
- सोहर और कजरी से अश्लील डांस तक पहुँची भोजपुरी गायकी
- यूट्यूब पर करोड़ों व्यूज़, लेकिन समाज शर्मसार
- जब “लोकगीत” हुआ “लोलगीत” में तब्दील
भोजपुरी गीत-संगीत, जो कभी गाँव-देहात की आत्मा और संस्कृति की पहचान था, आज अपनी सबसे बड़ी मुश्किल से जूझ रहा है। सोहर, कजरी, चैता और बिरहा की परंपरा अब लगभग हाशिए पर है। उनकी जगह मोबाइल और यूट्यूब पर ऐसे गीतों ने ले ली है, जिनके बोलों में अश्लीलता और भद्दे इशारे भरे होते हैं। शादी-ब्याह और पारिवारिक आयोजनों में जहाँ कभी माँ-बहनों की टोली गाकर आनंद देती थी, वहीं आज डीजे पर बजने वाले फूहड़ गीतों से लोग असहज हो जाते हैं। समाज का कहना है कि भोजपुरी संगीत का यह बदला हुआ रूप न केवल बच्चों और युवाओं को गुमराह कर रहा है, बल्कि पूरे भोजपुरी समाज की छवि को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धूमिल कर रहा है।
कभी लोकगीतों की धरती
भोजपुरी क्षेत्र की पहचान हमेशा उसके लोकगीतों से रही है।
सोहर: बच्चे के जन्म पर गाया जाने वाला पावन गीत।
कजरी: सावन के मौसम में औरतों की टोली का उल्लास।
बिरहा: किसान-मजदूरों की पीड़ा और संघर्ष की गाथा।
चैता: चैत्र मास में गाँव-गाँव गूँजने वाला गीत।
भक्ति गीत: देवी-देवताओं की स्तुति और धार्मिक आस्था का प्रतीक।
इन गीतों में शब्दों की पवित्रता, भावनाओं की गहराई और सुरों की मिठास होती थी। शादी-ब्याह के मौके पर और खेत-खलिहानों में गाए जाने वाले गीत समाज की आत्मा थे।
भोजपुरी कहावत है— “गीतवा ना गइले त बियाह अधूरा।” यानी बिना गीत गाए शादी अधूरी मानी जाती थी।
लोक से फूहड़ तक का सफर
2004 में भोजपुरी फिल्मों के पुनर्जागरण के साथ गानों की लोकप्रियता भी बढ़ी। लेकिन 2008 के बाद तस्वीर बदलने लगी। एलबम संस्कृति का उदय हुआ। फिल्मों के गानों में लौंडा डांस और आइटम सॉन्ग की भरमार होने लगी। 2010 के बाद जब इंटरनेट और यूट्यूब हर हाथ में पहुँचा, तो गानों की दिशा तेजी से बदली। आज स्थिति यह है कि गानों के नाम से ही उनकी अश्लीलता झलकने लगती है।
गीतों की भाषा का पतन
पहले के गीतों में— खेत-खलिहान, पीपल-बरगद, गंगा-घाट और रिश्तों का जिक्र होता था। भावनाओं में मिठास और संवाद में अपनापन होता था।
आज के गीतों में— “कमर हिलाला”, “चोली फाड़ डाला”, “पलंगिया तोड़े दs” जैसे शब्द। अश्लील मजाक और शारीरिक अंगों का भद्दा वर्णन। लोकगायिका कहती हैं— “अब भोजपुरी गीत सुनकर लज्जा आती है। हमारी नातिन तक पूछती है कि दादी, ये लोग क्या गा रहे हैं? हम जवाब नहीं दे पाते।”
यूट्यूब और सोशल मीडिया का खेल
यूट्यूब पर अश्लील भोजपुरी गानों को करोड़ों व्यूज़ मिलते हैं।
कारण: थंबनेल में भड़काऊ तस्वीरें, डांस में अर्धनग्न दृश्य।
निर्माता–गायक यही समझ बैठे कि “फूहड़ता ही बिकती है”।
जबकि अच्छे लोकगीत डालने वाले कलाकार गुमनाम रह जाते हैं।
यानी व्यवसायिक लालच ने संस्कृति को निगल लिया।
समाज पर असर
शादी-ब्याह में डीजे पर अश्लील गाने बजते हैं।
बच्चे और किशोर इन्हें गुनगुनाते हैं।
परिवार असहज हो जाते हैं।
प्रवासी भोजपुरी समाज विदेशों में शर्मिंदगी महसूस करता है।
लंदन में बसे भोजपुरी समाज के नेता कहते हैं— “यहाँ जब लोग पूछते हैं कि भोजपुरी गाना सुनाओ, तो हमें डर लगता है। लोग सोचते हैं कि भोजपुरी मतलब गंदा गाना।”
कलाकारों की जिम्मेदारी
कई बड़े गायकों ने अश्लील गानों से करियर बनाया। पवन सिंह का “लॉलीपॉप लागेलू” भले सुपरहिट हुआ, लेकिन इसके बाद भोजपुरी गीतों की दिशा बिगड़ गई। आज अधिकांश युवा गायक वही ट्रेंड पकड़ते हैं। नतीजा- साफ-सुथरे गायकों को मंच ही नहीं मिलता।
समाधान की राह
लोकगायकों को सम्मान और अवसर मिलना चाहिए।
समाज को अश्लील गानों का बहिष्कार करना होगा।
सरकार और सेंसर को ऑनलाइन कंटेंट पर नियंत्रण कड़ा करना होगा।
कलाकारों को यह समझना होगा कि लंबे समय तक वही टिकेगा जो संस्कृति से जुड़ा होगा।
बॉक्स आइटम – कानून और यूट्यूब की लापरवाही
यूट्यूब की पॉलिसी अश्लील कंटेंट रोकने की है, लेकिन भोजपुरी गानों पर अमल नहीं होता।
थंबनेल में भड़काऊ तस्वीरें डालकर व्यूज़ बटोरे जाते हैं।
सेंसर बोर्ड का संगीत पर कोई नियंत्रण नहीं है।
नतीजा: भोजपुरी संगीत की छवि धूमिल होती जा रही है।
भोजपुरी संगीत ने अपनी आत्मा खो दी है। जहाँ कभी सोहर और बिरहा की गूंज होती थी, वहाँ अब फूहड़ डांस और अश्लील बोल गूंजते हैं। अगर यही चलता रहा तो आने वाली पीढ़ी भोजपुरी गीतों को संस्कृति नहीं, बल्कि शर्मिंदगी के रूप में याद करेगी। “भोजपुरी सिनेमा बचाओ” मुहिम का दूसरा दिन इसी चेतावनी के नाम— “संगीत की आत्मा बचाइए, फूहड़ता को ठुकराइए।”
भोजपुरी सिनेमा का पतन: जहाँ कभी गूंजते थे बिरहा-भजन, वहाँ अब अश्लीलता का बोलबाला
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