Opinion

हिंदवी स्वराज जनक: छत्रपति शिवाजी महाराज

हेमेन्द्र क्षीरसागर, पत्रकार, लेखक व स्तंभकार

हिंदवी स्वराज प्रणेता: श्रीमंत योगी छत्रपति शिवाजी महाराज निर्विवाद रूप से 1674–1680 तक भारत के सबसे महान राजाओं में से एक हैं। उनकी युद्ध प्रणालियाँ आज भी आधुनिक युग में अपनायीं जातीं हैं। उन्होंने अकेले दम पर मुग़ल सल्तनत को चुनौती दी थी। शाश्वत, माता जीजा बाई, पिता शाहजी भोंसले के पुत्र शिवाजी भोंसले का अवतरण 19 फरवरी, 1630 को पावन धरा शिवनेरी किला, पुणे जिला, महाराष्ट्र में हुआ था। जीवन साथी साई बाई, सोयारा बाई, पुतला बाई, सकवर बाई, लक्ष्मीबाई, काशीबाई। उनकी संभाजी, राजाराम, सखु बाई निम्बालकर, रणु बाई जाधव, अंबिका बाई महादिक और राजकुमार बाई शिर्के संतानें थी। अपनी बहादुरी, रणनीति और प्रशासनिक कौशल के लिए प्रसिद्ध, परम प्रतापी योद्धा शिवाजी महाराज ने 3 अप्रैल, 1680 को कैसे प्राण त्यागे असंमजस है।

कुशल सेनापति

प्रेरक, शिवाजी भोंसले को पूना में उनकी माँ और काबिल ब्राह्मण दादाजी कोंडा-देव की देखरेख में पाला गया। जिन्होंने उन्हें एक विशेषज्ञ सैनिक और एक कुशल प्रशासक बनाया था। शिवाजी महाराज, गुरु रामदास से धार्मिक रूप से प्रभावित थे, जिन्होंने उन्हें अपनी मातृभूमि पर गर्व करना सिखाया था। 17वीं शताब्दी की शुरुआत में नए योद्धा वर्ग मराठों का उदय हुआ। जब पूना जिले के भोंसले परिवार को सैन्य के साथ-साथ अहमदनगर साम्राज्य का राजनीतिक लाभ मिला था। भोंसले ने अपनी सेनाओं में बड़ी संख्या में मराठा सरदारों और सैनिकों की भर्ती की थी जिसके कारण उनकी सेना में बहुत अच्छे लड़ाके सैनिक हो गये थे। शिवाजी एक न केवल एक कुशल सेनापति, एक कुशल रणनीतिकार और एक चतुर कूटनीतिज्ञ था बल्कि एक कट्टर देशभक्त भी थे। उन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए औरंगजेब जैसे बड़े मुग़ल शासक से भी दुश्मनी की थी।

भारतीय नौसेना के पिता

प्रासंगिक, शिवाजी बहुत बुद्धिमान थे और उन्हे यह कतई मंजूर नहीं था की लोग जात पात के झगड़ों में उलझे रहे। वह किसी भी धर्म के खिलाफ नही थे। उनका नाम भगवान शिव के नाम से नही अपितु एक क्षेत्रीय देवता शिवाई से लिया गया है। उन्होंने एक शक्तिशाली नौसेना का निर्माण किया था। इसलिए उन्हें भारतीय नौसेना के पिता के रूप में जाना जाता है। अपने प्रारंभिक चरणों में ही उनको नौ सैनिक बल के महत्व का एहसास हो गया था। क्योंकि उन्हें यकीन था कि यह डच, पुर्तगाली और अंग्रेजों सहित विदेशी आक्रमणकारियों से स्वतंत्र रखेगा। समुद्री डाकुओं से कोंकण तट की भी रक्षा करेगा। यहाँ तक कि उन्होंने जयगढ़, विजयदुर्ग, सिन्धुदुर्ग और अन्य कई स्थानों पर नौसेना किलों का निर्माण किया।

नि: शुल्क राज्य की स्थापना

आदर, शिवाजी महिलाओं के सम्मान के कट्टर समर्थक थे। उन्होंने महिलाओं के खिलाफ दृढ़ता से उन पर हुई हिंसा या उत्पीड़न का विरोध किया था। उन्होंने सैनिकों को सख्त निर्देश दिये थे कि छापा मारते वक्त किसी भी महिला को नुकसान नही पहुचना चाहिए। यहा तक कि अगर कोई भी सेना में महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करते वक्त पकड़ा गया तो गंभीर रूप से उसे दंडित किया जाएगा। उनकी खासियत थी की वह अपने राज्य के लिए बादमें लड़ते थे पहले भारत के लिए लड़ते थे। उनका लक्ष्य था नि: शुल्क राज्य की स्थापना करना और हमेशा से अपने सैनिकों को प्रेरित करना की वह भारत के लिए लड़े और विशेष रूप से किसी भी राजा के लिए नहीं। अतुलनीय, छत्रपति शिवाजी महाराज के विराट व्यक्तित्व, कृतित्व, अस्तित्व और उनके महान अवदान को भारत वर्ष कभी नहीं भूल पाएगा।

एक भारत-श्रेष्ठ भारत

स्तुत्य, ‘हिंदवी स्वराज’ के जनक छत्रपति शिवाजी महाराज ने हमेशा भारत की एकता और अखंडता को सर्वोपरि रखा। आज ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ की दृष्टि में शिवाजी महाराज के विचारों का ही प्रतिबिंब देखा जा सकता है। सैंकड़ों वर्षों की गुलामी ने देशवासियों से उनका आत्मविश्वास छीन लिया था। ऐसे समय में लोगों में आत्मविश्वास जगाना एक कठिन कार्य था। उस दौर में छत्रपति शिवाजी महाराज ने ना केवल आक्रमणकारियों का मुकाबला किया बल्कि जन मानस में यह विश्वास भी कायम किया कि स्वयं का राज संभव है। फलीभूत स्वाधीनता के अमृत काल में राष्ट्रीय एकता- अखंडता, सांस्कृतिक, उत्कर्ष को लेकर शिवाजी महाराज का जीवन चरित्र राष्ट्र निर्माण, पुनरुत्थान के लिए सदा-सर्वदा अनुकरणीय और कालजयी रहेगा। जय शिवाजी!

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