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भोजपुरी सिनेमा का भविष्य: सुधार की आख़िरी घड़ी, वरना इतिहास बन जाएगी इंडस्ट्री

  • फूहड़ता और गिरावट से जूझ रही इंडस्ट्री अंतिम मोड़ पर
  • दर्शक अब बदलाव की माँग कर रहे हैं
  • सरकार, समाज और कलाकार मिलकर उठाएँ ठोस कदम

भोजपुरी सिनेमा, जो कभी गाँव-देहात के जीवन की झलक और संस्कृति की पहचान था, आज अपने सबसे बड़े संकट के दौर से गुजर रहा है। कहानी, संवाद, गाने, पोस्टर और तकनीकी स्तर – हर मोर्चे पर गिरावट ने इंडस्ट्री को बदनाम कर दिया है। एक समय था जब भोजपुरी फिल्में उत्तर भारत के दर्शकों के दिलों पर राज करती थीं, लेकिन आज स्थिति यह है कि भोजपुरी फिल्म का नाम आते ही दर्शक “फूहड़ और अश्लील” कहकर किनारा कर लेते हैं।

पिछले एक हफ्ते से इस मुहिम में हमने दिखाया कि इंडस्ट्री किन-किन बीमारियों से जूझ रही है –

  • लोकगीत और संस्कृति का गायब होना।
  • फूहड़ गानों और संवादों की बाढ़।
  • अश्लील पोस्टर और यूट्यूब थंबनेल।
  • तकनीकी स्तर की कमजोरी।
  • महिला सम्मान और पारिवारिक मूल्यों पर सीधा हमला।

इन सबने मिलकर भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री की नींव को हिला दिया है। लेकिन सवाल यह है—क्या अब भी समय है सुधार का? विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अभी ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले दशक में भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री सिर्फ इतिहास के पन्नों में दर्ज रह जाएगी।

दर्शकों का बदलता विश्वास

  • पहले लोग भोजपुरी फिल्म का नाम सुनते ही गर्व महसूस करते थे।
  • आज वही दर्शक अपने बच्चों को भोजपुरी फिल्म दिखाने से कतराते हैं।
  • टिकट खिड़की पर परिवारों की बजाय सिर्फ युवा और मज़ाक उड़ाने वाले दर्शक रह गए हैं।

गिरावट का सामाजिक असर

  • गाँव-गाँव में भोजपुरी फिल्मों का मज़ाक उड़ाया जा रहा है।
  • समाज के सामने भोजपुरी बोलने वाले तक शर्मिंदगी महसूस करते हैं।
  • महिलाओं और बच्चों पर नकारात्मक असर गहराता जा रहा है।

विशेषज्ञों की राय

फिल्म समीक्षक राजीव आनंद:
“भोजपुरी इंडस्ट्री का संकट सिर्फ आर्थिक नहीं, नैतिक भी है। जब तक इंडस्ट्री अपनी आत्मा को नहीं पहचानेगी, सुधार असंभव है।”*

सामाजिक कार्यकर्ता सीमा देवी:
“अश्लीलता ने हमारी भाषा की गरिमा को चोट पहुँचाई है। यह अब सिर्फ फिल्मों का नहीं, समाज के अस्तित्व का प्रश्न है।”

डिजिटल युग की चुनौती

यूट्यूब और ओटीटी ने मौके भी दिए और संकट भी।
साफ-सुथरे कंटेंट को बढ़ावा मिल सकता है, लेकिन अश्लील गाने और भड़काऊ थंबनेल ज़्यादा तेजी से वायरल होते हैं।
डिजिटल प्लेटफॉर्म को नियंत्रित किए बिना सुधार संभव नहीं।

समाधान की राह

1. कहानी और संवाद:
– लोककथाओं, समाजिक मुद्दों और पारिवारिक मूल्यों को वापस लाना होगा।

2. गाने और संगीत:
– लोकगीतों को आधुनिक अंदाज़ में पेश करना, अश्लीलता से परहेज़।

3. पोस्टर और प्रचार:
– साफ-सुथरे प्रचार अभियान, यूट्यूब थंबनेल पर सख्त निगरानी।

4. तकनीकी सुधार:
– आधुनिक उपकरण, प्रशिक्षित तकनीशियन और बड़े बजट में निवेश।

5. सरकारी सहयोग:
– भोजपुरी फिल्म को क्षेत्रीय नहीं, राष्ट्रीय पहचान मिले।
– फिल्म सिटी और सब्सिडी जैसी योजनाएँ।

6. समाज की भूमिका:
– दर्शक ही असली ताकत हैं। उन्हें तय करना होगा कि अश्लील फिल्मों का बहिष्कार करें।

बॉक्स आइटम – सरकार और सेंसर की जिम्मेदारी

  • सेंसर बोर्ड को डबल मीनिंग गानों और संवादों पर सख्ती करनी होगी।
  • राज्य सरकारों को भोजपुरी सिनेमा के लिए अलग नीति बनानी होगी।
  • कलाकार संघों को आत्मनियंत्रण लागू करना होगा।

बदलाव की उम्मीद

युवा निर्देशक और गायक अब कोशिश कर रहे हैं कि भोजपुरी को सम्मान लौटाया जाए। कुछ फिल्में और वेब सीरीज़ साफ-सुथरे कंटेंट के साथ आई हैं और उन्हें सराहना भी मिली है। इसका मतलब है कि बदलाव संभव है, बस साहस और ईमानदारी चाहिए।

भोजपुरी सिनेमा को बचाने की यह आखिरी घड़ी है। यदि इंडस्ट्री, समाज और सरकार मिलकर ठोस कदम उठाएँ, तो भोजपुरी फिल्में फिर से परिवारों का मनोरंजन बन सकती हैं। लेकिन अगर लापरवाही और फूहड़ता का सिलसिला ऐसे ही चलता रहा, तो आने वाली पीढ़ियाँ सिर्फ इतना कहेंगी—*“कभी भोजपुरी नाम की भी एक फिल्म इंडस्ट्री हुआ करती थी।”*

“भोजपुरी सिनेमा बचाओ” मुहिम का सातवाँ और अंतिम दिन इसी संदेश के नाम— “अब नहीं सुधरे तो कभी नहीं सुधरेंगे।”

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