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भारतीय उत्पादों की दुनिया में बड़ी मांग, अकरु कॉफी जी-20 में छाई रही : मोदी

केरल के कार्थुम्बी छातों की देश विदेश में बढ़ रही है मांग : मोदी

नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि भारतीय उत्पादों की विश्व बाजार में बड़ी मांग है और अकरु कॉफी जैसे उत्पादन की जी-20 सम्मेलन के दौरान धूम मची रही और उसने विश्व के नेताओं का मन मोह लिया था।श्री मोदी ने आकाशवाणी से प्रसारित अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ में रविवार को कहा कि भारतीय उत्पादों की दुनिया में बड़ी मांग है। आंध्र प्रदेश के आदिवासी इलाकों में उत्पादित अकरु कॉफी तो जी-20 में छाई रही। इसी तरह से जम्मू कश्मीर की सब्जी लंदन के बाजार में बिक रही है। इससे साबित होता है कि हमें अपने स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देना है और वैश्विक मांग को पूरा करने में योगदान देना है।

प्रधानमंत्री ने कहा,“भारत के कितने ही उत्पाद हैं जिनकी दुनिया-भर में बहुत मांग है और जब हम भारत के किसी स्थानीय उत्पादों को ग्लोबल होते देखते हैं, तो गर्व से भर जाना स्वाभाविक है। ऐसा ही एक उत्पाद है अकरु कॉफी। यह आंध्र प्रदेश के अल्लुरी सीता राम राजू जिले में बड़ी मात्रा में पैदा होती है। ये अपने विशिष्ट फ्लेवर और अरोमा के लिए जानी जाती है। अकरु कॉफी की खेती से करीब डेढ़ लाख आदिवासी परिवार जुड़े हुए हैं।”उन्होंने कहा,“अकरु कॉफी को नई ऊंचाई देने में गिरिजन सहकारिता की बहुत बड़ी भूमिका रही है। इसने यहाँ के किसान भाई बहनों को एक साथ लाने का काम किया और उन्हें अकरु कॉफी की खेती के लिए प्रोत्साहन दिया। इससे इन किसानों की कमाई भी बहुत बढ़ गई है। इसका बहुत बड़ा लाभ कोंडा डोरा आदिवासी समुदाय को भी मिला है। कमाई के साथ साथ उन्हें सम्मान का जीवन भी मिल रहा है।

मुझे याद है एक बार विशाखापत्तनम में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू गारु के साथ मुझे इस कॉफ़ी का स्वाद लेने का मौका मिला था। इसके टेस्ट की तो पूछिए ही मत ! कमाल की होती है ये कॉफी !अकरु कॉफी को कई वैश्विक स्तर पर सम्मान मिले हैं। दिल्ली में हुई जी-20 समिट में भी कॉफी छाई हुई थी। आपको जब भी अवसर मिले,आप भी अकरु कॉफी का आनंद जरूर लें।”प्रधानमंत्री ने स्थानीय उत्पादों को वैश्विक रूप देने में जम्मू-कश्मीर की भूमिका की सराहना की और कहा,“लोकल उत्पाद को ग्लोबल बनाने में हमारे जम्मू- कश्मीर के लोग भी पीछे नहीं हैं। पिछले महीने जम्मू-कश्मीर ने जो कर दिखाया है, वो देशभर के लोगों के लिए भी एक मिसाल है। यहाँ के पुलवामा से स्नो पीज की पहली खेप लंदन भेजी गई।

कुछ लोगों को ये आईडिया सूझा कि कश्मीर में उगने वाली एग्जॉटिक वेजिटेबल्स को क्यूँ ना दुनिया के नक्शे पर लाया जाए.. बस फिर क्या था… चकूरा गावं के अब्दुल राशीद मीर जी इसके लिए सबसे पहले आगे आए। उन्होंने गावं के अन्य किसानों की जमीन को एक साथ मिलाकर स्नो पीज उगाने का काम शुरू किया और देखते ही देखते स्नो पीज कश्मीर से लंदन तक पहुँचने लगी। इस सफलता ने जम्मू-कश्मीर के लोगों की समृद्धि के लिए नए द्वार खोले हैं। हमारे देश में ऐसे यूनिक उत्पाद की कमी नहीं है। आप ऐसे उत्पाद को हैशटेग मायप्रोड्कट माइपराइड के साथ जरूर शेयर करें। मैं इस विषय पर आने वाले ‘मन की बात’ में भी चर्चा करूँगा।”

केरल के कार्थुम्बी छातों की देश विदेश में बढ़ रही है मांग : मोदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि भारत के छाते भी विशिष्ट और आकर्षक बनावट के कारण बहुराष्ट्रीय बाजार में अच्छी बिक्री कर रहे हैं और इसका ताजा नमूना केरल के कार्थुम्बी छाते हैं जो ऑनलाइन बिक्री के साथ ही बहुराष्ट्रीय कंपनियों का सफर भी तय कर रहे हैं।प्रधानमंत्री ने मन की बात कार्यक्रम में रविवार को कहा,“देश के अलग-अलग हिस्सों में मॉनसून तेजी से अपना रंग बिखेर रहा है और बारिश के इस मौसम में सबके घर में जिस चीज की खोज शुरू हो गई है, वो है ‘छाता’। ‘मन की बात’ में आज मैं आपको एक खास तरह के छातों के बारे में बताना चाहता हूँ। ये छाते तैयार होते हैं हमारे केरल में।

”उन्होंने कहा,“वैसे तो केरला की संस्कृति में छातों का विशेष महत्व है। छाते, वहाँ कई परंपराओं और विधि-विधान का अहम हिस्सा होते हैं लेकिन मैं जिस छाते की बात कर रहा हूँ, वो हैं ‘कार्थुम्बी छाते’ और इन्हें तैयार किया जाता है केरला के अट्टापडी में। ये रंग-बिरंगे छाते बहुत शानदार होते हैं और खासियत ये इन छातों को केरला की हमारी आदिवासी बहनें तैयार करती हैं। आज देशभर में इन छातों की मांग बढ़ रही हैं।”श्री मोदी ने कहा,“इन छतों की ऑनलाइन बिक्री भी हो रही है। इन छातों को ‘वट्टालक्की सहकारी कृषि सोसाइटी’ की देखरेख में बनाया जाता है। इस सोसाइटी का नेतृत्व हमारी नारी-शक्ति के पास है।

महिलाओं के नेतृत्व में अट्टापडी के आदिवासी समुदाय ने उद्यमिता की अद्भुत मिसाल पेश की है। इस समाज ने एक बैंबू-हैंडीक्राफ्ट यूनिट की भी स्थापना की है। अब ये लोग एक रिटेल आउटलेट और एक पारंपरिक कि कैफ़े खोलने की तैयारी में भी हैं। इनका मकसद सिर्फ अपने छाते और अन्य उत्पाद बेचना ही नहीं, बल्कि ये अपनी परंपरा, अपनी संस्कृति से भी दुनिया को परिचित करा रहे हैं। आज कार्थुम्बी छाते केरला के एक छोटे से गाँव से लेकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों तक का सफर पूरा कर रहे हैं। लोकल के लिए वोकल होने का इससे बेहतरीन उदाहरण और क्या होगा।”(वार्ता)

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