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आत्मनिर्भर भारत : आईआईटी के शोधकर्ताओं ने ई-कचरा प्रबंधन की नई तकनीक की विकसित

डिजिटल युग में देश की कई समस्याओं के समाधान में देश की प्रौद्योगिकी संस्थान का बड़ा योगदान रहा है। इसी क्रम में एक बार फिर आईआईटी-दिल्ली के शोधकर्ताओं ने ई-कचरा प्रबंधन की नई तकनीक विकसित की है। दरअसल इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का ई-कचरा प्रबंधन विश्व के लिए बड़ी चुनौती है। भारत ई-कचरे का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। अकेले 2019 में यहां 3.23 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) ई-कचरा पैदा हुआ है। इसी बीच भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी)-दिल्ली के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित ई-कचरा प्रबंधन की नई और किफायती तकनीक उम्मीद की किरण के रूप में सामने आई है। यह उत्सर्जन रहित होने के साथ कचरे से लाभ कमाने में भी मददगार साबित होगी।

स्वच्छ भारत अभियान की दिशा में बढ़ा कदम

आईआईटी-दिल्ली में केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख प्रो. के के पंत के नेतृत्व में ई-कचरे के खतरे से निपटने के लिए एक स्थायी तकनीक विकसित की है। यह तकनीक केन्द्र सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्त पोषित है। दिल्ली अनुसंधान कार्यान्वयन एवं नवाचार (डीआरआईआईवी) की ओर से की गई पहल के तहत इसे आगे बढ़ाया जा रहा है। विकसित तकनीक विकेंद्रीकृत इकाइयों में धन सृजन के माध्यम से भारत सरकार की “स्मार्ट शहरों,” “स्वच्छ भारत अभियान,” और “आत्मनिर्भर भारत” पहल की आवश्यकता को पूरा करेगी।

प्रो. के के पंत ने कहा कि ई-कचरे में सीसा, कैडमियम, क्रोमियम, ब्रोमिनेटेड फ्लेम रिटार्डेंट्स या पॉलीक्लोराइनेटेड बाइफिनाइल्स जैसे कई विषैले पदार्थ होते हैं। ई-कचरे के अनियमित संचय, लैंडफिलिंग या अनुचित रीसाइक्लिंग प्रक्रियाएं मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए एक गंभीर खतरा बन जाती हैं। इसके विपरीत, ई-कचरे को धातु पुन:प्राप्ति और ऊर्जा उत्पादन के लिए ‘शहरी खान’ भी माना जा सकता है।

शोध में अपनाई गई पद्धति तीन-चरणीय प्रक्रिया

उन्होंने कहा कि शोध में अपनाई गई पद्धति तीन-चरणीय प्रक्रिया है। पहला, ई-कचरे की पायरोलिसिस, दूसरा धातु के अंश का पृथक्करण और तीसरा अलग-अलग धातुओं की पुन:प्राप्ति। प्रो पंत ने कहा, “इलेक्ट्रॉनिक कचरा (ई-कचरा) उत्पन्न होना अपरिहार्य है और समय रहते समस्या का समाधान नहीं किया जाना जल्द ही ठोस कचरे के पहाड़ों को जन्म देगा।

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