Opinion

म्यांमार का बिखराव : भारत का संकट

भारतीय हितों के समक्ष नया संकट

  • कैप्टेन आर. विक्रम सिंह

म्यानमार भीषण गृहयुद्ध से गुजर रहा है. सरकार की सेनाएं जिन्हें तत्मादव कहा जाता है, पराजय की कगार पर हैं. 26 जून को नयी दिल्ली में म्यांमार के उपप्रधानमंत्री यू थान श्वे की हमारे विदेशमंत्री जयशंकर से गंभीर चर्चा हुई. म्यांमार की सैनिक जुंता ने 1फरवरी 2021 को जनता द्वारा निर्वाचित चांसलर आंग सान सू की सरकार को बरखास्त किया था, यह विद्रोह उसका परिणाम है. सीमावर्ती क्षेत्रों के काचिन, सैगाइन, चिन और राखिने राज्यों में विद्रोहियों से लगातार पराजित हो रही हैं. सितवे से होकर बन रहा भारत का पूर्वोत्तर से व्यापार का नया व्यवसायिक समुद्री व सड़क मार्ग भी विद्रोही सेनाओं की गतिविधियों प्रभावित हो रहा है. हमें सितवे का कन्सुलेट बंद करना पड़ा है. राजनयिक वापस बुला लिए गये हैं. वहां के शरणार्थी जिनमें सरकारी सैनिक भी हैं, भाग कर मिजोरम में आ रहे हैं.

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हंसीना, जो अभी भारत यात्रा पर थीं, ने कुछ दिन पूर्व एक बड़ा बयान दिया था कि एक बड़ी शक्ति म्यांमार व बांग्लादेश के हिस्सों को लेकर एक ईसाई राज्य स्थापित करने की योजना बना रही है. उन्होंने यह भी कहा कि सेंट मार्टिन द्वीप लीज पर देने के लिए उन पर दबाव है. एक गोरे प्रतिनिधि ने उनसे कहा कि यदि वे सहयोग करेंगी तो उनके चुनावों पर कोई आपत्ति नहीं होगी वरना उनके लिए बहुत सी समस्यायें खड़ी होगी. कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि वह देश कौन सा हो सकता है. बांग्लादेश के सेंट मार्टिन आइलैंड को लीज पर लेने के लिए अमेरिकी दबाव की बातें मीडिया खूब चली हैं. शेख हंसीना ने किसी सभा में कहा भी कि वे देश को किराये पर देने नहीं आई हैं.

सेंट मार्टिन द्वीप बांग्लादेश व म्यांमार दोनों की सीमाओं के अतिनिकट बंगाल की खाड़ी में स्थित है. यहां से इस पूरे इलाके की निगरानी की जा सकती है. म्यांमार के संकट में चीन द्वारा विद्रोहियों को अस्त्र-शस्त्र दिये जाने की सूचना है. दूसरी ओर अमेरिका की कोई भूमिका ही नहीं बन पा रही है.अमेरिका यदि असल में भारत का रणनैतिक भागीदार है तो म्यांमार संकट के समाधान में अमेरिका को भारतीय हित का पक्षधर होना चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं दिख रहा है. यदि म्यांमार चीन के पाले में चला गया तो म्यामांर के बंदरगाहों से हिंद महासागर में चीन के खुले प्रवेश की संभावना बन जाएगी और इस तरह वह मलक्का जलडमरूमध्य की बाधा का विकल्प तलाश लेगा. साथ ही अपने पूंजी निवेश व दोहन के लिए पाकिस्तान के समान उसे म्यांमार जैसा देश भी मिल जाएगा.

अब यहां शेख हंसीना के बयान कि इस क्षेत्र में एक ईसाई देश बनाने का प्रयास हो रहा है, का परीक्षण किया जाये. यह प्रयास 1941- 47 में भी ब्रिटिश क्राउन कालोनी संरक्षित राज्य के रूप में किया गया था लेकिन बदले वातावरण एवं भागने की जल्दी में वे इसे लागू न कर सके. भारत के पूर्वोत्तर के राज्य नागालैंड मणिपुर एवं मिजोरम को सीधे स्पर्श करते हुए म्यामांर के तीन राज्य हैं. वे हैं काचिन, जो चीन की सीमा के दक्षिण में है एवं म्यांमार का उत्तरी राज्य है. फिर सैगाइन राज्य है, उसके बाद चिन राज्य आता है. अब इनकी जनसांख्यिकी को देखें. चिन राज्य जो मिजोरम व मणिपुर से मिलता है वहां ईसाई आबादी 85% है.

काचिन राज्य जो अरुणांचल प्रदेश व नागालैंड से मिलता है, वहां ईसाई आबादी तेजी से बढ़ कर 80% पहुंच रही है. हमारे यहां मणिपुर के मैतेईयों व कूकियों के मध्य में विवाद का मूल यही चिन राज्य क्षेत्र है. कूकी, चिन जाति की ही एक शाखा हैं. अब इनसे लगे अपने सीमावर्ती राज्यों नागालैंड मणिपुर व मिजोरम में ईसाई आबादी क्रमशः 80%, 45% व 87% हैं. इसी कारण अब इस क्षेत्र में म्यांमार की कमजोर डावांडोल राजनैतिक स्थिति का लाभ उठा कर एक ईसाई राज्य कायम करने की संभावना हवा में तैरने लगी है. म्यांमार का 85% ईसाई आबादी का चिन राज्य तो पहले से उपलब्ध है ही. उसे समुद्र तक पहुंचे के लिए म्यांमार के राखिने राज्य व बांग्लादेश के चटगांव प्रायद्वीप की भूमि की भी आवश्यकता पड़ेगी. यहीं पर भारत का महत्वाकांक्षी सितवे कलादान प्रोजेक्ट भी पूर्ण होने के निकट है. यहां के एक बड़े शहर पलेटवा पर पिछले माह विद्रोही डिफेंस फोर्सेज का कब्जा हो भी चुका है. भारत के हित के विरुद्ध विषम स्थितियां बन रही हैं.

कहने का तात्पर्य यह कि जो लोग इस क्षेत्र में एक ईसाई राज्य के रणनीतिकार हैं, ब्रिटिश योजना निश्चय ही उनकी जानकारी में है. कमजोर होता म्यांमार, गृहयुद्ध की परिस्थितियों में तो अपनी मुख्य भूमि को सुरक्षित करने में ही अपने संसाधन लगायेगा. हमारी सीमा से जुड़े म्यांमार के ईसाई क्षेत्रों पर उनकी सत्ता का कमजोर होना हमारे लिए एक बहुत बड़ा संकट लेकर आ गया है. चिंता का सबसे बड़ा कारण यह बन रहा है कि इस बिंदु पर आकर पश्चिमी लाबी के हित, ईसाई मिशनरी हित तो एक हो ही रहे है और इसी के साथ हमारे देश के वे विपक्षी राजनैतिक हित भी संयुक्त हो जा रहे हैं जिन्होंने गत दिनों मणिपुर में हिंदू ईसाई विभेद को बढ़ाने का काम किया था.

भारत विभाजन के दौर का यह तथ्य प्रकाश में आया है कि भारत को दो ही नहीं तीन भागों में विभाजित करने की योजना थी. मिशनरियों की मांग पर भारत पूर्वोत्तर के एवं म्यांमार के ईसाई हो रहे राज्यों को मिला कर ‘क्राउन कालोनी संरक्षित राज्य’ बनाने की योजना असम के तत्कालीन गवर्नर राबर्ट रीड एंड्रू ग्लो ने प्रस्तुत की थी. लेकिन कांग्रेस के नेता गोपीनाथ बारदोलाई के विरोध के कारण असम को पूर्वी बंगाल के समूह से अलग करना पड़ा. फलतः अंग्रेजों को कैबिनेट मिशन की तीसरी सूची संशोधित करनी पड़ी थी. यदि असम पूर्वी बंगाल के साथ पूर्वी पाकिस्तान के समूह में चला जाता तब पूर्वोत्तर में एक संरक्षित ईसाई राज्य की भूमिका बन जाती. अब 75 वर्ष बाद पुनः उसकी संभावनाएं तलाशी जा रही है.

जार्ज सोरेस और भारत विरोधी शक्तियों की मोदी सरकार को सत्ता से बाहर करने की योजना यदि सफल हो जाती तो म्यांमार के विखंडन व बांग्लादेश में विद्रोही शक्तियों को उभार कर ऐसी स्थितियां बना दी जातीं जिसमें 75 वर्ष पहले का ईसाई राज्य बनाने का ब्रिटिश साम्राज्यवादी एजेंडा अंततः सफल हो सकता था. सौभाग्य है कि षड़यंत्रकारी सफल नहीं हुए. पूर्वोत्तर में भारत की सीमाओं के म्यांमार क्षेत्र में यदि एक ईसाई राज्य अस्तित्व में आ जाता है तो वह भारत के ईसाइयों के लिए वही भूमिका अदा करेगा जो पाकिस्तान भारत के मुस्लिम समाज के लिए 1947 से करता आया है. हमारे विदेशमंत्री जयशंकर ने कहा है कि हम म्यांमार में लोकतंत्र बहाली के लिए हर संभव सहयोग करेंगे. यह एक तीसरा मोर्चा है जो म्यांमार के साथ भारत के लिए भी बड़ा संकट लेकर आया है. इस संकट से पार पाना, बहुत कुछ हमारे नीतिगत व रणनैतिक क्षमता पर निर्भर है.

 

कैप्टेन आर. विक्रम सिंह
पूर्व सैनिक पूर्व प्रशासक.

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