पंचगंगा घाट से शुरू हुई थी देव दीपावली, अब पूरे विश्व में प्रसिद्ध
देव दीपावली की छटा को निहारने आते है 33 करोड़ देव
लखनऊ । काशी में पंचगंगा घाट पर देव दीपावली की शुरूआत हुई थी। स्थानीय लोगों के सहयोग से दीपोत्सव होता था। इसके बाद वर्ष 1985 में मंगला गौरी मंदिर के महंत नारायण गुरु ने देव दीपावली को वृहद् और विहंगम रूप देने के लिए प्रयास किया। इसमें दशाश्वमेघ घाट पर गंगा सेवा निधि के संस्थापक स्मृतिशेष सत्येन्द्र मिश्र, प्राचीन शीतलाघाट पर गंगोत्री सेवा समिति के अध्यक्ष पं. किशोरी रमण दुबे उर्फ बाबू महाराज ने देव दीपावली आयोजन में बड़ी भूमिका निभाई।
पंचगंगाघाट के बाद पांच अन्य घाटों पर भी देव दीपावली की शुरूआत हुई। इसे व्यापक रूप देने के लिए केंद्रीय देव दीपावली महासमिति के अध्यक्ष पं.वागीश दत्त मिश्र ने भी अपना योगदान दिया। महासमिति के पदाधिकारियों ने काशी के कुंण्डों और तालाबों पर भी देव दीपावली मनाने की पहल की। जिससे गंगाघाटों पर भीड़ कम जुटे। 1995 से देव दीपावली को व्यापक आधार मिला। इसके बाद शहर के अन्य समाजसेवी भी इसमें योगदान देने के लिए आगे आये और देखते ही देखते देव दीपावली का उत्सव वैश्विक पटल पर आ गया।
देव-दीपावली में रानी अहिल्याबाई होलकर का बड़ा योगदान
काशी में देव दीपावली को स्थापित करने में रानी अहिल्याबाई होलकर ने भी बड़ा योगदान दिया था। उन्होंने पंचगंगा घाट पर पत्थरों से बना खूबसूरत ‘हजारा दीपस्तंभ’ स्थापित किया था। जिस पर 1001 से अधिक दीप एक साथ जलते थे। यहां दीपों का अद्भुत जगमग प्रकाश ‘देवलोक’ जैसे वातावरण का अनुभव कराता है। बहुसंख्यक दीप को देख लगता है कि गंगा के गले में स्वर्णिम आभा बिखर रही है। इसे देखने के लिए भी पर्यटक हजारों की संख्या में जुटते है।
वर्ष 1986 में तात्कालीन काशी नरेश स्व. डॉ. विभूति नारायण सिंह ने घाट पर हजारा दीप जलाकर देव दीपावली की विधिवत शुरुआत कराई थी। स्वामी नरेन्द्रानंद बताते हैं कि पंचगंगा, दुर्गाघाट, बिन्दु माधव मंदिर की सीढ़ियों पर वर्षो से दक्षिण भारतीय ब्राह्मणों को दीया जलाते देख नारायण गुरू (मां मंगला गौरी मंदिर के महंत) ने वर्ष 1984 में देव दीपावली की शुरूआत इन घाटों पर की थी। उनके प्रयास स्वरूप वर्ष 1985 से केन्द्रीय देव दीपावली समिति बनाकर इसे वृहद स्वरूप दिया गया।