Opinion

कैसी , वैसी, किसकी कांग्रेस ?

के. विक्रम राव

जो लोग आस संजोये बैठे हैं कि कांग्रेस पार्टी फीनिक्स की भांति फिर जी उठेगी, यह परिदृश्य उन्हीं लोगों के लिए खास है। बताता चलूँ कि फीनिक्स प्राचीन यूनान का विशाल पक्षी था, जो राख होने के बाद दुबारा आकार ले लेता था। सन्दर्भ है उत्तर प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठतम् नेता पण्डित रामकृष्ण द्विवेदी की अंत्येष्ठि का (10 अप्रैल, शुक्रवार)। यूं तो लॉकडाउन के कारण शवदाह स्थल पर कम ही लोग थे| पर शोक संवेदना भेजनेवालों में प्रियंका वाड्रा भी थीं| ये पार्टी महासचिव 88-वर्षीय द्विवेदी जी से करीब 38 वर्ष छोटी हैं| प्रियंका ने अपने शोक संवेदना में इस बुजुर्ग कांग्रेसी द्वारा पार्टी को दिए सहयोग को भी याद किया | विद्रूप ऐसा था कि गत नवम्बर में ही इसी महासचिव ने द्विवेदी जी को अनुशासनहीनता के आरोप में पार्टी से छः वर्षों के लिए निष्कासित कर दिया था| विडंबना यह है कि यही द्विवेदी जी कांग्रेस की अनुशासन समिति के 15 वर्षों तक अध्यक्ष रहे| उनकी गलती बस इतनी रही कि उन्होंने केन्द्रीय पार्टी नेतृत्व की गतिशीलता की आलोचना की थी| निष्कासन की तारीख ऐतिहासिक थी| नेहरु जयंती (14 नवम्बर, 2019) के दिन गोमतीनगर की सभा में द्विवेदी जी तथा सत्यदेव त्रिपाठी ने पार्टी को सशक्त बनाने की बात की| ठीक पांच दिन बाद इंदिरा गाँधी की जयंती (19 नवम्बर को) पर उन्हें निकाल दिया गया|

अतः स्वाभाविक है कि सम्प्रति कांग्रेस पर सवाल उठेंगे कि यह कितनी असली पार्टी है ?

आज के दौर में सोनिया-कांग्रेस चुनाव लड़ती हैं| पिछले साल यह राहुल- कांग्रेस थी| कुछ पहले (सीताराम) केसरी- कांग्रेस और नरसिम्हाराव–कांग्रेस थी| अर्थात मसला है कि कांग्रेस! कौन सी? किसकी? कब की? इतिहासवेत्ता यदि शोध करें, तब भी यह गुत्थी सुलझेगी नहीं। कारण बस यही है कि स्वतंत्रता के बाद इस पार्टी में वैचारिक विकार, संस्थागत उलट-पलट, वैयक्तिक लाग-डाँट, सत्तास्तरीय होड़ा-होड़ी बारम्बार हुई है। मानो कांग्रेस एक पार्टी नहीं, हरिद्वार का चोटीवाला ढाबा हो गया हो। अपनी पहचान जुदा रखने के लिए उसके मालिक लोग भिन्न उपसर्ग जोड़ देते हैं, जैसे पुराना चोटीवाला, प्रसिद्ध, असली, प्राचीन वगैरह। कांग्रेस की भाँति दशकों पूर्व यह रेस्त्राँ भी किसी एक ही मालिक के तहत रहा होगा।

इसलिए जब 137-साल पुरानी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पर बात उठती है, तो जिज्ञासु भारतीय की उत्कंठा सहज ही होती है कि कौन-सी वाली कांग्रेस? पिछला विधिसम्मत, सम्यक् चुनाव कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष का सत्तर वर्ष पूर्व हुआ था, जब राजर्षि पुरुषोत्तमदास टण्डन ने नेहरू-समर्थक आचार्य जीवतराम भगवानदास कृपलानी को निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा किये गये मतदान में पराजित किया था। तबसे कांग्रेस पार्टी के चुनावों में मतपत्र दिखते नहीं। नामांकन बस औपचारिकता है, मनोनयन ही चयन का आकार लेता है। प्रत्याशी निर्विरोध पदारूढ़ हो जाता है। पार्टी का हिसाब भी वैसा ही जैसा गुलाम नबी आजाद ने कहा था ‘‘न खाता, न बही, केसरी जो कहें वही सही।’’ तब कोषाध्यक्ष होते थे सीताराम केसरी बक्सरवाले।

कांग्रेस पार्टी में वंशवादी परम्परा, जो दिसम्बर 1929 से रावी तट पर लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में मोतीलाल नेहरू के स्थान पर पुत्र जवाहरलाल नेहरू के अध्यक्ष बनने से प्रारम्भ हुई थी, अब इस्पाती हो गयी है। अर्थात् भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एक परिवार-केन्द्रित संस्था बन गयी, राजवंश जैसी। इसीलिए दिल्ली सल्तनत का नामकरण खिलजी, तुगलक, मुग़ल आदि की भांति, आज कांग्रेस पार्टी को मुखिया के नाम पर रखना ही इतिहास के माकूल होगा|

रामकृष्ण द्विवेदी उस दौर के हीरो थे| जब उन्होंने मणिराम का उपचुनाव जीता था| तब संयुक्त विधायक दल (कम्युनिस्ट से जनसंघ तक) सभी पार्टियों ने मिलकर गठित किया था| नतीजन चंडीगढ़ से गौहाटी तक कांग्रेस-मुक्त भू-भाग बना दिया था| नेहरू-इंदिरा का गृह प्रदेश भी मुक्त हो गया था| द्विवेदी जी के लिए प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी ने मणिराम विधान सभा उपचुनाव में सारी परिपाटियाँ दरकिनार कर जोरदार प्रचार किया था| संविद के मुख्य मंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह हार गए| फिर इंदिरा गाँधी के पक्ष में लहर चली| डूबती हुई कांग्रेस 1971 में उतरा गयी| उसी इंदिरा गाँधी की पोती (जो उस समय भ्रूणावस्था में थीं) ने इन्हीं महानायक द्विवेदी जी को पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में निकाल दिया|

K Vikram Rao
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