
जौनपुर को एक हफ्ते पहले से ही मालूम था स्वामी प्रसाद का खेला
भाजपा को लात मारकर सपा में जाने वाले बागी नेताओं को उनकी ही बिरादरी का समर्थन मिलना ख्याली पुलाव ?
- अरविन्द उपाध्याय
जौनपुर। उत्तर प्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनाव में जी जान से जुटे सियासी नेता ‘बम और पटाखे’ फोड़ने में जुटे हैं। ऐसा ही बम फोड़ा है पिछड़ा वर्ग की एक जाति की सियासत करने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य ने कि वे भाजपा का सूपड़ा साफ करने तक चुप नहीं बैठेंगे। इस नेता का भावी खेल तो जौनपुर में करीब एक हफ्ते पहले ही जाहिर हो चुका था। पिछले गुरुवार को जौनपुर शहर में प्रदेश के तत्कालीन श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य एक सरकारी कार्यक्रम में श्रमिकों के बच्चों को पांच सौ साइकिल बांटने आए थे और उसी दिन शहरी क्षेत्र के चाचकपुर मुहल्ले की फूल मंडी में बिरादरी के लोगों ने उनका सपा में जाना तय बताना शुरू कर दिया था। वह भी पूरे भरोसे और गारंटी के साथ। हालांकि बताने वालों ने अपने लोगों की निष्ठा न बदलने का भी दावा किया।

“इस बार बीजेपी वाले ऐसा हिट हुए कि हमारे इन नेताओं की स्ट्रेटजी ही नहीं समझ पाए।” एक हफ्ते बाद इसी शुक्रवार को लखनऊ में पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य की अगुवाई में बागी भाजपा नेताओं के स्वागत करते समय यह टिप्पणी करते हुए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पूरी तरह गदगद् थे। उन्होंने भाजपा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की काल्पनिक खराब हालत पर जम कर तंज कसे। अपनी और नये सियासी साथियों के पैंतरों से ‘मन में लड्डू फोड़ रहे’ अखिलेश यादव ने सपा कार्यालय पर हुई रैली में राय जाहिर की कि अगर इस पाला बदल की भाजपा नेताओं को पहले भनक लगी होती तो वे डैमेज कंट्रोल करने के लिए न जाने क्या क्या करते। उन्होंने रैली में मौजूद पत्रकारों की तरफ मुड़ कर चुटकी भी ली, कहा कि “इस बार तो आपको भी खबर नहीं लगी।”
अपने पाले के नेताओं को लेकर भाजपा छोड़ सपा में जाने के स्वामी प्रसाद मौर्य का यह खेल क्या वाकई एक ऐसी सियासी स्ट्रेटजी थी कि भाजपा को इसकी हवा तक नहीं लगी। कम से कम अपनी सरकार बनाने का सपना देख रहे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की बात से तो यही लगता है। शायद यह सच नहीं है क्योंकि जौनपुर शहर के मौर्य बाहुल्य चाचकपुर क्षेत्र से निकल कर चर्चा का विषय बने इस प्रकरण की जानकारी जौनपुर भाजपा तक न पहुंची हो, संभव नहीं लगता। लेकिन इस मुद्दे को लेकर कुछ सवाल भी खड़े हो रहे हैं। पहला सवाल यह है कि क्या बूथ स्तर पर वर्षों से लगातार अपनी पहुंच और पकड़ तैयार कर रही भाजपा का सूचना तंत्र इतना कमजोर है कि उसे स्वामी प्रसाद एण्ड कम्पनी के पाला बदलने की भनक नहीं थी? अगर ऐसा नहीं है तो दूसरा सवाल खड़ा होता है कि क्या जमीनी कार्यकर्ताओं और नेतृत्वकर्ता नेताओं के बीच संवाद हीनता का माहौल है? अगर यह भी नहीं है तो तीसरा सवाल यह खड़ा होता है कि क्या मालूम होते हुए भी स्वामी प्रसाद मौर्य के खेल को रोकने की प्रभावी कोशिश नहीं की गई? या स्वामी प्रसाद एण्ड कम्पनी के पाला बदलने को भाजपा अधिक महत्व नहीं दे रही थी इसलिए जानते हुए भी उसकी उपेक्षा कर दी गई।
पिछड़ी जातियों के इन नेताओं के पाला बदल से सपा को कितना फायदा और भाजपा को कितना नुक़सान होता है यह तो आसन्न विधानसभा चुनाव की मतगणना के बाद ही पता चलेगा लेकिन फिलहाल तो सपा खेमे में जश्न का माहौल है। सपा नेताओं के हौसले लगातार बुलंद होते जा रहे हैं। उन्हें आने वाले हर दिन में उत्तर प्रदेश का सिंहासन अपने और करीब आने की आहट सुनाई देने लगी है। वैसे भाजपा की रणनीति पर पैनी नजर रखने वाले एक राजनीतिक समीक्षक की राय कुछ अलग ही है। बकौल समीक्षक, भाजपा को छोड़कर ढोल ताशे की धुन पर झूमते हुए समाजवादी पार्टी में जाने वाले पिछड़ा वर्ग की अलग-अलग जातियों के इन नेताओं को शायद अपनी खिसक चुकी उस जमीन की ही जानकारी नहीं है, जिसके नाम की वे पांच साल तक मलाई खाते रहे। पांच साल पहले उनके पीछे खड़ी भीड़ उन्हें पूरे कार्यकाल भर अपने में मग्न सिर्फ ऐश करते हुए देखती रही।
इन नेताओं को अपनी बिरादरी के आम लोगों तक सम्पर्क का मौका तक नहीं मिला। योगी सरकार में ऐसे अधिकतर नेताओं की यह शिकायत रही है उनकी सुनवाई ही नहीं होती, अधिकारी उनका काम करने में उदासीनता दिखाते हैं। अगर इस बात में दम है तो इन नेताओं के समर्थन में कितने लोग खड़े मिलेंगे। आखिर उसे अपना नेता कोई क्यों मानेगा जो उसके काम न आ सके, जो उसका फायदा न करा पाए, जो उसके मौके पर काम न आ सके।