
न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग को लेकर याचिका दायर
नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास पर हाल में कथित तौर पर अवैध नकदी मिलने के मामले में उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग को लेकर उच्चतम न्यायलय में याचिका दायर की गयी है।भारत के मुख्य न्यायाधीश(सीजेआई) संजीव खन्ना के समक्ष यह याचिका बुधवार को तत्काल सुनवाई के लिए प्रस्तुत की गयी।मुख्य याचिकाकर्ता अधिवक्ता मैथ्यूज जे नेदुम्परा ने सीजेआई के समक्ष मामले का उल्लेख किया।न्यायमूर्ति खन्ना ने शुरू में टिप्पणी की, “आपका मामला सूचीबद्ध हो गया है। कोई सार्वजनिक बयान न दें।”नेदुम्परा ने न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की आवश्यकता पर जोर दिया और जले हुए नोटों के वीडियो सहित प्रासंगिक रिकॉर्ड सार्वजनिक करने के लिए सीजेआई की सराहना की।
सीजेआई ने याचिकाकर्ता को सुनवाई की तारीख के लिए रजिस्ट्री से जांच करने की सलाह दी।नेदुम्परा के साथ मौजूद एक अन्य सह-याचिकाकर्ता ने टिप्पणी की, “अगर यह रकम किसी व्यवसायी के घर पर पाई गई होती, तो ईडी और आयकर जैसी एजेंसियां तुरंत कार्रवाई करतीं।” पीठ ने आगे की चर्चा करने से यह आश्वासन देते हुए इनकार कर दिया कि मामले को नियत समय में सूचीबद्ध किया जायेगा।याचिका में सीजेआई द्वारा नियमित आपराधिक जांच का आदेश देने के बजाय तीन न्यायाधीशों के पैनल द्वारा इन-हाउस जांच शुरू करने के फैसले को चुनौती दी गयी है। यह के. वीरस्वामी बनाम भारत संघ में स्थापित मिसाल पर भी सवाल उठाता है, जिसमें किसी मौजूदा उच्च न्यायालय या शीर्ष न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने से पहले सीजेआई से परामर्श करना अनिवार्य है।
याचिका में तर्क दिया गया है कि जबकि अधिकांश न्यायाधीश ईमानदारी को बनाए रखते हैं, वहीं वर्तमान मामले को आपराधिक प्रक्रियाओं को दरकिनार नहीं करना चाहिए। याचिका में कहा गया है, “कोई भी प्राथमिकी दर्ज न करने का निर्देश निश्चित रूप से माननीय न्यायाधीशों के इच्छित दायरे में नहीं है। इस तरह के निर्देश से देश के दंडात्मक कानूनों से मुक्त एक विशेष वर्ग का निर्माण होता है। जबकि न्यायपालिका में बड़े पैमाने पर विद्वान और ईमानदार व्यक्ति शामिल हैं, भ्रष्टाचार से जुड़ी घटनाओं, जैसा कि न्यायमूर्ति निर्मल यादव और अब न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा जैसे मामलों में देखा गया है, की स्थापित आपराधिक कानूनों के तहत जांच की जानी चाहिए।”याचिका में कहा गया है कि पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने के बजाय आंतरिक जांच करने के लिए तीन सदस्यीय समिति बनाने का शीर्ष न्यायालय कॉलेजियम का फैसला जनहित के खिलाफ है।
इसमें कहा गया है कि कॉलेजियम ने प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश देने के बजाय न्यायाधीशों की एक समिति नियुक्त करके न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई है। यह फैसला जनहित में नहीं है और कानून के शासन को कमजोर करता है।”याचिकाकर्ता ने यह घोषित करने की मांग की है कि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आवास पर बेहिसाब नकदी की बरामदगी एक संज्ञेय अपराध है जिसके लिए प्राथमिकी दर्ज करना आवश्यक है।याचिकाकर्ता ने दिल्ली पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने और स्वतंत्र जांच करने का निर्देश देने तथा किसी भी अधिकारी को इस मामले में पुलिस के काम में हस्तक्षेप करने से रोकने के लिए निरोधक आदेश जारी करने की भी मांग की है।याचिकाकर्ता ने न्यायिक भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाने के लिए सरकार को निर्देश देने की भी मांग की है, जिसमें समाप्त हो चुके न्यायिक मानक और जवाबदेही विधेयक, 2010 को लागू करना भी शामिल है।(वार्ता)
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