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शरद पूर्णिमा की चांदनी रात में रखे चावल की खीर, मिलेगा स्वास्थ्य लाभ

लखनऊ । हिन्दी कैलेण्डर के अनुसार आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को ‘शरद पूर्णिमा’ मनाई जाती है। इस दिन रास-उत्सव और कोजागर व्रत किया जाता है। पौराणिक आख्यान है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण ने महारास किया था। अतः शरद पूर्णिमा की रात्रि का विशेष महत्व है। इस रात को चन्द्रदेव अपनी पूर्ण कलाओं के साथ पृथ्वी पर शीतलता, पोषक शक्ति एवं शांतिरूपी अमृतवर्षा करते हैं।

शरद पूर्णिमा की रात्रि में विधि व निषेध ?

दशहरे से शरद पूर्णिमा तक चन्द्रमा की चांदनी में विशेष हितकारी रस, हितकारी किरणें होती हैं। इन दिनों चन्द्रमा की चांदनी का लाभ लेने से वर्षभर स्वस्थ और प्रसन्न रहा जा सकता है। ऐसा कहा जाता है कि दशहरे से शरद पूर्णिमा तक प्रतिदिन रात्रि में 15 से 20 मिनट तक चन्द्रमा के ऊपर त्राटक करने से नेत्र ज्योति बढ़ती है।

धर्मग्रंथों में अश्विनी कुमार को देवताओं के वैद्य कहा गया हैं, जो भी इन्द्रियां शिथिल हो गयी हों, उनको पुष्ट करने के लिए चन्द्रमा की चांदनी में खीर रखना और भगवान को भोग लगाकर अश्विनी कुमारों से प्रार्थना करना कि ‘हमारी इन्द्रियों का बल-ओज बढ़ायें।’ फिर वह खीर प्रसाद स्वरूप ग्रहण करनी चाहिए।इस रात सूई में धागा पिरोने का अभ्यास करने से भी नेत्रज्योति बढ़ती है ।

शरद पूर्णिमा दमे की बीमारी वालों के लिए है वरदान

छोटी इलाइची को, चन्द्रमा की चांदनी में रखी हुई खीर में मिलाकर खा लें और रात को सोएं नहीं। श्वास रोग ठीक हो जायेगा। चन्द्रमा की चांदनी गर्भवती महिला की नाभि पर पड़े तो गर्भ पुष्ट होता है। शरद पूर्णिमा की चांदनी का अपना महत्व है लेकिन बारहों महीने चन्द्रमा की चांदनी गर्भ को और औषधियों को पुष्ट करती है।

अमावस्या और पूर्णिमा को चन्द्रमा के विशेष प्रभाव से समुद्र में ज्वार-भाटा आता है। जब चन्द्रमा इतने बड़े समुद्र में उथल-पुथल कर विशेष कम्पायमान कर देता है तो हमारे शरीर में जो जलीय अंश है, सप्तधातुएं हैं, सप्त रंग हैं, उन पर भी चन्द्रमा का प्रभाव पड़ता है। इन दिनों में काम क्रिया से दूर रहना चाहिए, नहीं तो विकलांग संतान अथवा जानलेवा बीमारी हो जाती है और यदि उपवास, व्रत तथा सत्संग किया तो तन तंदुरुस्त, मन प्रसन्न और बुद्धि कुशाग्र होती है।

खीर को बनायें अमृतमय प्रसाद

शरद पूर्णिमा पर बनाई जाने वाली खीर मात्र एक व्यंजन नहीं होती है। ग्रंथों के अनुसार ये एक दिव्य औषधि होती है। खीर को रसराज कहते हैं। यदि संभव हो तो ये खीर चांदी के बर्तन में बनाएं। इसे गाय के दूध में चावल डालकर ही बनाएं। चावल को हविष्य अन्न यानी देवताओं का भोजन बताया गया है। महालक्ष्मी भी चावल से प्रसन्न होती हैं।

खीर बनाते समय शुद्ध चांदी के बर्तन अथवा सोना (सुवर्ण) धोकर के खीर में डाल दो तो उसमें रजतक्षार या सुवर्णक्षार आयेंगे। लोहे की कड़ाही अथवा पतीली में खीर बनाने से लौह तत्व भी उसमें आ जायेगा।

इसके साथ ही गाय का घी, केसर, बादाम, इलायची, छुहाड़ा आदि सूखे मेवों का उपयोग भी इस खीर में कर सकते हैं इलायची का प्रयोग अवश्य करें। यदि संभव हो तो खीर को चंद्रमा की रोशनी में ही बनाना चाहिए। रात्रि में महीन कपड़े से ढंककर चन्द्रमा की चांदनी में रखी हुई खीर प्रातः भगवान को भोग लगाकर प्रसाद रूप में लेनी चाहिए। खीर दूध, चावल, मिश्री, चांदी, चन्द्रमा की चांदनी, इन पंचश्वेतों से युक्त होती है, अतः सुबह बासी नहीं मानी जाती।(हि.स.)

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