
बछ बारस का व्रत, इस दिन होती है गाय-बछड़े की पूजा

बछ बारस या गोवत्स द्वादशी पर्व ,यह भाद्रपद कृष्ण पक्ष और कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वादशी को विशेष तौर भी गोवत्स द्वादशी के रूप में मनाया जाता है। इसे बच्छ दुआ और वसु द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है। बछ बारस, गोवत्स द्वादशी के दिन महिलाएं अपने बेटे की सलामती, लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली के लिए यह पर्व मनाती है। इस दिन घरों में विशेष कर बाजरे की रोटी जिसे सोगरा भी कहा जाता है और अंकुरित अनाज की सब्जी बनाई जाती है। इस दिन गाय की दूध की जगह भैंस या बकरी के दूध का उपयोग किया जाता है।
बछ बारस कब मनाई जाती है –
बछ बारस या गोवत्स द्वादशी भाद्रपद की कृष्णा द्वादशी को मनाई जाती है।
बछ बारस में किसकी पूजा की जाती है –
बछ बारस में गाय और उसके बछड़े की पूजा की जाती है।
कौन इस पुजा को करते है?
पुत्र की माँ बच्छ बारस में गाये की पूजा करती है। आज कल लोगो के एक ही संतान होती है , तो चाहे बेटे की माँ हो या बेटी की, हर माँ ही अपने संतान के मंगल के लिए इस पूजा को करती है।
पूजन विधि –
इस पर्व में माताएं गीली मिटटी से गाये, बछड़ा, बाघ, बाघिनि की मूर्ति बनाती है और फिर दिए हुए चित्र के अनुसार पाटे पर रखती है। फिर दही, भीगा हुआ बाजरा, आटा, घी चढ़ा कर रोली से तिलक करती है। चावल और दूध चढ़ाती है। इसके बाद वो गाये और बछड़े की पूजा करती है।
दिन में क्या खाना चाहिए –
मोठ, बाजरा और रूपए का बायना निकल कर सासूमाँ को देती है। दिन में बाजरे की ठंडी रोटी खाती है।
क्या क्या खाना निषेध है –
दूध, दही, गेहू, चावल इस दिन खाने की मनाई है।
बच्चों के लिए इसका क्या विशेष महत्व है –
शास्त्रों का मानना है की अपने कुंवारे पुत्र के कमीज पर सातिया बनाकर कुवे की पूजा करनी चाहिए। इससे बच्चे के जीवन की रक्षा होती है और भूत प्रेत तथा नजर के प्रकोप से भी रक्षा होती है।
यहाँ मैं अपना वक्तिगत एक अनुभव आपसे साझा करना चाहूंगी – गत वर्ष बच्छ बारस के दिन एक माता का अपने १० वर्ष के संतान से वाद विवाद होता है और माता ने रुस्ट हो कर बच्छ बारस का पूजा नहीं किया , उसी शाम उनकी बेटी पलंग पर बैठे बैठे अचानक अपने केश खोल देती है और आंखे बड़ी बड़ी कर के चारों ओर देखने लगती है और अचानक जोर जोर से हसने लगती है। आवाज़ में परिवर्तन आ जाता है और मारने पीटने लगती है। अपना नाम भी कुछ और ही बताती है। २ ३ मिनट ऐसा करती है फिर एक दम से नार्मल हो जाती है, रोने लगती है , डरने लगती है, सारा शरीर दुखने लगता है , आंखे बंध होने लगती है। फिर अचानक से वो उठ के बैठ जाती है और फिर वही प्रक्रिया, ऐसा ३० मिनट में ६ ७ बार हो गया। सब ने बच्ची की माँ को प्रताड़ित करना सुरु किया की भगवन रुस्ट हो गए है, तुम्हारी गलती की सज़ा बच्ची भोग रही है। भयभीत हो कर उन लोगो ने हनुमान चालीसा पढ़ना सुरु कर दिया, वो बच्ची जोर जोर से चीखने लगी, कान बंध करने लगी। तब उनको लगा की शायद किसी दुष्टात्मा का साया बच्ची पर पड़ गया है। वे भयभीत होने लगे। बाद में कुछ मंत्र जप के द्वारा बच्ची को ठीक किया गया और माता ने अगले दिन बच्छ बारस का पूजा किया और भगवन से माफी मांगी।
बच्छ बारस का उद्यापन –
जिस वर्ष संतान का विवाह हो उस वर्ष उजमन किया जाता है। इस दिन से एक दिन पहले बाजरा दान किया जाता है। बच्छ बारस के दिन थाली में तेरह मोठ बाजरे की ढेरी बनाकर, उन पर घी चीनी मिला हुआ दो मुट्ठी बाजरे का आटा रखे। इस सामान को हाथ फेर कर सासुमा के पैर छू कर दे दे। बाद में बछड़े और कुवे की पूजा करे। मंगल गीत भी गाए और ब्राह्मण को भोजन करा कर दक्षिणा दे।
वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल, कोलकाता