

बीएचयू अंतरराष्ट्रीय पुरा छात्र समागम का हुआ शुभारंभ
वाराणसी, जनवरी । काशी हिंदू विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय पुरा छात्र समागम का उद्घाटन दिनांक 17 जनवरी 2020 को स्वतंत्रता भवन सभागार में हुआ। शताब्दी की यात्रा पूरी कर चुके काशी हिंदू विश्वविद्यालय में अरसे बाद आयोजित हो रहे इस समागम में विश्वविद्यालय के पुरातन छात्र देश विदेश के कोने कोने से जुटे हैं। कार्यक्रम की शुरुआत मुख्य अतिथि श्री शशि शेखर, कुलपति प्रोफेसर राकेश भटनागर, कुलगुरू, प्रोफ़ेसर वी के शुक्ला, पुरा छात्र प्रकोष्ठ की अध्यक्षा प्रोफेसर सुशीला सिंह ने दीप प्रज्ज्वलन व महामना की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर की। स्वागत उद्बोधन में प्रो सुशीला सिंह ने महामना के दर्शन के आधार पर बी.एच.यू द्वारा दी जा रही शिक्षा पर प्रकाश डाला। उन्होंने नैतिकता के साथ धर्म की शिक्षा और जीवन में आध्यात्मिकता के महत्व को महामना के दर्शन के रूप में आज के युवाओं की आवश्यकता के रूप में रेखांकित किया।
मुख्य अतिथि श्री शशि शेखर ने अपने उद्बोधन की शुरुआत बी.एच.यू में बिताए अपने जीवन की यादों को ताजा करते हुए किया। महामना को समन्वयवादी बताते हुए, बी.एच.यू की स्थापना, लखनऊ और पूना पैक्ट में उनकी भूमिका, गंगा महासभा के माध्यम से गंगा की अविरलता हेतु किया गया समझौता एवं चौरी-चौरा कांड के आरोपियों को सजा से बचाकर स्वतंत्रता सेनानी के रूप में प्रतिष्ठित करने के महामना के योगदान को याद किया। उन्होंने कहा के अगर हिन्दू बनना है तो मालवीय जी सरीखे बनें। उन्होंने कहा की काशी हिन्दू विश्विद्यालय आगे बढ़ रहा है, तरक्की कर रहा है ये अच्छी बात है लेकिन सबसे ज़रूरी ये हैं कि एकजुट और संयुक्त बीएचयू ब्रांड स्थापित हो और संस्थान बीएचयू का हिस्सा बने रह कर श्रेष्ठता की सीढ़ी चढ़ें। यही महामना को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
इस अवसर पर कार्यक्रम के आयोजन सचिव प्रो एस पी सिंह ने संगोष्ठी के विषय ‘21वी सदी के भारत में उच्च शिक्षा और मालवीय दृष्टि’ की भूमिका बताई। कार्यक्रम के संयुक्त आयोजन सचिव डॉ धीरेंद्र कुमार राय ने गांधी के जन्म के 150 वें वर्ष में आयोजित इस संगोष्ठी में गांधी द्वारा 1942 में बी एच यू में दिए गए दीक्षांत भाषण को उद्धरित करते हुए कहा कि मूल्य बोध के जरिये अपनी पहचान बनाना बी.एच.यू के छात्रों का लक्ष्य होना चाहिए। बी.एच.यू के छात्र इस दिशा में लगातार आगे बढ़े हैं और इसी कारण इस विश्वविद्यालय ने दुनिया भर में प्रतिष्ठा पाई है। इस अवसर पर कुल 8 पुरातन छात्रों को विशिष्ट पुरातन छात्र सम्मान से नवाजा गया जिनमें प्रसिद्ध खगोलविद व लेखक तथा पद्मविभूषित प्रो जयंत विष्णु नार्लीकर , राज्यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश, प्रसिद्ध गायिका पद्मश्री डॉ सोमा घोष, सुप्रसिद्ध वायलिन वादक डॉ संगीता शंकर, उद्योगपति अनिरुद्ध मिश्रा, आई आई टी कानपुर के प्रो संदीप वर्मा, मायगॉव.इन के पूर्व सीईओ व वर्तमान में श्रीलंका के प्रधानमंत्री के तकनीकी सलाहकार डॉ अरविंद गुप्ता, सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क्स ऑफ इंडिया के महानिदेशक डॉ ओमकार राय शामिल रहे।
कुलपति प्रो राकेश भटनागर ने कहा कि बी.एच.यू लगातार बढ़ने के लिए प्रयासरत है और इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाये जा रहें। इनमें विश्विद्यालय में बड़ी संख्या में शिक्षकों के रिक्त पदों को भरने की प्रक्रिया की शुरुआत की गयी है जो कि अब तक जारी है। विश्वद्यालय की प्रवेश परीक्षाओं को ऑनलाइन करने के साथ-साथ देश भर में उसके केंद्रों की संख्या बढ़ाई गयी हैं, विश्वविद्यालय की कार्मिक गतिविधियों में कागज के इस्तेमाल को कम करने के लिए ई आर पी सिस्टम को टाटा ट्रस्ट के साथ मिलकर बढ़ावा दिया जा रहा है, पर्यावरण का ख़्याल रखते हुए विश्वविद्यालय में उत्सर्जित होने वाले कूड़े से बिजली के निर्माण की दिशा में व्यापक कदम उठाये जा रहे है। कुलपति ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि आईएमएस, बीएचयू का हिस्सा है और रहेगा और इस बारे में किसी को भी कोई संदेह नहीं होना चाहिए। उन्होंने ज्ञानअर्जन में विभिन्न भाषाओं के महत्व पर भी ज़ोर दिया।
इस अवसर पर कार्यक्रम के आयोजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए पत्रकारिता विभाग के शोधार्थी चंद्राली मुखर्जी, हर्षित श्याम जायसवाल एवं विश्वविद्यालय के पुरा छात्र राहुल कुंअर तिवारी एवं अभिषेक कुमार को उत्कृष्ट कार्य के लिए सम्मानित एवं प्रशंसित किया गया। कार्यक्रम में प्रतिभागियों को हस्तनिर्मित व पर्यावरण हितैषी सामग्रियों से बने किट दिये गये है, बी एच यू की ऐतिहासिक थाती की कहानी बयां करती हुई कॉफ़ी टेबल बुक व बी.एच.यू की स्थापत्य कला से प्रेरित नोटबुक, स्मारिका आदि चर्चा का विषय रहें। कार्यक्रम के दौरान प्रख्यात संस्कृतविद पंडित रेवा प्रसाद द्विवेदी व मणिपुर सेंट्रल यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो आद्या प्रसाद पांडेय को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर धन्यवाद ज्ञापन प्रो अंजलि वाजपेयी ने किया। कार्यक्रम का संचालन व पुरातन छात्रों को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के संदेश का पाठ सुश्री चंद्राली मुखर्जी ने किया।
कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में डॉ. रजनीश दुबे, प्रधान सचिव, चिकित्सा शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश ने संगोष्ठी के विषय ‘इक्कीसवीं सदी में उच्च शिक्षा व महामना की दृष्टि’ पर बोलते हुए उन्होंने अपना बृहत्तर दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। भारतीय जनसंचार संस्थान के प्रोफेसर आनंद प्रधान ने शिक्षा में मालवीय दृष्टिकोण पर अपना पक्ष रखा। सत्र की अध्यक्षता विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो. अनिल त्रिपाठी ने की।
गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रामा शंकर दुबे की अध्यक्षता में अगले सत्र में प्रथम वक्ता के रूप में डॉ. ऋचा चोपड़ा ने जोर देकर कहा कि विश्वविद्यालय में एक ऐसा कोना निर्मित किया जाए जहां मन को जोड़ने की कला सिखायी जा सके। इसके अगले क्रम में अध्यक्षता कर रहे प्रो. आर. एस. दुबे ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि मालवीय जी का जोर शिक्षा में बौद्धिक विकास के साथ ही नैतिक, आध्यात्मिक और चारित्रिक विकास पर रहा है। उन्होंने मालवीय जीवन चरित पर आधारित स्वरचित कविता का पाठ भी किया। प्रो. प्रियंकर उपाध्याय ने कहा कि चार दशक के बाद अपने ही घर में अनायास ही बोलने का मौका मिलने पर हर्ष व्यक्त किया। इस सत्र में धन्यवाद ज्ञापन प्रो. अंजू शरण उपाध्याय ने दिया।

प्रथम दिन के आखिरी सत्र सांस्कृतिक संध्या में कार्यक्रम की शुरुआत वैदिक मंत्रों की संगीतमय गायन से हुई जिसमें पंडित ओमकार नाथ ठाकुर द्वारा संगीतबद्ध यजुर्वेद के शिव संकल्प मंत्र की प्रस्तुति श्री पंकज राय, प्रो. इन्द्रदेव चौधरी, श्री पंकज श्री, श्री अभिनव नारायण आचार्य, प्रो. शारदा वेलंकर, प्रो. ऋचा कुमार, प्रो. संगीता पंडित, प्रो. रेवती साक, डॉ. श्वेता जायसवाल, डॉ. विदिशा हजारा की टीम ने दी कार्यक्रम के अगले कड़ी में डॉक्टर कमला शंकर ने राग ‘मारू बिहार’ से अपनी प्रस्तुति की शुरुआत की तथा समापन लोकप्रिय पहाड़ी एवं भटियाली धुनों से किया कार्यक्रम के अंतिम निशा में पद्मश्री डॉ. शोमा घोष ने अपने प्रस्तुति की शुरुआत राग हंस ध्वनि में “महादेव देव महेश्वर” से की। इसके बाद दादरा, तराना तो सुनाया ही श्रोताओं की फरमाइश पर बनारस की ठुमरी व कजरी गाकर अपनी प्रस्तुति का समापन किया। इस अवसर पर कलाकारों का सम्मान पुरा छात्र प्रकोष्ठ की अध्यक्षा प्रो. सुशीला सिंह, आयोजन सचिव प्रो. एस.पी. सिंह, प्रो. अंजलि बाजपेई ने किया। संचालन सुश्री चंद्राली मुखर्जी एवं संयोजन प्रो. संगीता पंडित ने किया।