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चीन और वियतनाम से कच्ची अगरबत्ती के आयात पर प्रतिबंध लगने के बाद, देश में अगरबत्ती उद्योग को पुनर्जीवित करने के लिए सरकार ने नई पहल की है। खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) के सहयोग से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री नितिन गडकरी ने असम में बाजाली जिले में “केशरी जैव उत्पाद एलएलपी” नाम से एक प्रमुख बांस अगरबत्ती स्टिक बनाने की इकाई का उद्घाटन किया। इससे न सिर्फ भारतीय अगरबत्ती उद्योग को मजबूती मिलेगी बल्कि इस क्षेत्र में रोजगार बढ़ेगा और दूसरे देशों से आयात भी कम होगा।
दरअसल हाल ही में चीन और वियतनाम से कच्ची अगरबत्ती के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। साथ ही अगरबत्ती के लिए गोल बांस की छड़ पर आयात शुल्क में बढ़ोतरी के मद्देनजर असम में इन इकाइयों की स्थापना काफी महत्व रखती है। इन दो फैसलों को दो देशों से अगरबत्ती और बांस की लकड़ियों के आयात पर अनिवार्य रूप से रोक लगाने के लिए लिया गया था, जिनकी वजह से भारतीय अगरबत्ती उद्योगों को पंगु बना दिया था।
10 करोड़ रुपये की लागत से स्थापित
खास बात ये है कि यह इकाई “आत्मनिर्भर भारत” बनने की दिशा में एक बड़ा कदम है और अगरबत्ती बनाने के अलावा “कचरे से धन अर्जन” का एक उपयुक्त उदाहरण है। इसमें अपशिष्ट बांस का एक बड़ी मात्रा का उपयोग जैव-ईंधन और विभिन्न तरह के अन्य उत्पादों को बनाने में किया जाता है। 10 करोड़ रुपये की लागत से स्थापित, अगरबत्ती स्टिक बनाने की इकाई 350 लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करेगी, जबकि 300 से अधिक अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर भी पैदा करेगी।
सैकड़ों बंद इकाइयां पिछले डेढ़ वर्षों में हुईं पुनर्जीवित
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और केवीआईसी के अध्यक्ष विनय सक्सेना ने इन दोनों वस्तुओं के आयात पर अंकुश लगाने के लिए काफी प्रयास किए थे। परिणामस्वरूप, भारत में अगरबत्ती निर्माण की सैकड़ों बंद इकाइयां पिछले डेढ़ वर्षों में पुनर्जीवित हुईं और लगभग 3 लाख नए रोज़गार पैदा हुए हैं। केशरी जैव उत्पाद एलएलपी पहली बड़ी परियोजना है जो इन नीतिगत फैसलों के बाद आई है।
आत्मनिर्भर भारत का सबसे उपयुक्त उदाहरण
इस दौरान गडकरी ने असम में नई बांस की छड़ की इकाई बनने पर खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि इससे स्थानीय अगरबत्ती उद्योग को मजबूत करने में काफी मदद मिलेगी। उन्होने कहा कि इस क्षेत्र में स्थानीय रोजगार सृजन की बहुत बड़ी संभावना है। उन्होंने आगे कहा, “यह आत्मनिर्भर भारत का सबसे उपयुक्त उदाहरण है, जिसका उद्देश्य स्थानीय रोजगार और स्थायी आजीविका के अवसर पैदा करना है।”
10 लाख से अधिक कारीगरों को मिलता है रोजगार
केवीआईसी के अध्यक्ष विनय सक्सेना ने कहा कि कच्ची अगरबत्ती के आयात पर प्रतिबंध और बांस की अगरबत्ती पर आयात शुल्क में बढ़ोतरी से भारत में रोजगार के बड़े अवसर पैदा हुए हैं और इन नई इकाइयों का उद्देश्य इस अवसर को भुनाना है। उन्होंने आगे कहा, “अगरबत्ती उद्योग भारत के ग्राम उद्योग का एक प्रमुख कार्य क्षेत्र है जो 10 लाख से अधिक कारीगरों को रोजगार देता है। नई अगरबत्ती और बांस की छड़ बनाने वाली इकाइयां आने से, पिछले डेढ़ साल में इस क्षेत्र में लगभग 3 लाख नई नौकरियां पैदा हुई हैं।
इस अवसर से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए, केवीआईसी ने प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के माध्यम से भारत के स्थानीय अगरबत्ती उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए खादी अगरबत्ती आत्मनिर्भर मिशन नामक एक कार्यक्रम भी शुरू किया है। उन्होंने कहा कि नई अगरबत्ती बनाने की इकाई असम में बांस के विशाल उद्योग को भी मजबूती प्रदान करेगी।
अगरबत्ती की छड़ें बनाने के बाद बेकार बांस का भी होगा उपयोग
गौरतलब हो कि अगरबत्ती की छड़ें बनाने के लिए केवल 16 प्रतिशत बांस का उपयोग किया जाता है, जबकि शेष 84 प्रतिशत बांस बेकार चला जाता है। हालांकि, केशरी जैव उत्पाद एलएलपी द्वारा नियोजित विविध प्रौद्योगिकी के साथ, बांस के प्रत्येक टुकड़े को उपयोग में लाया जाता है। मीथेन गैस के उत्पादन के लिए अपशिष्ट बांस को जलाया जाता है जिसे वैकल्पिक ईंधन के रूप में डीजल के साथ मिलाया जाता है। जले हुए बांस का उपयोग अगरबत्ती और ईंधन के रूप में उपयोग के लिए लकड़ी का कोयला पाउडर बनाने के लिए भी किया जाता है। अपशिष्ट बांस का उपयोग आइसक्रीम-स्टिक, चॉपस्टिक, चम्मच और अन्य वस्तुओं को बनाने के लिए भी किया जाता है।
भारत में अगरबत्ती की खपत 1490 टन प्रति दिन
वर्तमान में, भारत में अगरबत्ती की खपत 1490 टन प्रति दिन आंकी गई है, लेकिन स्थानीय स्तर पर प्रतिदिन केवल 760 टन का उत्पादन होता है। इसलिए, मांग और आपूर्ति के बीच भारी अंतर के परिणामस्वरूप कच्ची अगरबत्ती का भारी मात्रा में आयात हुआ। नतीजतन, कच्ची अगरबत्ती का आयात 2009 में सिर्फ 2 प्रतिशत से बढ़कर 2019 में 80 प्रतिशत हो गया।