संकल्प संस्था का अन्न क्षेत्र:सेवा का संस्कार और समाज के प्रति समर्पण का प्रतीक
वाराणसी की सामाजिक संस्था संकल्प द्वारा संचालित संकल्प अन्न क्षेत्र हर शनिवार जरूरतमंदों के बीच प्रसाद (खिचड़ी) वितरण कर मानवता की मिसाल पेश कर रहा है। चौक स्थित श्री संकटमोचन हनुमान मंदिर परिसर में आयोजित इस कार्यक्रम की शुरुआत भोग अर्पण से होती है। संस्था के संरक्षक अनिल कुमार जैन ने कहा कि “भूखे को भोजन कराना सबसे बड़ा धर्म है।” इस सेवा अभियान में शहर के अनेक समाजसेवी और श्रद्धालु सक्रिय सहयोग दे रहे हैं। संकल्प अन्न क्षेत्र आज सेवा, संस्कार और समर्पण का प्रतीक बन चुका है।
- भूखे को भोजन, प्यासे को जल – संकल्प संस्था का अन्न क्षेत्र मानवता की सेवा में बना प्रेरणा का प्रतीक
वाराणसी। सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है – इस भाव को जीवन का संकल्प बनाकर वाराणसी की सामाजिक संस्था संकल्प हर शनिवार समाज में सेवा का दीप जलाती है। संस्था द्वारा संचालित संकल्प अन्न क्षेत्र के तहत इस शनिवार भी चौक स्थित श्री संकटमोचन हनुमान जी मंदिर परिसर में प्रसाद (खिचड़ी) वितरण का आयोजन हुआ। मंदिर में भोग अर्पण के बाद श्रद्धालुओं ने लाइन लगाकर ससम्मान प्रसाद ग्रहण किया।
इस सेवा के पीछे केवल भोजन वितरण नहीं, बल्कि समाज को जोड़ने और मानवता का संदेश फैलाने की भावना झलकती है। आयोजन में प्रो. अनिल कुमार द्विवेदी, श्रीमती शशि द्विवेदी और मृदुला अग्रवाल का विशेष सहयोग रहा। संस्था के संरक्षक अनिल कुमार जैन ने कहा – “संकल्प संस्था का ध्येय केवल सेवा करना है। भूखे को भोजन और प्यासे को जल पिलाना ही सबसे बड़ा धर्म है। हर शनिवार प्रसाद वितरण के माध्यम से हमें यह संतोष मिलता है कि हम समाज के लिए कुछ कर पा रहे हैं। यही सच्ची पूजा और यही असली संकल्प है।”
कार्यक्रम में गिरधर दास अग्रवाल (मद्रास क्लॉथ सेंटर), संतोष अग्रवाल (कर्णघंटा), राजेंद्र अग्रवाल (माड़ी वाले), संजय अग्रवाल “गिरिराज”, पवन राय, अमित श्रीवास्तव, भईया लाल, रंजनी यादव, मनीष सहित संस्था के कई सदस्य और सहयोगी उपस्थित रहे। इस नियमित सेवा कार्य ने अब स्थानीय लोगों में भी प्रेरणा का संचार किया है। कई श्रद्धालु हर सप्ताह इस पुनीत अभियान से जुड़ रहे हैं। संकटमोचन मंदिर परिसर में उठती खिचड़ी की सुगंध अब सिर्फ भोजन नहीं, बल्कि सामाजिक एकता, सेवा और आस्था की महक बन चुकी है।
संकल्प अन्न क्षेत्र आज वाराणसी की उस सेवा परंपरा का जीवंत उदाहरण है, जो बताती है – “जहाँ करुणा है, वहीं काशी का असली स्वरूप बसता है।”
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