बरसाने से कम नहीं है गोरखपुर की होली,आसमान से बरसते रंग के रंग में रंग जाती है सड़क
उड़ते अबीर-गुलाल से हवा भी हो जाती है रंगीन .रथ पर सवार गोरक्षपीठाधीश्वर करते हैं रंगभरी होलिकोत्सव शोभायात्रा की अगुवाई .लोग ही रथ को खींचते हैं और आगे-पीछे होते हैं हजारों लोग.
लखनऊ । आसमान से रंगों की बारिश। हवा में उड़ता अबीर-गुलाल। वह भी इस कदर कि हवा अबीर- गुलाल के रंग में और सड़कें छतों से बरस रहे रंगों के रंग में रंग जाती हैं। लोग तो रंगे होते ही हैं। यूं कह लें कि रंगों से सराबोर।होली के दिन सुबह करीब 8 बजे से दोपहर तक करीब 6 से 7 किलोमीटर तक की दूरी पर जहां से शोभायात्रा गुजरती है गोरखपुर की उन सड़कों पर यही मंजर होता है। इसकी कल्पना वही कर सकता है जो होली की इस शोभायात्रा में शामिल हुआ हो, या जिसने इसे देखा हो।
रथ पर सवार गोरक्षपीठाधीश्वर, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। रथ के आगे-पीछे रंग और गुलाल में सराबोर हजारों लोग। वाकई में यह दृश्य खुद में अनूठा है। उल्लास और उमंग के लिहाज से यह लगभग वृंदावन की बरसाने या कहीं की भी नामचीन होली जैसा ही होता है। मुख्यमंत्री बनने के बाद सुरक्षा संबंधी कारणों से योगी अब पूरी यात्रा में शामिल नहीं होते लेकिन शुभारंभ उनकी ही अगुवाई में होता है। उनकी उपस्थिति में शाम को गोरखनाथ मंदिर में होली मिलन कार्यक्रम भी होता है।
गोरखपुर की इस होली का नाम है, “भगवान नरसिंह की रंगभरी शोभायात्रा”। परंपरा के अनुसार होली के दिन रथ पर सवार होकर इस शोभायात्रा का नेतृत्व गोरक्षपीठाधीश्वर करते हैं। पीठाधीश्वर के रूप में योगी आदित्यनाथ वर्षों से इसकी अगुवाई करते रहे हैं।वैश्विक महामारी कोरोना के दो साल को अपवाद मान लें तो मुख्यमंत्री बनने के बाद भी योगी इस परंपरा को निभाते रहे हैं। रथ को लोग खींचते हैं और रथ के आगे-पीछे हजारों की संख्या में लोग शामिल होते हैं। जिस रास्ते से ये रथ गुजरता है। वहां छत से महिलाएं और बच्चे गोरक्षपीठाधीश्वर और यात्रा में शामिल लोगों पर रंग-गुलाल फेंकते हैं। बदले में इधर से भी उन पर भी रंग-गुलाल फेंका जाता है।
नानाजी ने डाली थी होली की यह अनूठी परंपरा
अनूठी होली की यह परंपरा करीब सात दशक पहले नानाजी देशमुख ने डाली थी। बाद में “नरसिंह शोभायात्रा” की अगुवाई गोरखनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर या पीठ के उत्तराधकारी करने लगे। लोगों के मुताबिक कारोबार के लिहाज से गोरखपुर का दिल माने जाने वाले साहबगंज से इसकी शुरुआत 1944 में हुई थी। शुरू में गोरखपुर की परंपरा के अनुसार इसमें कीचड़ का ही प्रयोग होता है। हुड़दंग अलग से। अपने गोरखपुर प्रवास के दौरान नानाजी देशमुख ने इसे यह नया स्वरूप दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सक्रिय भागीदारी से इसका स्वरूप बदला, साथ ही लोगों की भागीदारी भी बढ़ी।
घंटाघर से शुरू होती है रंग भरी होली यात्रा
होली के दिन भगवान नरसिंह की शोभायात्रा घंटाघर चौराहे से शुरू होती है। जाफराबाजार, घासीकटरा, आर्यनगर, बक्शीपुर, रेती चौक और हिंदी बाजार होते हुए घंटाघर पर ही जाकर समाप्त होती है। होली के दिन की इस शोभायात्रा से एक दिन पहले पांडेयहाता से होलिका दहन शोभायात्रा निकाली जाती है। इसमें भी गोरक्षपीठाधीश्वर परंपरागत रूप से शामिल होते हैं। यहां वह फूलों की होली खेलते हैं और एक सभा को भी संबोधित करते हैं। कल भी यह कार्यक्रम उनकी अगुवाई में हुआ था। पिछले साल (2022) योगी की अगुआई में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में रिकॉर्ड जीत के बाद होने वाले होली के इस आयोजन का रंग स्वाभाविक रूप से और चटक था। इस बार भी होगा। क्योंकि उन्होंने सर्वाधिक समय तक देश की सबसे अधिक आबादी वाले प्रदेश का लगातार मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड जो बनाया है। पार्टी के अलावा लोंगों में भी इसको लेकर अभूतपूर्व उत्साह है। उसी अनुरूप तैयारियां भी हैं।