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सूर्यग्रहण मोक्ष काल के बाद बुधवार तड़के श्रद्धालु लगायेंगे गंगा में आस्था की डुबकी

वाराणसी । कार्तिक अमावस्या के दूसरे दिन मंगलवार को खंड सूर्यग्रहण लगेगा। सूर्य ग्रहण को लेकर श्रद्धालु दीपावली पर्व के खुशियों के बीच भी संजीदा दिखे। लोग सूर्यग्रहण के मोक्षकाल के बाद गंगा स्नान और दानपुण्य की तैयारियां भी करते रहे। गंगा घाटों पर भी इसको लेकर सजग दिखे। गंगा में बढ़े पानी के चलते श्रद्धालुओं को गंगा स्नान में परेशानी का भी सामना करना पड़ेगा। बावजूद आस्थावान गंगा स्नान के लिए तैयार दिखे। सूर्यग्रहण के चलते मंगलवार तड़के 4.42 बजे सूतक लग जाएगा। इसमें मंदिरों का कपाट पहले से ही बंद है। इस काल में देव स्पर्श, पूजन, भोग-आरती वर्जित है।

ज्योतिषविदों के अनुसार तुला राशि, स्वाति नक्षत्र पर लगने वाले खंड सूर्य ग्रहण का भारत में स्पर्श शाम 4.22 बजे हो रहा है। काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास परिषद के अनुसार ग्रहण का मध्य 5.14 बजे तो मोक्ष 6.32 बजे होगा। हालांकि ग्रहण काल में ही 5.37 बजे सूर्यास्त हो जा रहा है। इसे ‘ग्रस्ताग्रस्त’ ग्रहण कहते हैं। ऐसे में ग्रहण से निवृत्ति अगले दिन 26 अक्टूबर को सूर्योदय काल में सुबह 6.02 बजे मानी जाएगी।

श्री काशी विश्वनाथ धाम में मंगलवार 25 अक्टूबर को अपरान्ह 3.30 से 26 अक्टूबर को सूर्योदय तक बाबा का दरबार आम श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिया जायेगा। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में 25 अक्टूबर को सायंकाल होने वाली सप्तर्षि आरती, श्रृंगार भोग आरती, शयन आरती नहीं होगी। इस समय भी श्रद्धालुओं का मंदिर में प्रवेश वर्जित किया गया है। 26 अक्टूबर बुधवार को प्रात: मोक्ष पूजा और मंगला आरती के बाद मंदिर का पट आम लोगों के लिए खुल जायेगा।

खगोल विदों के अनुसार, भारत में पूर्व व पूर्वोत्तर अंडमान निकोबार दीप समूह, इम्फाल, कोहिमा, इटानगर, डिब्रूगढ़, शिवसागर, सिलचर में सूर्यग्रहण नहीं दिखेगा। भारत के अतिरिक्त इसे यूरोप, मध्य पूर्व उत्तरी अफ्रीका, पश्चिम एशिया, उत्तर हिंंद महासागर, उत्तरी अटलांटिक महासागर में देखा जाएगा। वैश्विक समयानुसार सूर्यग्रहण आरंभ दिन में 2.29 बजे, मध्य 4.30 बजे, मोक्ष शाम 6.52 बजे होगा। इस वर्ष चार ग्रहण में दो ग्रहण भारत में देखा जायेगा। इसमें पहला 25 अक्टूबर को खंड सूर्य ग्रहण भारत में ग्रस्तास्त सूर्य ग्रहण के रूप में दृश्य हो रहा तो दूसरा कार्तिक पूर्णिमा आठ नवंबर को खग्रास चंद्रग्रहण भारत में ग्रस्तोदित चंद्रग्रगण के रूप में देखा जाएगा।

ज्योतिषविदों के अनुसार, एक पखवारे के अंदर दो ग्रहण शुभ नहीं माना जाता। महाभारत काल में भी एक पखवारे में दो ग्रहण पड़े थे। इसका प्रभाव महायुद्ध, महामारी, प्राकृतिक आपदा, दैवीय आपदा के रूप में देखने को मिलता है।(हि.स.)

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