
गांव की माटी से ग्लैमर तक: भोजपुरी सिनेमा के नायकों का सफर और संकट
“क्यों भोजपुरी सिनेमा गांव की माटी से हटकर अश्लीलता का अड्डा बन गया?”.गांव-देहात का दर्शक क्यों अब थिएटर नहीं जा रहा, क्यों यूट्यूब पर गानों का सहारा लिया जा रहा है।“भोजपुरी सिनेमा को बचाने के लिए अब नयी क्रांति चाहिए, वरना आने वाली पीढ़ी केवल यूट्यूबिया गानों को ही भोजपुरी संस्कृति समझ बैठेगी।”.कभी गांव की माटी की खुशबू से महकता भोजपुरी सिनेमा आज मसाले और अश्लीलता की बदबू में क्यों डूब गया है?.जिस इंडस्ट्री ने ‘गंगा मईया तोहे पियरी चढ़ाइबो’ जैसी क्लासिक फिल्में दीं, वही अब ‘हथकड़ी’ और ‘शेर सिंह’ जैसी बेमायने फिल्मों से क्यों बदनाम हो रही है?.सवाल सिर्फ फिल्मों का नहीं, सवाल पूरी भाषा और संस्कृति का है।
भोजपुरी सिनेमा का इतिहास गौरवशाली रहा है। 1963 में आई *गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो* ने न सिर्फ इस भाषा को फिल्मों के बड़े कैनवास पर उतारा बल्कि दर्शकों के दिलों को छू लेने वाली कहानियों का दौर भी शुरू किया। *नदिया के पार*, *बिदेसिया*, *पिया मिलन चौराहा* जैसी फिल्मों ने भोजपुरी सिनेमा को एक नई पहचान दी।
लेकिन 90 के दशक तक आते-आते यह चमक फीकी पड़ गई। VHS कल्चर, हिंदी फिल्मों की बढ़ती पकड़ और निवेश की कमी ने इंडस्ट्री को जड़ से हिला दिया।
2004 वह साल था जब *ससुरा बड़ा पैसावाला* ने भोजपुरी सिनेमा को पुनर्जीवित किया। मनोज तिवारी और रानी चटर्जी की यह फिल्म इतनी बड़ी हिट साबित हुई कि लोग फिर से भोजपुरी फिल्मों की ओर आकर्षित हुए। इसके बाद रवि किशन, दिनेश लाल यादव निरहुआ, पवन सिंह और खेसारीलाल यादव जैसे कलाकारों ने इंडस्ट्री को नई ऊर्जा दी। लेकिन 2025 तक आते-आते वही इंडस्ट्री आज गम्भीर संकट में है।
संकट की असली वजह: गंभीर लोगों का इंडस्ट्री में न आना
भोजपुरी फिल्मों को संकट में धकेलने का सबसे बड़ा कारण यह है कि इंडस्ट्री में गंभीर और दूरदर्शी लोग नहीं टिक पाए।
मुख्य कारण
- कहानी और पटकथा की कमजोरी – लेखक और निर्देशक पारिवारिक, सामाजिक और ऐतिहासिक विषयों से दूर भागते रहे।
- अश्लीलता और द्विअर्थी संवाद – आसान कमाई के लालच में गानों और संवादों को अश्लीलता से भर दिया गया।
- निवेशक और प्रोड्यूसर का मोहभंग – साफ-सुथरी फिल्में कमाई नहीं कर पाईं, जबकि मसालेदार फिल्में तुरंत पैसा ले आईं।
- गंभीर निर्देशक दूर रहे – हिंदी और दक्षिण भारतीय फिल्मों जैसे प्रयोगधर्मी निर्देशक भोजपुरी में नहीं आए।
- राजनीति की ओर रुख – कई बड़े अभिनेता सक्रिय राजनीति में चले गए, इंडस्ट्री को समय नहीं दे पाए।
- दर्शक वर्ग का बंटवारा – शहरी दर्शक दूर होते गए और फिल्में सिर्फ गांव-कस्बों तक सिमटकर रह गईं।
- OTT का असर – भोजपुरी कंटेंट पर गंभीर निवेश OTT प्लेटफॉर्म्स ने नहीं किया।
भोजपुरी के सितारों का सफर (2004–2025)
मनोज तिवारी – पुनर्जागरण का चेहरा
ससुरा बड़ा पैसावाला (2004) से भोजपुरी सिनेमा की नई शुरुआत हुई। इसके बाद *दरोगा बाबू आई लव यू, गंगा, ससुरा बड़ा पैसा वाला 2 जैसी फिल्मों ने उन्हें सुपरस्टार बना दिया। लेकिन 2010 के बाद राजनीति में व्यस्तता बढ़ी और वे फिल्मों से लगभग दूर हो गए। आज मनोज तिवारी लोकसभा सांसद हैं, लेकिन भोजपुरी फिल्मों में उनकी कमी हमेशा खलती है।
रवि किशन – बहुआयामी कलाकार
2004–2012 तक रवि किशन ने भोजपुरी फिल्मों में लगातार काम किया। बिदाई, बलिदान, गंगा जमुना सरस्वती, सत्यानाश जैसी फिल्मों में वे नजर आए। 2006 में बिग बॉस में शामिल होकर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। 2010 के बाद हिंदी और दक्षिण फिल्मों में भी काम किया। 2019 में भाजपा से गोरखपुर से सांसद बने। अभिनय क्षमता जबरदस्त रही, लेकिन राजनीति में सक्रियता ने भोजपुरी में उनकी फिल्मों की संख्या घटा दी।
दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ – जमीनी स्टार
2006 में चलत मुसाफिर मोह लियो रे से डेब्यू किया। निरहुआ रिक्शावाला* उनकी पहचान बन गई। गंगा जमुना सरस्वती, लव और राजनीति, साजन चले ससुराल जैसी फिल्मों से सुपरस्टार बने। 2019 में भाजपा से सांसद बने, आज भी फिल्मों में सक्रिय हैं। पारिवारिक और एक्शन फिल्मों में उनकी पकड़ मजबूत रही।
पवन सिंह – पावर स्टार
2008 में लोहा पहलवान से पहचान मिली। 2009 में गाया गाना लॉलीपॉप लागेलू ने उन्हें घर-घर तक पहुंचाया। त्रिदेव, सत्या, राजा जैसी फिल्मों ने उन्हें सुपरहिट स्टार बना दिया। पवन सिंह आज भी इंडस्ट्री के सबसे महंगे अभिनेताओं में गिने जाते हैं। हालांकि उनकी निजी जिंदगी और विवादों ने उनकी इमेज को कई बार नुकसान पहुंचाया।
खेसारीलाल यादव – संघर्ष से स्टारडम तक
मजदूरी करने वाले खेसारीलाल ने 2012 में साजन चले ससुराल से डेब्यू किया। बलम जी लव यू, दुल्हन गंगा पार के, मेहंदी लगाके रखना जैसी फिल्मों ने उन्हें टॉप स्टार बना दिया। वे गायकी और एक्शन दोनों में माहिर हैं। यूट्यूब पर उनकी फिल्मों और गानों की सबसे ज्यादा मांग रहती है।
सुपरहिट बनाम सुपरफ्लॉप फिल्मों का विश्लेषण
सुपरहिट फिल्में
- ससुरा बड़ा पैसावाला (2004) – मनोज तिवारी
- बिदाई (2008) – रवि किशन
- निरहुआ रिक्शावाला (2008) – निरहुआ
- लोहा पहलवान (2008) – पवन सिंह
- दुल्हन गंगा पार के (2018) – खेसारीलाल यादव
सुपरफ्लॉप फिल्में
- दिलवर (अरविंद अकेला कल्लू)
- ट्रैक्टर वाला लव स्टोरी (प्रमोद प्रेमी)
- छोरा गंगा किनारे वाला (अरविंद अकेला कल्लू)
- विदाई 2 (समर सिंह)
- मजनुआ (प्रमोद प्रेमी)
सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले अभिनेता
भोजपुरी इंडस्ट्री में कई ऐसे कलाकार भी आए जिनकी फिल्मों ने दर्शकों को निराश किया।
अरविंद अकेला “कल्लू” – लगातार फ्लॉप फिल्मों की वजह से आलोचना झेली। दिलवर, आवारा बलम, छोरा गंगा किनारे वाला बॉक्स ऑफिस पर धराशायी रहीं। गायक के रूप में लोकप्रिय, लेकिन हीरो के रूप में विफल। प्रमोद प्रेमी – गानों से लोकप्रिय हुए लेकिन फिल्में फ्लॉप होती गईं। समर सिंह – स्टेज शो और यूट्यूब तक सीमित, सिनेमाघरों में भीड़ नहीं जुटा पाए।
राजनीति में अभिनेता – सफलता और असफलता
मनोज तिवारी – भाजपा से सांसद, राजनीतिक रूप से सफल।
रवि किशन – गोरखपुर से सांसद, सक्रिय और चर्चित।
निरहुआ (दिनेश लाल यादव) – आजमगढ़ से सांसद, सक्रिय।
पवन सिंह – राजनीति में कदम रखने की चर्चा, लेकिन अभी सक्रिय नहीं।
खेसारीलाल यादव – राजनीति से दूरी बनाए हुए।
राजनीति ने इन कलाकारों की फिल्मों पर असर डाला। फिल्मों की संख्या घटी और इंडस्ट्री पर ध्यान कम हुआ।
सबसे अधिक अश्लीलता फैलाने के आरोप किस अभिनेता पर लगे?
- पवन सिंह – कई बार उनके गानों (लॉलीपॉप लागेलू, चलकाता हमरो जवानिया, पिया पियाला पियाइबू) और फिल्मों पर अश्लीलता
- फैलाने का आरोप लगा।
- खेसारीलाल यादव – सुपरस्टार होने के बावजूद उनके गानों और फिल्मों में डबल मीनिंग बोल और सीन शामिल किए गए, जिन पर आपत्ति जताई गई।
- अरविंद अकेला “कल्लू” – शुरुआती दौर में उनकी फिल्मों और गानों को भी अश्लीलता का प्रतीक माना गया।
लेकिन **सबसे ज़्यादा आलोचना पवन सिंह और खेसारीलाल यादव** को झेलनी पड़ी, क्योंकि उनकी लोकप्रियता बहुत बड़ी है और उनके गाने यूट्यूब पर करोड़ों बार देखे गए।
कौन सी फिल्म सबसे अधिक अश्लील मानी गई?
- “लोहा पहलवान” (2008, पवन सिंह) – कई सीन और गानों पर आपत्ति उठी, इसे बेहद अश्लील करार दिया गया।
- “त्रिदेव” (2016, पवन सिंह) – संवाद और गानों में अश्लीलता के आरोप लगे।
- “दबंग सरकार” (2018, खेसारीलाल यादव) – गानों और डांस सीन्स के कारण विवादों में रही।
- “संघर्ष” (2019, खेसारीलाल यादव) – कहानी दमदार थी लेकिन कई गानों को “फैमिली दर्शकों के लिए अनुपयुक्त” बताया गया।
भोजपुरी इंडस्ट्री की अश्लील छवि बनाने में पवन सिंह और खेसारीलाल यादव की फिल्मों और गानों को सबसे अधिक जिम्मेदार ठहराया गया। पारिवारिक दर्शकों ने धीरे-धीरे सिनेमाघरों से दूरी बना ली, जिससे इंडस्ट्री की गंभीरता खत्म होती चली गई।
इंडस्ट्री की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार कौन
- निर्माता – तात्कालिक कमाई के चक्कर में अश्लील फिल्मों पर जोर।
- निर्देशक – कहानी और गुणवत्ता से ज्यादा जल्दी रिलीज पर ध्यान।
- कलाकार – विवादों, राजनीति और निजी शोहरत में उलझे।
- दर्शक – गुणवत्ता वाली फिल्मों को सपोर्ट नहीं किया।
भविष्य की राह
- पारिवारिक और सामाजिक कहानियों पर फिल्में बनानी होंगी।
- नए लेखकों और निर्देशकों को मौका देना होगा।
- राजनीति से दूर रहकर कलाकारों को इंडस्ट्री पर ध्यान देना होगा।
- OTT प्लेटफॉर्म पर भोजपुरी कंटेंट को जगह देनी होगी।
- दर्शकों को भी साफ-सुथरी फिल्मों को बढ़ावा देना होगा।
निष्कर्ष
भोजपुरी सिनेमा गांव की माटी से उठा, ग्लैमर तक पहुंचा, लेकिन अब संकट में है।
मनोज तिवारी, रवि किशन, निरहुआ, पवन सिंह और खेसारीलाल यादव जैसे नायकों ने इसे ऊंचाई दी।
लेकिन अश्लीलता, कमजोर कहानी, राजनीति और दर्शकों की उदासीनता ने इंडस्ट्री को खोखला कर दिया।
भोजपुरी सिनेमा को बचाना सिर्फ कलाकारों की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि दर्शकों और समाज की भी है।
अगर समय रहते सुधार नहीं हुआ तो आने वाले दशक में यह इंडस्ट्री पूरी तरह हाशिए पर चली जाएगी।
गांव की माटी से ग्लैमर तक: भोजपुरी सिनेमा की नायिकाओं का सफर
गांव की माटी से मसाले तक: भोजपुरी सिनेमा की गिरती साख और सुधार की राह



