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अगहनी पूर्णिमा 2025: पूजन, दान और चंद्र- दर्शन का शुभ पर्व

अगहनी पूर्णिमा 2025 इस वर्ष 4 दिसंबर को मनाई जाएगी। मार्गशीर्ष मास की यह पूर्णिमा धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी गई है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु की पूजा, मंत्र-जप और दीपदान का विशेष फल प्राप्त होता है। पूर्णिमा तिथि सुबह 8:39 बजे आरंभ होकर अगले दिन 4:45 बजे तक रहेगी। भक्तजन प्रातः-स्नान, दान, हवन और चंद्र-दर्शन कर सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। अन्न, वस्त्र, तिल, गुड़ और कंबल दान करना अत्यंत शुभ माना गया है। यह तिथि आध्यात्मिक साधना और पारिवारिक कल्याण के लिए विशेष फलदायी मानी जाती है।

  • 4 दिसंबर को मार्गशीर्ष पूर्णिमा, जानें स्नान-दान का महत्व और पूजा-विधि

वाराणसी। हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा, जिसे आम बोलचाल में अगहनी पूर्णिमा कहा जाता है, इस वर्ष 4 दिसंबर 2025 को पड़ रही है। धार्मिक दृष्टि से यह तिथि वर्ष की अत्यंत पवित्र पूर्णिमाओं में से एक मानी जाती है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की उपासना, स्नान-दान और व्रत करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है।

पंचांग विशेषज्ञों के अनुसार पूर्णिमा तिथि 4 दिसंबर को सुबह 8:39 बजे आरंभ होगी और 5 दिसंबर को सुबह 4:45 बजे तक रहेगी। धार्मिक मान्यता में सूर्योदय के बाद का समय विशेष रूप से शुभ माना गया है। इसी कारण भक्तजन इस दिन प्रातःकाल स्नान-दान, विष्णु पूजा और दीपदान करते हैं।

#पूजा-विधि में क्या है खास?

अगहनी पूर्णिमा पर प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करना और भगवान विष्णु की आराधना करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। इस अवसर पर भक्त ॐ नमो नारायणाय मंत्र का जप करते हैं और घर में दीप प्रज्वलित करके सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। कई स्थानों पर तिल-जौ से हवन तथा विष्णु सहस्रनाम का पाठ भी किया जाता है।

दान-धर्म का विशेष महत्व

धर्मग्रंथों में मार्गशीर्ष पूर्णिमा को दान का श्रेष्ठ दिन बताया गया है। मान्यता है कि इस दिन अन्न, वस्त्र, तिल, गुड़, घी, कंबल और गर्म कपड़े दान करने से ग्रह-दोषों में कमी आती है और लक्ष्मी-कृपा प्राप्त होती है।
पंडित वर्ग का मानना है कि जरूरतमंदों को वस्त्र एवं अन्न-दान करने से घर में शांति और आर्थिक स्थिरता बनी रहती है।

आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण दिन

कई मंदिरों में इस अवसर पर विशेष पूजा-अर्चना, भजन-कीर्तन और हवन का आयोजन किया जाता है। वाराणसी, अयोध्या, प्रयागराज, वृंदावन और मथुरा जैसे तीर्थस्थलों पर भक्तों की भीड़ उमड़ती है। माना जाता है कि अगहनी पूर्णिमा की रात्रि को चंद्र दर्शन और दीपदान करने से मानसिक शांति और पारिवारिक सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।

विस्तृत मुहूर्त-तालिका

  • पूर्णिमा प्रारंभ: 4 दिसंबर 2025 – सुबह  08:39 बजे
  • पूर्णिमा समाप्त: 5 दिसंबर 2025 – सुबह 04:45 बजे
  • क्रिया————————-शुभ समय

स्नान-दान का मुख्य काल | सूर्योदय से दोपहर 12:30 तक |
विष्णु पूजा का उत्तम समय | प्रातः 6 बजे – 10 बजे |
मंत्र-जप / विष्णु सहस्रनाम | सुबह 4 बजे – 8 बजे एवं शाम 6 बजे – 8 बजे |
चंद्र दर्शन | 4 दिसंबर की रात्रि |
हवन / विशिष्ट अनुष्ठान | प्रातः 9 बजे – 12 बजे |

पूजा-विधि एवं मंत्र-पाठ

1. संकल्प मंत्र

“ॐ विष्णवे नमः।
आज मार्गशीर्ष पूर्णिमा के पुण्यकाल में, मैं स्नान-दान-जप एवं पूजा का संकल्प करता/करती हूँ।”

2. पूजन-मंत्र

(1) विष्णु मंत्र

“ॐ नमो नारायणाय”
(कम से कम 108 बार जप)

(2) महामंत्र – नारायण कवच का आरंभिक श्लोक

“ॐ सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात्।”

(3) विष्णु गायत्री मंत्र

“ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्।”

(4) श्री हरि अर्चन मंत्र

“ॐ वासुदेवाय नमः।”
“ॐ माधवाय नमः।”
“ॐ गोविंदाय नमः।”
(ये 12 नाम जपना विशेष पुण्य देता है)

3. हवन मंत्र (सरल स्वरूप)

“ॐ नारायणाय स्वाहा।”
“ॐ वासुदेवाय स्वाहा।”

तिल, जौ, घी, और गुड़ मिलाकर आहुति देना उत्तम।

दान के श्रेणी-वर्ग अनुसार* श्रेष्ठ उपाय

1. गृह-शांति व धन-समृद्धि हेतु

* पीला वस्त्र
* तिल, गुड़
* चावल, गेहूँ
* घी का दान

2. पितृ-तर्पण एवं पितृ-दोष शांति हेतु

* दूध, दही
* सफेद वस्त्र
* चावल
* जल-दान
* ब्राह्मण भोजन

3. रोग-निवारण एवं स्वास्थ्य के लिए

* कंबल, ऊनी वस्त्र
* सुपारी, हल्दी
* हरे धनिए का दान
* भगवान को तुलसी अर्पण

4. व्यापार-वृद्धि व नौकरी-सफलता

* पीतल के पात्र
* घी-दीपदान
* भगवद्गीता का दान
* गरीब को अन्न-दान

5. संतान-सुख एवं स्थिरता

* खीर (मिठाई) दान
* सफेद कंबल
* दूध-चावल का दान

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