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वुहान से भारतीयों को वापस लाने के मिशन में शामिल थीं डॉ. रुपाली मलिक, जानिए कैसा रहा उनका अनुभव

कोरोना महामारी में महिलाओं के अदम्य साहस और धैर्य को सबने देखा। जिन्होंने न सिर्फ कोरोना वॉरियर के रूप में बतौर हेल्थ केयर और फ्रंट लाइन वर्कर सेवा की बल्कि इसके अलावा कई अन्य जिम्मेदारी निभाई। उनसे से ही एक हेल्थ केयर वर्कर हैं डॉ रुपाली मलिक, जो उस ऑपरेशन का भी हिस्सा रहीं, जिसमें चीन के उस शहर गई, जहां से कोरोना वायरस की उत्पत्ति हुई, जी हां, हम बात कर रहे हैं वुहान की। महिला दिवस के अवसर पर सफदरजंग अस्पताल, नई दिल्ली की डॉक्टर रूपाली मलिक से खास चर्चा की और उनके अनुभव को जाना।

कोरोना काल में वुहान से भारतीय छात्रों को लाने में आपकी अहम भूमिका थी, कैसा अनुभव रहा?

मेरी कोरोना के खिलाफ लड़ाई बाकी लोगों से पहले शुरू हुई थी। पिछले साल जनवरी 2020 की बात है, मैंने अपनी सर्दियों की छुट्टियां बिताने के बाद 27 जनवरी को अस्पताल ज्वाइन किया। उस वक्त चर्चा हो रही थी कि चीन के वुहान में कुछ इस तरह की बीमारी आई है और वहां लॉकडाउन जैसी स्थिति हो रही है। ऐसे में वहां फंसे भारतीय लोगों को वापस लाने के लिए भारत सरकार कुछ विमान भेजेगी। लेकिन उस वक्त मैंने नहीं सोचा था कि मैं भी उस टीम का हिस्सा रहूंगी। ज्वाइन करने के बाद मेरे सीनियर ने मुझे जानकारी दी कि, मुझे ही उस ऑपरेशन में जाना है।

उस वक्त मेरे दिमाग में कई बातें घूमने लगी, मेरा दो साल का दूध पीता हुआ बच्चा था, पति अमेरिका में थे और मुझे वुहान जाना था। लेकिन पूरे परिवार ने मेरा साथ दिया और मैं अपने दूध पीते बच्चे को छोड़ कर वुहान मिशन पर गई। जब मैं वहां गई तो सभी वायुसेना के अधिकारियों ने काफी हौसला बढ़ाया।

आप कब वुहान गई और वहां फंसे लोगों को कैसे रेस्क्यू किया गया?

जब मैं वुहान गई थी उस वक्त भारत में कोरोना को लेकर इतना डर नहीं था। मैं एक फरवरी को वुहान पहुंची, लेकिन वहां जो बच्चे थे सभी काफी भयभीत थे। हमें देखते ही बच्चों ने भारत माता की जय और ग्रेट इंडिया के नारे लगाए। ये हमारे लिए गर्व का क्षण था। तब लगा कि इस मिशन पर आ कर मैंने बहुत सही फैसला है। फ्लाइट में जो भी लोग थे सभी कोरोना नेगेटिव थे। लेकिन इन सब का श्रेय सरकार को जाता है, सरकार द्वारा उठाये गए कदम की तारीफ करनी होगी, वहां उस वक्त स्थिति खराब हो चुकी थी और सरकार ने उन्हें उसी वक्त भारत वापस बुलाने और टेस्ट करवाने का सही निर्णय लिया।

लॉकडाउन में आप वुहान भी गई थी जिसके बाद अस्पताल भी जाना हुआ, उस वक्त लोगों का व्यवहार कैसा रहा?

महिलाओं को इसमें थोड़ी ज्यादा परेशानी हुई, क्योंकि कई लोगों के दूध पीने वाले बच्चे थे। ऐसा नहीं है कि पुरुषों को कोरोना से भय नहीं था। लेकिन एक महिला के लिए कोरोना काल काफी कठिन रहा। बावजूद इसके महिलाओं ने काफी हिम्मत दिखाई। मैं दो हफ्ते तक वुहान में रही, लेकिन मेरे परिवार ने मेरा काफी साथ दिया।

वैक्सीनेशन के दौरान महिलाओं की क्या भूमिका रही है?

वैक्सीनेशन को लेकर महिलाओं और पुरुषों दोनों में ही उत्साह है। शुक्रवार को ही मैंने वैक्सीन की अपनी दूसरी डोज ली है और जिस सेंटर पर मैं गई थी वहां इत्तेफाक से महिलाएं ज्यादा थीं। सिर्फ वैक्सीन लगवाने वाली ही नहीं बल्कि वहां नोडल ऑफिसर और जो भी नर्स आदि थीं उनमें भी महिलाओं की संख्या पुरुषों के बराबर ही रही। अगर देखें तो कोरोना काल में महिलाओं ने फ्रंट लाइन वर्कर की भूमिका निभाई है। जब पीपीई किट और मास्क बनाने की मुहिम शुरू हुई तो उड़ीसा की महिला वर्कर ही आगे बढ़ कर आई।

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