हिंदी दिवस:उर्दू के नामचीन शायर फिराक गोरखपुरी, अंग्रेजी के बड़े पत्रकार प्रीतिश नंदी और मशहूर गजलकार दुष्यंत कुमार की नजर में हिंदी
हिंदी और फिराक गोरखपुरी को लेकर एक सवाल अक्सर उठता है, क्या वह हिंदी विरोधी थे। ऐसा इसलिए, क्योंकि उनका नाम दुनिया में उर्दू के नामचीन शायरों में होता है। वह फारसी के भी जानकर थे, अपनी अंग्रेजी पर उनको नाज था। इस बाबत कभी उन्होंने कहा था कि “भारत में अंग्रेज़ी सिर्फ़ ढाई लोगों को आती है। एक मुझे, दूसरे डॉ. राजेंद्र प्रसाद और जवाहर लाल नेहरू को आधी आती है।”
#कई भाषाओं के जानकार होने के बावजूद हिंदी सबसे प्यारी थी
सच तो यह है कि अरबी, फारसी, उर्दू, संस्कृत और हिंदी पर समान रूप से मजबूत पकड़ होने के बावजूद उन्हें हिंदी से सर्वाधिक प्यार था। सूरदास और तुलसीदास उन्हें सर्वाधिक पसंद थे। उनकी नजरों में तुलसी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ कवि थे।
#छायावाद की संस्कृतनिष्ठ हिंदी से था फिराक का विरोध
फिराक का विरोध उस हिंदी से था, जिसे संस्कृतनिष्ठ कर उस समय कठिन बनाया जा रहा था। दरअसल वह उस समय के छायावादी कवियों द्वारा प्रयोग की जाने वाली हिंदी से खफा थे। उन्हें लग रहा था कि छायावाद से प्रभावित साहित्यकार हिंदी को संस्कृतनिष्ठ बनाकर उसे कठिन बना रहे हैं। अगर हालात ऐसे ही रहे तो हिंदी कालांतर में सिर्फ अनुवाद की भाषा बनकर रह जाएगी और आम लोगों से दूर हो जाएगी।
#बेटी प्रेमा से कहा था, हिंदी राष्ट्रभाषा बनेगी
उनकी पुत्री प्रेमा ने मैट्रिक में पढ़ाई के दौरान अपने पिता से इस बाबत पूछा तो जवाब मिला कि आने वाले समय में हिंदी राष्ट्रभाषा बनेगी। फिराक, छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) रहे विश्वरंजन के नाना थे और अंतिम दिनों में उनके काफी करीब भी थे। नाना का हालचाल लेने वह अक्सर इलाहाबाद आते-जाते रहते थे। बकौल विश्वरंजन अपनी शायरी में उन्होंने हिंदी, यहां तक कि हिंदी के आंचलिक शब्दों का जितना प्रयोग किया, शायद ही और किसी ने किया हो।
#जब फिराक ने मानस के एक चौपाई की व्याख्या की
फिराक के गांव बनवारपार (गोरखपुर) के मूल निवासी और पट्टीदारी में उनके पौत्र और आकाशवाणी में उद्घोषक रहे रविंद्र श्रीवास्तव ‘जुगानी भाई’ ने आकाशवाणी के ही एक कार्यक्रम के दौरान उनसे पूछा कि आपको हिंदी विरोधी माना जाता है, फिर तुलसीदास को आप दुनिया का सर्वश्रेष्ठ कवि क्यों मानते हैं? वह भी तब जब उन्होंने ‘ढोल, गवार, शुद्र, पशु नारी ये सब ताड़ना के अधिकारी लिखा है।
फिराक साहब का जवाब था कि तुलसी ने जिस भाषा और समय में इसे लिखा है उसके अनुसार इसकी व्याख्या होनी चाहिए। ताड़ना का अवधी और भोजपुरी में अर्थ है- ध्यान देना। जिनका जिक्र उस चौपाई में है, खासकर जिस नारी शब्द पर लोगों को आपत्ति है उसे उस समय के लिहाज से देखोगे तो उस पर ध्यान देना समय का तकाजा था।
#उर्दू के तड़के से ही हिंदी में आती है लज्जत
एक बार दैनिक जागरण की गोरखपुर इकाई में एक गेस्ट लेक्चर था। उसमें किसी ने कहा था, हिंदी से प्यार करिए पर उर्दू का विरोध नहीं। हिंदी और उर्दू सगी बहनें हैं। हिंदी में उर्दू के तड़के से ही लज्जत आती है। मुहावरों का प्रयोग सोने पे सुहागा होता है। इसी समग्रता में ही हिंदी का आनंद है और विकास भी।
#काश! मुझे भी हिंदी आती: प्रीतिश नंदी
रही हिंदी की अहमियत की बात तो इंडिया टुडे के शुरुआती अंकों में अंग्रेजी के जाने-माने पत्रकार प्रीतिश नन्दी का इंटरव्यू छपा था। उनके मुताबिक देश की राजनीति का दिल हिंदी बेल्ट ही है। जब भी मैंने वहां के किसी दिग्गज राजनेता का इंटरव्यू लिया तो सबसे महत्वपूर्ण हिस्से पर पहुँचते ही वह हिंदी में अपनी बात रखने लगते हैं, तब अफसोस होता है कि काश मुझे हिंदी आती।
नामचीन गजलकार दुष्यंत कुमार के अनुसार ‘उर्दू और हिन्दी अपने-अपने सिंहासन से उतरकर जब आम आदमी के पास आती हैं तो उनमें फ़र्क़ कर पाना बड़ा मुश्किल होता है। मेरी नीयत और कोशिश यह रही है कि इन दोनों भाषाओं को ज्यादा से ज़्यादा क़रीब ला सकूँ। इसलिए ये ग़ज़लें उस भाषा में कही गई हैं, जिसे मैं बोलता हूँ।