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गंगा सप्तमी पर ही मां गंगा स्वर्ग लोक से भगवान शिव की जटाओं में पहुंची थीं

रवि -पुष्य योग का बन रहा संयोग,दशाश्वमेधघाट पर होगा मां गंगा का दुग्धाभिषेक

वाराणसी । वैशाख शुक्ल सप्तमी के दिन ही मां गंगा स्वर्गलोक से भगवान शिव की जटाओं में पहुंची थीं। इसलिए इस दिन मां गंगा का अवतरण दिवस मनाया जाता है। कहा जाता है कि मां गंगा का प्रवाह इतना तीव्र व शक्तिशाली था कि उसके कारण समूची पृथ्वी का सन्तुलन बिगड़ सकता था। ऐसे में गंगा के वेग को नियन्त्रित करने के लिए भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में धारण कर लिया। कुछ समय बाद भगवान शिव ने देवी गंगा को जटाओं से मुक्त किया ताकि वह भागीरथ के पूर्वजों की श्रापित आत्माओं को शुद्ध करने का अपना उद्देश्य पूरा कर सके।

सनातन धर्म में मान्यता है कि गंगा सप्तमी पर गंगा में डुबकी लगाने से सभी प्रकार के कष्टों से छुटकारा मिलने के साथ पापों से भी मुक्ति मिलती है। गंगा सप्तमी तिथि शनिवार को अपरान्ह 02:56 बजे से प्रारम्भ हो रही है। सप्तमी तिथि कर समापन 08 मई दिन रविवार को शाम 05 बजे होगा। शिवाराधना समिति के संस्थापक अध्यक्ष डॉ.मृदुल मिश्र ने बताया कि सप्तमी की उदया तिथि रविवार को है। ऐसे में गंगा सप्तमी रविवार को मनाई जायेगी। इस बार सप्तमी और रविवार का दिन बेहद खास है। वैशाख शुक्ल सप्तमी के दिन सुबह से 8 बजकर 58 मिनट तक रवि पुष्य योग है । ऐसे में स्नान पर्व का विशेष महत्व है।

उन्होंने बताया कि गंगा सप्तमी के दिन गंगा में स्नान करना अत्यधिक शुभ माना जाता है। गंगा स्नान के बाद दान पुण्य भी करना चाहिए। गंगा सप्तमी पर काशी में दशाश्वमेधघाट पर मां गंगा का पूजन और दुग्धाभिषेक गंगोत्री सेवा समिति की ओर से भव्य रूप से किया जाता है। निधि के संस्थापक पं. किशोरी रमन दुबे उर्फ बाबू महाराज की देखरेख में शाम को भव्य गंगा आरती भी होती है। गंगा सेवा निधि की आरती भी श्रद्धालुओं में विशेष आकर्षण का केन्द्र रहती है।(हि.स.)

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