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जब बगैर शस्त्र उठाये युद्ध प्रवीण कृष्ण ने किया था अमरत्व प्राप्त कालेयवन का वध

ललितपुर : पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान कृष्ण के 108 नामों का जाप करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं मगर बहुत कम लोगों को पता होगा कि लीलाधर का एक नाम रणछोर भी है और इस नाम के पड़ने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है जब युद्ध के महारथी भगवान कृष्ण ने बगैर शस्त्र उठाये कालेयवन नामक राक्षस का वध किया था।ललितपुर जिला मुख्यालय से करीब 38 किमी की दूरी पर वन मार्ग पर स्थित भगवान कृष्ण की कर्मभूमि रणछोर धाम वंशीधर की इस कथा का जीवंत प्रमाण है।

रणछोर धाम जाने के लिये मुख्यालय से सडक मार्ग द्वारा देवगढ़ रोड पर ललितपुर से दक्षिण दिशा में 38 किमी एवं धौर्रा रेलवे स्टेशन से ग्राम धौजरी होकर छह किलोमीटर वनमार्ग तय करना पड़ता है। धौर्रा से निजी वाहन व टैक्सियां उपलब्ध हो जाती है।इस पौराणिक क्षेत्र के कण-कण में भगवान की अक्षय शक्ति मौजूद है व साक्षात भगवान कृष्ण का आशीर्वाद पाने के उद्देश्य से रणछोर धाम और मचकुन्द गुफा के दर्शन करने लाखों श्रद्धालु आते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण का जब राक्षस कालेयवन से मथुरा के पास घोर युद्ध हुआ तो शिव से वरदान प्राप्त राक्षस कालेयवन किसी भी अस्त्र-शस्त्र से पराजित नहीं हुआ।

कालयवन असीमित शक्ति का धनी था, जल-थल व आकाश में हुये युद्ध में उसे पराजित करना मुश्किल हो रहा था, ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण को ऋषि मचकुन्द की याद आयी, वह युद्ध मैदान से राक्षस की आँखों के सामने ही उसे ललकार कर इस प्रकार वायुमार्ग से भाग निकले कि राक्षस उनका आसानी से पीछा कर सके, उन्हें युद्ध मैदान से भागता देख कालेयवन यह अट्टहास करता हुआ कि ‘रणछोर’ कहाँ जा रहा है, श्रीकृष्ण का पीछा करता हुआ वहाँ तक आ पहुँचा, जहाँ गुफा में ऋषि मचकुन्द सो रहे थे, भगवान ने सोची-समझी रणनीति के तहत यहाँ सोये हुये ऋषि के ऊपर अपना कन्धे पर डाला हुआ वस्त्र ‘पीताम्बर’ डाल दिया, और स्वयं विशाल गुफा में पत्थरों के पीछे जा छिपे व पीछा करते आये राक्षस कालेयवन ने श्रीकृष्ण समझकर पैर की ठोकर मारकर ऋषि मचकुन्द को नींद से जगा दिया, अचानक राक्षस के पैर की ठोकर के आघात से जागे ऋषि क्रोध में आ गये व उन्होंने राक्षस पर जैसे ही अपनी योगशक्तिमय कोपदृष्टि डाली, राक्षस कालेयवन तत्काल वहीं भस्म हो गया।

तब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं भी यहाँ कुछ दिन विश्राम किया था व उनका तेज आज भी यहाँ की माटी में मौजूद है। यह भी मान्यता है कि ऋषि मचकुन्द आज भी सूक्ष्म रूप में जीवित हैं अपने भक्तों को दर्शन देते हैं।यह भी मान्यता है कि समुद्र-मंथन के बाद अमरत्व पाये देवों पर शक्तिशाली असुरों ने आक्रमण कर दिया, देवासुर संग्राम के दौरान देवराज इन्द्र ने महान योद्धा वीर राजा मचकुन्द से मदद ली, महावीर मचकुन्द देवों की ओर राक्षसों से लड़े, जब लम्बे युद्ध के बाद असुर पराजित हो गये, तो युद्ध से थके राजा मचकुन्द ने इन्द्र से वापिस पृथ्वी लोक जाकर अपने परिजनों से मिलने की इच्छा जताई, इस पर इन्द्र ने रहस्योद्घाटन किया कि देवलोक में कभी बुढ़ापा नहीं आता, इसलिये उन्हें पता नहीं चला कि मचकुन्द के देवलोक में आने से अब तक पृथ्वी लोक के हजारों साल बीत चुके हैं, अब उनका कोई परिचित पृथ्वी पर जीवित नहीं होगा, यह सुनकर मचकुन्द अवाक रह गये व उन्होंने पृथ्वी पर ही विश्राम करने की इच्छा जताई, इस पर इन्द्र ने बेतवा नदी के किनारे इस गुफा को सर्वश्रेष्ठ बताया व यह वरदान दिया कि आपको जो नींद से जगाकर परेशान करेगा वह आपकी ‘कोपदृष्टि’ पड़ते ही ‘भस्म’ हो जायेगा।

पहली बार ऋषि भागीरथ ने मचकुन्द के पुरखों को तारने के लिये स्वर्ग से आयी गंगा की धारा को लेकर यहाँ से गुजरे तो नदी के भीषण प्रवाह ने इस गुफा को जलमग्न कर दिया, इससे विश्रामरत ऋषि मचकुन्द की नींद में खलल पड़ गया व उनके जागते ही उनकी कोप-दृष्टि से नदी तत्काल सूख गयी, उस सूखी नदी के अवशेष यहाँ आज भी मौजूद हैं व यह जानकारी युद्धरत भगवान कृष्ण को थी, उन्हें मचकुन्द की नींद में खलल से पैदा होने वाली कोप-दृष्टि की अकाट्य शक्ति का पता था, यह प्रभु की लीला ही थी कि कि अपराजित कालेयवन के नाश के लिये वह उसे यहाँ ऋषि की नींद में खलल डलवाने युद्ध मैदान से लाये थे व भले ही स्वयं द्वारिकाधीश ‘रणछोर’ हो गये।

उन्होंने ऐसा कर पृथ्वी को राक्षसों से मुक्ति दिलाई व श्रीकृष्ण भगवान ने वहीं पास में ही एक विशालकाय वृक्ष के नीचे ऋषि की अनुमति लेकर विश्राम किया, ताकि अपनी शक्ति का पुनः संचय कर सकें व थके हुये श्रीकृष्ण भगवान जहाँ सोये थे, वह स्थान ही भगवान के कालेयवन के रखे नाम पर ‘रणछोर धाम’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया व कालान्तर में यहाँ मन्दिर बने फिर प्राचीन पाषाण मन्दिरों का देखरेख के अभाव में क्षरण होता चला गया व उनके अवशेषों से निर्मित एक पुराने विशिष्ट शैली के मन्दिर में यहाँ मूलनायक की 12 भुजा वाली शस्त्रधारी भगवान विष्णु की गरुड़ पर आरूढ़ प्रतिमा विराजमान है व यहाँ के प्रवेश द्वार पर अर्जुन को महाभारत के दौरान गीता का उपदेश देते सारथी श्रीकृष्ण की विशालकाय प्रतिमा भी दर्शनीय है।

यहाँ प्रतिवर्ष होने वाले अनेक परम्परागत आयोजनों में देश व विदेश के लाखों श्रद्धालु आस्था जताने आते हैं व शरद पूर्णिमा और मकर संक्रान्ति के अवसर पर यहाँ विशेष मेला लगता है एवं हर पूर्णमासी को भण्डारे का आयोजन होता है। (वार्ता)

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