजारों में अपनी पैठ बनाने और भारतीय वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात को बढ़ाने में भी आवश्यक सहायता मिलेगीI इससे “आत्मनिर्भर भारत” के हमारे लक्ष्यों के अनुरूप घरेलू उत्पादन और रोजगार के अवसरों में वृद्धि पर भी सीधा असर होगा I

मालदीव में बाहरी देशों का निवेश
यामीन के शासन काल में मालदीव ने बाहरी देशों को कई ऐसे द्वीप लीज़ पर दिए हैं, जो उन देशों की ‘स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल’ रणनीति के तहत भारत के चारों ओर घेरा बना कर, यहां भारत के प्रभुत्व को कम करता है। मालदीव में उन देशों के निवेश के अलावा वहां का सबसे बड़ा उद्योग, पर्यटन में भी उन देशों का बड़ा हिस्सा है। कुछ साम्राज्यवादी देशों के महत्वकांक्षी पहल के लिए मालदीव एक महत्वपूर्ण भौगोलिक स्थिति में है। वो देश अपने प्रोजेक्ट के जरिए अपने कारोबार का जाल एशिया से लेकर यूरोप और अफ्रीका में फैलाना चाहते हैं। राष्ट्रपति यामीन के दौर में अन्य देशों ने मालदीव के साथ विकास के नाम पर जो समझौते किये हैं,उस से मालदीव जैसे छोटे देश पर उन देशों का भीमकाय कर्ज पहले ही लद चुका है। समाचार एजेंसी रोय्टर के मुताबिक यह कर्ज 1.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, जो मालदीव के सकल घरेलू उत्पाद के एक चौथाई से भी ज्यादा है।

मालदीव का भारत और अन्य एशियाई देशों के लिए सामरिक महत्व
मालदीव पिछले कुछ सालों में दक्षिण एशिया की बड़ी ताक़तों की प्रतिद्वंदिता के रणक्षेत्र के तौर पर सामने आया है। हिन्द महासागर में बाहरी देश अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए इस क्षेत्र के कई देशों में मौजूदगी बढ़ा रहे हैं। इसके तहत बाहरी देश इन देशों के साथ कारोबार और मूलभूत ढांचे के विकास में सहयोग कर रहे हैं। श्रीलंका और नेपाल के साथ-साथ मालदीव भी ऐसा ही देश है, जहां बाहरी देशों की पकड़ बढ़ी है। इन सभी देशों के साथ पारंपरिक तौर पर भारत के घनिष्ठ सम्बन्ध रहे हैं, लेकिन बाहरी देशों की मौजूदगी ने संतुलन बिगड़ दिया है।

मालदीव, दक्षिण एशिया का सबसे छोटा देश है, लेकिन हिन्द महासागर में इसकी भौगोलिक स्थिति की वजह से इसका सामरिक महत्व काफी है। मालदीव कई अहम् समुद्री मार्गों पर स्थित है। बड़े एशियाई देश इसे अपनी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं के एक अहम रूट के तौर पर देखते हैं। बाहरी देशों की दक्षिण एशिया में बढ़ती दिलचस्पी से भारत का असहज होना लाजिमी है। मालदीव से लक्षद्वीप की दूरी महज 1,200 किलोमीटर है। ऐसे में भारत नहीं चाहता है कि बाहरी देश, पड़ोसी देशों के जरिए भारत के और करीब पहुंचे।

हिन्द महासागर में मालदीव के क्षेत्र में स्थित अंतर्राष्ट्रीय समुद्री जहाज मार्ग भारत, जापान और चीन की ऊर्जा आपूर्ति की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। संख्या की दृष्टि से भारत का 97% से अधिक और मूल्यात्मक दृष्टि से 75% से अधिक अंतरराष्ट्रीय व्यापार हिन्द महासागर में बैठे मालदीव के अंतरराष्ट्रीय ट्रेड शिपिंग लेंस के जरिए होता है। इसीलिए भारत ने एक प्रस्ताव पारित कर नवंबर, 2018 में मालदीव को ‘इंडियन ओसियन रिम एसोसिएशन’ का 22वाँ सदस्य बनवाया है।

मालदीव, भारत के लिए ब्लू इकोनॉमी अथवा सागरीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। अंडमान निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप के तटीय क्षेत्रें की सुरक्षा के लिए भी मालदीव बेहद जरूरी है।

भारत कर रहा है प्रयास ?
बीते कुछ सालों में भारत ने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के लिए काफी अहम प्रयास किए हैं। इनमें बीते जुलाई महीने में कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के लिए 55 लाख डॉलर की धनराशि देने, भारत में कोच्चि से मालदीव के कुल्हुधुफुशी के बीच कार्गो फेरी की सितंबर में शुरुआत करने के साथ मालदीव के कहने पर डोर्नियर एयरक्राफ्ट देने जैसे कई अहम कदम शामिल हैं।

कोविड-19 के प्रभाव को कम करने में मदद करने के लिए भारत ने मालदीव को 25 करोड़ डॉलर की बजटीय सहायता दी, जो कि मालदीव को अब तक किसी भी एक देश से मिलने वाली सबसे बड़ी धनराशि थी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत ने अगस्त 2020 में मालदीव में अब तक के सबसे बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के लिए फंड देने का वादा किया है। यह प्रोजेक्ट 6.7 किलोमीटर लंबे पुल का है, जिसे ग्रेटर मेल कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट (GMCP) के नाम से जाना जाता है।

भारत क्यों चिंतित है दक्षिण एशिया में विदेशी निवेश से
भारत सहित पूरी दुनिया जानती है कि कैसे बढ़े देश, छोटे देशों को कर्ज देकर वहां अपना अधिकार जमा लेते हैं। इसी का ताजा नतीजा श्रीलंका में देखने को मिल रहा है। श्रीलंका सरकार ने सदन में जो इकोनॉमिक कमीशन बिल संशोधनों के साथ पास किया, उसके मुताबिक कोलंबो में एक बाहरी देश, पोर्ट सिटी का निर्माण करेगा। ये सिटी 269 हेक्टेयर क्षेत्र में बनाई जाएगी। दावा है कि कोलंबो पोर्ट सिटी, श्रीलंका का पहला ‘स्पेशल इकोनॉमिक जोन’ यानी SEZ बनेगा। यहां हर देश की करेंसी में बिजनेस किया जा सकेगा। आपको बता दें, इस पोर्ट सिटी के कंस्ट्रक्शन का ठेका भी बाहरी देश की कंपनी को दिया जा चुका है।

पूर्वी अफ्रीका हो या पाकिस्तान, बांग्लादेश हो या नेपाल, कुछ बढ़े देश हमेशा से ही कर्ज देकर अपना विस्तार करते आए हैं। श्रीलंका पर तो उनकी पैनी नजर है। हम्बनटोटा को श्रीलंका पहले ही 99 साल की लीज पर दे चुका है। कोलंबो पोर्ट सिटी के साथ भी 99 साल की लीज की शर्त है। वर्तमान श्रीलंकन सरकार के साथ भारत के संबंध उतने बेहतर नहीं हैं, इसी कारण फरवरी में श्रीलंकन सरकार ने 2019 में तय हुए भारत-जापान और श्रीलंका के ट्रांसशिपमेंट प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया था। इसमें 51% शेयर श्रीलंका, जबकि 49% भारत और जापान के थे। बाहरी देशों के साम्राज्यवादी रूख के कारण भारत को अब पश्चिम और पूर्व के मोर्चों के साथ दक्षिण मोर्चे पर भी सतर्क रहना होगा, जहां अभी तक तुलनात्मक रूप से भारत सुरक्षित था।

क्षेत्र में शांति के लिए भारत को करना होगा इन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित
भारत को दक्षिण एशिया की शांति के लिए हिन्द महासागर क्षेत्र में प्रमुख शक्ति बना रहना होगा। इसके लिए भारत के सामने मुख्य रूप से निम्नलिखित चुनौतियां हैं-

> साम्राज्यवादी देशों की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स नीति का तोड़ निकालना
> हिन्द महासागर को एक संघर्ष मुक्त क्षेत्र बनाना और शांत महासागर के रूप में इसकी स्थिति को पुनः बहाल करना
> समुद्री मार्गों को सुरक्षित रखना, समुद्री लुटेरों और समुद्री आतंकवाद का सामना करना
> ब्लू इकोनॉमी पर अनुसंधान और व्यापार में वृद्धि करना

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