Breaking News

अंगूरी गरली है, निषिद्ध हो !

के. विक्रम राव

दारू की दुकानों पर इतना मजमा देख कर लगा कि संक्रमित लोग कोरोना की वैक्सीन खरीदने में जुटे हैं| एक ही दिन में योगी सरकार को सौ करोड़ रुपयों की आवक हो गई| बापू के चेलों (नेहरू-इंदिरा) के राज में बेझिझक ज्यादा लाभ मिलता था| उसी वक्त से ही मद्यनिषेध और आबकारी विभागों में सहभागिता सृजित की गयी थी| हालाँकि दर्शनशास्त्र के मुताबिक यह विरोधाभासी है, किन्तु दलीय राजनीति की नजर में बेमेल नहीं|

आजाद भारत के इतिहास में केवल मोरारजी देसाई के राज में ही मद्यनिषेध का असली अर्थ शराब-बंदी थी| तब वे अविभाजित मुंबई राज्य के गाँधीवादी मुख्य मंत्री थे| सोवियत प्रधान मंत्री बुल्गानिन और रूसी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव ख्रुश्चोव मुंबई आये| दोनों को मुख्य मंत्री का निर्देश था कि शराब के लिए परमिट हेतु राज्य मद्यनिषेध अधीक्षक को दरख्वास्त दे दें| पर ये दोनों रूसी मास्को से ही वोदका भरकर लाये थे| एक अन्य अवसर पर जब मोरारजी देसाई नेहरू काबीना में वित्त मंत्री थे तो ब्रिटिश प्रधान मंत्री मैकमिलन के सम्मान में दिल्ली स्थित उच्चायुक्त भवन में रात्रिभोज था| कोई भी शराब नहीं पी रहा था| होठों से केवल मुसम्मी के रस का गिलास सटा था| मोरारजी देसाई की शर्त थी कि यदि मदिरा परोसी गई तो वे भोज में शिरकत नहीं करेंगे| अटल बिहारी वाजपेयी के राज में माजरा भिन्न था| मदिरा अविरल बहती थी| न परहेज, न लागलपेट|

यह बात उन दिनों की है जब चीन, अमरीका और रूस के बीच वैचारिक विषमता बहुत तीव्र थी| बर्लिन में एक विश्व मीडिया अधिवेशन में भारत की नुमाइंदगी मैं कर रहा था| तो एक ब्रिटिश पत्रकार ने पूछा कि मैं कोकाकोला ही क्यों पी रहा हूँ| मेरा जवाब सीधा था| भारतीय समाज में इस व्यसन को सज्जनता का गुण नहीं माना जाता| तो उसने एक दिलचस्प किस्सा सुनाया| एक बार तीन लोग शराब से धुत लन्दन की कूटनीतिक डिनर से अपने होटल के लिए चले| एक ही कार थी, बिना ड्राईवर के| सवाल था कि नशे की हालत में चलाये कौन? सर्प्रथम चीन वाला ड्राइविंग सीट पर बैठा| मगर तुरंत उतर आया, क्योंकि उसे दो सड़कें दिख रही थीं| फिर बैठा अमरीकी| वह भी उतर गया| उसे भी दो सड़कें दिखीं| अब बारी थी कम्युनिस्ट रूसी की| उसने वोदका फिर गटका और कार सीधे चलाकर होटल ले आया| अचरज से चीनी और अमरीकी ने उससे पूछा कि वह कैसे सुरक्षित ड्राइव करके ले आया ? रूसी बोला, “मुझे तो तीन सड़कें दिखीं थीं| मैंने कामरेड गोर्बाचोव की बात याद की : “(चरमपंथी) चीन और (दक्षिणपंथी) अमरीका की विचारवीथियों से बचो| कम्युनिस्टों के तर्कसम्मत रूसी (मध्यम) मार्ग को चुनो| तब मैंने बीच की सड़क पकड़ ली| न दाहिने और न बांयें| बस आपको होटल ले आया|”

इसी सन्दर्भ में मुझे फिल्म शोले की मौसी (लीला मिश्रा) की उक्ति याद आई जो अमिताभ बच्चन ने धर्मेन्द्र और वसंती (हेमा मालिनी) से विवाह की पेशकश पर कही गई थी| धर्मेन्द्र के गुणों का बखान करते बच्चन ने अपने साथी की बटमारी और जुआ से होते हुए शराब तक की आदतों का जिक्र किया था| मौसी की गुस्से में प्रतिक्रिया जबरदस्त थी| अर्थात मदिरा जुर्मों की जननी है|

यहाँ स्पष्ट कर दूं कि मैं विविध किस्म की मदिरा का शौकिया संग्रहकर्ता रहा हूँ| छः महाद्वीपों के 51 राष्ट्रों में आयोजित मीडिया बैठकों में शामिल होकर मैं वहाँ से राष्ट्रीय पेय के नमूनों को लाता रहा| अपने घर की बैठक में सजाता रहा| इनमें खास है चीन की मशहूर माओ ताई, (माओ ज़ेडोंग से कोई नाता नहीं), इक्वाडोर की अगुआरदियान्त, पेरू का सिस्के, इटली का रोजेलियो, कीनिया का छांगा, पोलैंड का क्रुप्निक, यूनान (ग्रीस) का आउजो, जिम्बाब्वे का चिकोकियाना, जापान का आवामोरी, फ्रांस का अर्मानियाक और महान गन्ना उत्पादक कम्युनिस्ट गणराज्य क्यूबा का रम| उत्तर कोरिया (किम जोंग उन वाला) का सोजू, जिसमें जिन्दा सांप को डालकर सील कर देते हैं| इससे नशा कई गुना बढ़ जाता है| राजधानी प्योंगयोंग कि यात्रा पर (1985 में) IFWJ के पैंतीस-सदस्यीय प्रतिनिधि मण्डल में मेरे साथ थे शीतला सिंह, श्रीमती सुनीता आयरन, हसीब सिद्दीकी, मदन मोहन बहुगुणा, रवींद्र कुमार सिंह, प्रकाश दुबे तथा राजीव शुक्ल (आज के कांग्रेसी नेता) इत्यादि|

साढ़े पांच दशकों के मेरे पत्रकारी पेशे में अनुभूति यही रही कि शराबखोरी एक वेदनामयी त्रासदी हो गई है| मेरी याद में हमारे तीन साथी थे| सब शादीशुदा और पिता भी| उन्हें लत पड़ी थी और तीनों प्रौढ़ावस्था में ही असावधानी के कारण दुर्घटना का शिकार हो गए थे| बेवाओं और बच्चों को रोते छोड़ गए| तब उनकी शोकसभा में मैंने पत्रकारों की पत्नियों से अपील की थी कि अपने पुरुष को रास्ते पर लाने का केवल एक कारगर तरीका है| त्रिया हठ करें| सिटकनी नहीं खुलेगी, रसोई ठंढी रहेगी यदि नशा कर के पति घर आये| शादी के पूर्व मेरी डॉक्टर पत्नी ने मुझपर खोजी रिपोर्टिंग करायी थी कि आम पत्रकार की भांति मैं भी क्या विलायती से आचमन करता हूँ ? आश्वस्त होने पर ही सप्तपदी हम चले थे| अगले वर्ष हमारे पाणिग्रहण की पचासवीं हैं, बिना अंगूरी के!

K. Vikram Rao
Mobile -9415000909
E-mail –k.vikramrao@gmail.com

VARANASI TRAVEL
SHREYAN FIRE TRAINING INSTITUTE VARANASI

Related Articles

Back to top button
%d bloggers like this: