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देवरिया की शिल्पी ने सफलता के शिखर को छुआ

देवरिया । एक पिता ने बेटी के कामयाबी के लिए काम को छोटा और बड़ा नहीं समझा। पिता ने केवल देखा तो केवल अपनी बेटी की कामयाबी को। बेटी ने भी पिता के सपनों को सीमित संसाधनों में अपने हौसले की उड़ान भरने में जुट गई हैं। परिणाम स्वरुप दृष्टिहीन शिल्पी ने अपने पहले ही प्रयास में यूजीसी की परीक्षा में प्रथम स्थान लाकर नाम रोशन कर दिया।

बघौचघाट थाना क्षेत्र में बघौचघाट कस्बा के रहने वाले गोरख पाल के परिवार में पत्नी आरती देवी के दुनिया को अलविदा कह देने के बाद बच्चों की जिम्मेदारी पिता के ऊपर आ गई। पिता ने संघर्ष कर बच्चों की पढ़ाई के बाद धूमधाम से शादी किया। इनमें एक बेटा तेज बहादुर पाल (भाजपा) में सोशल मीडिया देवरिया में जिला संयोजक की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। जिम्मेदारियों को उठाते हुए बेटी बेबी की शादी धूमधाम से किया। धनश्याम पाल अपने पिता के कारोबार में हाथ बटा रहें। घर में सबसे छोटी बेटी ममता है। जबकि नेत्रहीन शिल्पी वर्तमान में यूजीसी में पहली ही बार में चयनित होकर परिवार का नाम रोशन कर रही है।

पिता ने बताया कि जब शिल्पी पांच वर्ष की थी एक दिन तबीयत खराब होने पर आंख की रोशनी चली गई। उसके बाद से मां-बाप इलाज के लिए दर-दर भटकते रहें, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। समय के साथ पिता ने हिम्मत नहीं हारी और शिल्पी को लेकर चिंतत रहने लगें। संयम के साथ शिल्पी ने भी हिम्मत नहीं हारी। पिता ने किसी तरह अपनी बेटी शिल्पी को दिल्ली लेकर अरमान के साथ पहुंचे। पिता को उम्मीद थी कि बेटी की ज्योति लौट आए और वह फिर से अपने सपनों को लेकर उड़ान भरेगी।

बेटी के लिए पिता ने दिल्ली में रह कर काम करते हुए अथक प्रयास किया। बेटी शिल्पी का नेवी हास्टल दिल्ली में शिक्षा के लिए दाखिला कराया। हाई स्कूल और इण्टर की परीक्षा को पास करने के बाद शिल्पी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। विश्व विद्यालय दिल्ली मेरीडा से ग्रेजुएशन की परीक्षा को पास किया और वर्तमान में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में एम.ए. हिन्दी अन्तिम वर्ष की विद्यार्थी है। बीते दिन राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा ‘यूजीसी नेट’ भारत में एक राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा दिसम्बर 2021 एवं जून 2022 में प्रथम बार परीक्षार्थी के रूप परीक्षा दी। जिसमें सम्पूर्ण परीक्षाफल 97.14 प्रतिशत रहा। इन्होंने अपने हौसल के दम यूजीसी में पहला स्थान हासिल किया। इसको लेकर चाहुओर चर्चा हो रही है कि पहली बार में ही दृष्टिबाधिर शिल्पी ने अपने हौसलों की उड़ान से पहली बार में ही प्रथम स्थान पाने में सफलता पा ली।

बचपन से है टॉपर, इलेक्ट्रानिक सामानों को बनाया कैरियर का आधार

शिल्पी बचपन से ही बेहद प्रतिभावान रही हैं। स्कूल से लेकर कॉलेज तक उन्होंने हमेशा टॉप करते चली आ रही है। शिल्पी नेत्रहीन होने के बाद भी मनोबल को ऊंचा रखा, मोबाइल और लैपटॉप में सॉफ्टवेयर लोड कर पढ़ाई शुरू किया। आज अपने सपनों की उड़ान को भर रही है। भाई तेज बहादुर पाल से बात की गई तो उन्होंने बताया कि परिवार के लिए बड़े गर्व की बात है, उच्च शिक्षा में बहन ने पास किया है।शिल्पी से बात की गई तो उन्होंने बताया कि हौसला हमेशा बुलंद रखना चाहिए, एक न एक दिन कामयाबी जरूर मिलेगी। गर्व की बात है कि जो पिता ने सपना देखा था उसे आज मैंने पूरा किया। आगे भी जो सपने देखें हैं उनके लिए उड़ान भरना है और उसे पूरा करना है।(हि.स.)

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