झीरम घाटी नक्सली हमला – छत्तीसगढ़ सरकार की याचिका खारिज की
नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने 2013 के झीरम घाटी नक्सली हमले की जांच के लिए गठित न्यायिक आयोग द्वारा अतिरिक्त गवाहों से पूछताछ से इंकार के खिलाफ छत्तीसगढ़ सरकार की याचिका मंगलवार को खारिज कर दिया। इस हमले में राज्य के कांग्रेस नेताओं समेत 29 लोगों की मौत हो गई थी।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्ययामूर्तिएम आर शाह की पीठ ने कहा कि हो सकता है कि राज्य सरकार ने आयोग का कार्यकाल बढ़ाया हो लेकिन पैनल ने कार्यवाही बंद कर दी है।
पीठ ने कहा, ‘‘आप चाहते हैं कि अतिरिक्त गवाहों से पूछताछ की जाए, लेकिन आयोग सहमत नहीं है। हो सकता है कि आपने आयोग का कार्यकाल बढ़ाया हो लेकिन आयोग ने इसकी कार्यवाही बंद कर दी है।’’
इस मामले में अतिरिक्त गवाहों से पूछताछ के लिए विशेष न्यायिक जांच आयोग को निर्देश देने की राज्य सरकार की याचिका छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने खारिज कर दी थी, जिस फैसले को राज्य सरकार ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी।
गौरतलब है कि 25 मई 2013 को, नक्सलियों ने बस्तर जिले के दरभा क्षेत्र की झीरम घाटी में कांग्रेस नेताओं के एक काफिले पर हमला किया था, जिसमें 29 लोगों की मौत हो गई थी, जिसमें तत्कालीन राज्य कांग्रेस प्रमुख नंद कुमार पटेल, पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा और पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल शामिल थे।
स्थायी वकील सुमीर सोढ़ी के साथ छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील ए एम सिंघवी ने पीठ को बताया कि यह घटना मई 2013 में हुई थी जिसके बाद आयोग का गठन किया गया था।
सिंघवी ने कहा कि दिसंबर 2018 में राज्य में एक नई सरकार का गठन किया गया और उस समय तक 67 गवाहों से पूछताछ की गई थी।
उन्होंने कहा, ‘‘इस संदर्भ में अतिरिक्त कार्यशर्तें दी गई थीं, लेकिन सात महीने तक कुछ भी नहीं किया गया था और अतिरिक्त गवाहों से पूछताछ नहीं की गई थी।’’
उन्होंने कहा कि पिछले साल अक्टूबर में, दो गवाहों से पूछताछ की गई थी, लेकिन प्रभारी अधिकारी या राज्य द्वारा बुलाये गये छह अन्य गवाहों से पूछताछ नहीं की गई थी।
पीठ ने कहा कि आयोग ने सितंबर में कहा कि वह पिछले साल एक अक्टूबर के बाद आए किसी भी नए गवाहों से पूछताछ नहीं करेगा।
सिंघवी ने कहा कि राज्य ने 30 सितंबर को इस मामले में हलफनामा दायर किया था।
उन्होंने कहा, ‘‘यह बहुत ही महत्वपूर्ण घटना है, वे पाँच गवाहों से पूछताछ क्यों नहीं कर सकते। यह पत्थर पर खींची गई कोई लकीर नहीं है। वे सच्चाई का पता लगाने के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं।’’
राज्य सरकार ने 24 सितंबर को न्यायालय से कहा था कि आयोग ने छह महत्वपूर्ण गवाहों के बयान दर्ज करने का अनुरोध अस्वीकार करते हुये जांच खत्म कर दी थी।
राज्य सरकार का कहना था कि न्यायिक आयोग ने कांकेड़ के जंगल कल्याण प्रशिक्षण स्कूल के निदेशक बी के पंवार का बतौर विशेषज्ञ बयान दर्ज करने से इंकार कर दिया और उनसे पूछताछ करने का राज्य सरकार का अनुरोध ठुकरा दिया। इसके साथ ही उन्होंने आयोग की कार्यवाही बंद कर दी।
सिंघवी ने कहा, ‘‘छह व्यक्तियों की सूची में से किसी से भी आयोग ने पूछताछ नहीं की है।’’ उन्होंने कहा कि आयोग को अतिरिक्त कार्य शर्ते दी गयीं थीं जिसे आयोग ने सितंबर, 2019 में स्वीकार किया था।
उन्होंने दलील दी कि इन अतिरिक्त कार्यशर्तो का क्या हुआ जबकि पुराने गवाहों से पूछताछ जारी रही और आयोग ने अतिरिक्त गवाहों से पूछताछ नहीं की।
राज्य सरकार ने अपनी अपील में कहा था कि उच्च न्यायालय की बिलासपुर की पीठ ने 29 जनवरी को अतिरिक्त गवाहों को बुलाने के बारे में एकल न्यायाधीश के 12 दिसंबर, 2019 के आदेश में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया था।