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“पवन सिंह : आवाज़ जिसने भोजपुरी सिनेमा को नई ऊँचाई दी”

आरा की मिट्टी से निकले पवन सिंह ने अपने संघर्ष, मेहनत और सादगी से भोजपुरी सिनेमा को नई पहचान दी। यह जीवनी बताती है कि कैसे एक साधारण लड़का अपनी आवाज़ के दम पर “भोजपुरी सिनेमा का सम्राट” बन गया।

  • फैन फॉलोइंग से लेकर राजनीति तक – हर दिल में बसने वाला नाम ‘पवन सिंह’
  • भोजपुरी सिनेमा का शेर, जिसने आवाज़ से इतिहास लिखा

भोजपुरी सिनेमा की पहचान जब केवल कुछ पारंपरिक फिल्मों तक सीमित थी, तब एक आवाज़ ने पूरे उद्योग को हिला दिया – वह आवाज़ थी पवन सिंह की। यह सिर्फ़ एक गायक की कहानी नहीं है, बल्कि उस इंसान की गाथा है जिसने अपनी मेहनत, आवाज़ और जुनून से भोजपुरी को राष्ट्रीय स्तर तक पहुँचा दिया। साल 2008 में जब उनका सुपरहिट गाना “लॉलीपॉप लागेलू” रिलीज़ हुआ, तब शायद किसी ने नहीं सोचा था कि यह गीत भोजपुरी संगीत की तकदीर बदल देगा। यह गाना भारत से लेकर विदेशों तक गूंजा – शादी-ब्याह, पार्टी, कॉलेज फंक्शन, यहाँ तक कि विदेशी डीजे तक इसकी धुन पर थिरके। “लॉलीपॉप लागेलू” सिर्फ़ एक गीत नहीं था, यह भोजपुरी अस्मिता की नई पहचान बन गया। और इसके गायक – पवन सिंह – लाखों-करोड़ों दिलों में छा गए।

आज पवन सिंह न केवल भोजपुरी सिनेमा के सबसे लोकप्रिय अभिनेता और गायक हैं, बल्कि एक ब्रांड बन चुके हैं। उनका नाम आज भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री का प्रतीक है। पर यह सफलता उन्हें यूँ ही नहीं मिली। इसके पीछे सालों की मेहनत, संघर्ष और हिम्मत की लंबी कहानी है। यह कहानी है उस छोटे से गाँव के लड़के की, जिसने बचपन में लोकगीत गाए, मंडलियों में भजन गाया, और फिर पूरी दुनिया में अपनी आवाज़ से नाम रौशन किया।

बचपन और प्रारंभिक जीवन – आरा की मिट्टी से निकला संगीत का सितारा

आरा – यही वह धरती है जहाँ 5 मार्च 1986 को पवन सिंह का जन्म हुआ। यह वही भूमि है जहाँ की मिट्टी में संगीत, लोक परंपरा और बोली की मिठास बसी हुई है। पवन सिंह का जन्म एक साधारण भोजपुरी परिवार में हुआ था, जो खेती-किसानी और पारंपरिक जीवन से जुड़ा था। उनके पिता किसान थे और परिवार में लोकगीतों की परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही थी।बचपन से ही पवन को संगीत से लगाव था। जब उनके हमउम्र बच्चे खेलों में मग्न रहते, तब पवन ताल और सुर के साथ खेलते थे।गाँव के मेलों, धार्मिक आयोजनों और स्कूल के कार्यक्रमों में वे अक्सर गीत गाते थे। उनकी आवाज़ में बचपन से ही एक अनोखा जोश था – देसी मिट्टी की महक और दर्द की गहराई दोनों।

पवन के परिवार में आर्थिक स्थिति बहुत मज़बूत नहीं थी, लेकिन संगीत के प्रति जुनून उन्हें हर कठिनाई से लड़ने की ताकत देता था। उनकी दादी और माँ भक्ति गीत गाया करती थीं, और पवन उनके साथ बैठकर सुर मिलाया करते थे। इन्हीं दिनों से उनके भीतर गायक बनने का सपना आकार लेने लगा। स्कूल की पढ़ाई के दौरान भी वे सांस्कृतिक कार्यक्रमों के स्टार माने जाते थे। हर कोई कहता – “इस लड़के में कुछ अलग बात है, इसकी आवाज़ दिल छू जाती है।” किशोरावस्था तक पहुँचते-पहुँचते उन्होंने तय कर लिया था कि उन्हें संगीत की दुनिया में अपना नाम बनाना है।लेकिन रास्ता आसान नहीं था। बिहार के छोटे कस्बे में किसी गायक का सपना देखना एक असंभव-सा विचार था। पर पवन सिंह का आत्मविश्वास उन्हें पीछे हटने नहीं देता था।

उनके परिवार ने भी उनका साथ दिया। माँ ने कहा था – “अगर तुम्हें गाना है, तो गाओ बेटे, बस अपनी मेहनत पर भरोसा रखना।” यह वाक्य उनके जीवन का मंत्र बन गया। धीरे-धीरे पवन ने स्थानीय आयोजनों, सांस्कृतिक मंचों और भजन मंडलियों में गाना शुरू किया। लोग उनकी आवाज़ से प्रभावित होने लगे। उनकी लोकप्रियता पहले गाँव में, फिर ज़िले में और धीरे-धीरे पूरे बिहार में फैलने लगी।

संगीत की शुरुआत – कैसे गायक पवन सिंह बने भोजपुरी का पर्याय

भोजपुरी संगीत की दुनिया में 90 के दशक के आख़िरी सालों में जब पारंपरिक भक्ति गीत और देहाती एल्बम धीरे-धीरे बदल रहे थे, तब एक नई पीढ़ी के गायक उभरने लगे थे। उसी दौर में पवन सिंह ने भी अपने सपनों को पंख दिए। उन्होंने शुरुआत की छोटे-छोटे मंचों और मेलों में गाना गाकर। कभी गाँव के मेले, तो कभी मंदिरों के बाहर लगने वाली भजन संध्याएँ – वही थे उनके पहले “कंसर्ट”। उनकी आवाज़ में एक अलग करिश्मा था – देसीपन, जो सीधा दिल को छू जाए। लोग कहते, “इस लड़के की आवाज़ में ताक़त है, दर्द है, और अपनापन भी।”

धीरे-धीरे पवन ने स्थानीय म्यूज़िक कंपनियों से संपर्क करना शुरू किया। उस समय भोजपुरी एल्बमों का ज़माना था – कैसेट और सीडी के ज़रिए गाने हर गाँव-गली में सुने जाते थे। इन्हीं दिनों में उन्होंने अपना पहला एल्बम रिकॉर्ड कराया। हालांकि शुरुआती एल्बम ज़्यादा सफल नहीं हुए, लेकिन उनकी आवाज़ ने म्यूज़िक डायरेक्टरों और प्रोड्यूसरों का ध्यान खींचा। फिर आया वह मोड़ जिसने उनकी ज़िंदगी बदल दी -साल 2008, जब उनका गाना “लॉलीपॉप लागेलू” रिलीज़ हुआ।

यह गीत सिर्फ़ एक भोजपुरी गाना नहीं था – यह एक क्रांति थी। देश के हर कोने में, और यहां तक कि विदेशों में भी, इस गाने ने तहलका मचा दिया। बारातों, पार्टियों, डीजे, कॉलेज फेस्ट, हर जगह बस एक ही धुन सुनाई देती –

“लॉलीपॉप लागेलू…” इस गाने ने पवन सिंह को एक झटके में भोजपुरी संगीत का सुपरस्टार बना दिया। उनकी पहचान अब सीमित नहीं रही – वे उत्तर भारत के हर घर में गूंजने लगे। बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड से लेकर नेपाल और मॉरीशस तक उनके फैन बन गए। “लॉलीपॉप लागेलू” की लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि यह गाना कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बजाया गया। YouTube पर यह अब तक का सबसे अधिक देखे जाने वाला भोजपुरी गीत बना रहा।

लेकिन पवन सिंह की सफलता सिर्फ़ एक गाने तक सीमित नहीं रही। उन्होंने एक के बाद एक सुपरहिट एल्बम दिए – “बॉस पवन सिंह”, “देवरा बड़ा सतावेला”, “छलकत हमरो जवनिया” , और “दिल ले गइल” जैसे गानों ने भोजपुरी संगीत का चेहरा ही बदल दिया। लोगों ने महसूस किया कि पवन सिंह की आवाज़ सिर्फ़ मनोरंजन नहीं करती, बल्कि भोजपुरी समाज की आत्मा को छूती है। उनके गानों में प्यार भी था, दर्द भी, देसी मस्ती भी और गाँव की खुशबू भी। यही वजह थी कि लोग उन्हें सिर्फ़ गायक नहीं, बल्कि भोजपुरी संस्कृति का चेहरा मानने लगे।

फिल्मों में प्रवेश – जब गायक बना सुपरस्टार अभिनेता

भोजपुरी संगीत की दुनिया में अपने गानों से तहलका मचाने के बाद, पवन सिंह के सामने अब एक नया रास्ता खुल चुका था – फिल्मों की दुनिया। उनकी लोकप्रियता इतनी बढ़ चुकी थी कि म्यूज़िक एल्बमों के प्रोड्यूसर और फिल्ममेकर्स उन्हें परदे पर देखने लगे थे। भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री उस समय नए चेहरों की तलाश में थी, जो दर्शकों को भावनाओं और मनोरंजन दोनों से जोड़ सके। और पवन सिंह में दोनों गुण थे – आवाज़ की ताक़त और चेहरे की सादगी।

साल 2007 में पवन सिंह ने फिल्म “रंगीला बाबू” से अपने अभिनय करियर की शुरुआत की। यह उनकी पहली बड़ी फिल्म थी, और उन्होंने इसमें अपनी नैचुरल एक्टिंग से सबका दिल जीत लिया। फिल्म ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया और पवन सिंह को नए दर्शकों तक पहुँचा दिया। लेकिन असली धमाका हुआ जब उन्होंने “देवरा बड़ा सतावेला” में काम किया। इस फिल्म ने भोजपुरी बॉक्स ऑफिस पर झंडे गाड़ दिए और पवन सिंह को “भोजपुरी सिनेमा का एक्शन हीरो” बना दिया। उनकी संवाद अदायगी, देसी बॉडी लैंग्वेज और भावनात्मक अभिनय ने दर्शकों को बांध लिया।

पवन सिंह अब सिर्फ़ एक गायक नहीं रहे, वे एक पूर्ण अभिनेता बन चुके थे। उनकी हर फिल्म में दर्शकों को वही अपनापन महसूस होता जो उनके गानों में था। इसके बाद उन्होंने लगातार सुपरहिट फिल्में दीं- “प्रतीज्ञा”, “सत्या”, “राजाजानी”, “गदर”, “लोहा पहलवान”, “गोलूवा के बेटा”, “वांटेड”, “मेन बदला लइहब”, “सरकार राज” और “मैंने उनको सजन चुन लिया” जैसी फिल्मों ने भोजपुरी सिनेमा में नया युग शुरू किया।

उनकी फिल्मों की सबसे बड़ी ताक़त थी – उनकी देसी बोली और भावनात्मक जुड़ाव।पवन सिंह जब स्क्रीन पर गाँव के लड़के, प्रेमी या संघर्षशील नौजवान का किरदार निभाते, तो दर्शकों को लगता जैसे वे उनके ही जीवन की कहानी देख रहे हों।उनकी लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि सिनेमाघरों में उनके पोस्टर लगने का मतलब होता था – हाउसफुल शो। उनके डायलॉग्स, स्टाइल और गाने लोगों की ज़ुबान पर चढ़ गए।

लोग कहते -“पवन सिंह के बिना भोजपुरी सिनेमा अधूरा है।” वे धीरे-धीरे उस मुकाम पर पहुँच गए जहाँ उनका नाम ही फिल्म की सफलता की गारंटी था। उनकी हर फिल्म का म्यूज़िक सुपरहिट होता, और हर किरदार में दर्शक उन्हें अपना हीरो मान लेते। भोजपुरी सिनेमा के दर्शकों ने पहली बार महसूस किया कि एक कलाकार गायक भी हो सकता है और एक्शन हीरो भी। और यही दोहरी ताक़त पवन सिंह को बाकी अभिनेताओं से अलग करती है।

लोकप्रियता की ऊँचाइयाँ – जब पवन सिंह बने भोजपुरी सिनेमा का ब्रांड

भोजपुरी सिनेमा में ऐसे बहुत कम कलाकार हुए हैं जिनकी लोकप्रियता सीमाओं को पार कर जाए। पवन सिंह उनमें से एक हैं। उन्होंने सिर्फ़ गाने और फिल्मों से नाम नहीं कमाया – उन्होंने भोजपुरी सिनेमा की पहचान बना दी।2008 से लेकर 2015 तक का दौर पवन सिंह के करियर का “गोल्डन पीरियड” माना जाता है। इस दौरान उन्होंने एक के बाद एक सुपरहिट फिल्में दीं। “देवरा बड़ा सतावेला”, “गदर”, “सत्या”, “वांटेड”, “लोहा पहलवान” और “राजा” जैसी फिल्मों ने उन्हें भोजपुरी सिनेमा का सबसे भरोसेमंद चेहरा बना दिया।

उनकी फिल्मों की टिकटें रिलीज़ से पहले ही बिक जाया करती थीं। गाँव-कस्बों के सिनेमा हॉल से लेकर बड़े शहरों के मल्टीप्लेक्स तक, लोग उनकी फिल्में देखने उमड़ पड़ते थे। उनके शो के बाहर भीड़ इस बात की गवाह थी कि भोजपुरी सिनेमा अब किसी भी बड़े फिल्म उद्योग से कम नहीं। लेकिन पवन सिंह की लोकप्रियता सिर्फ़ पर्दे तक सीमित नहीं थी। उनका फैनबेस ग्रामीण भारत से लेकर गल्फ़ देशों तक फैला हुआ था। दुबई, कतर, मॉरीशस, नेपाल और फिजी जैसे देशों में रहने वाले भारतीयों के बीच पवन सिंह का क्रेज़ वैसा ही था जैसा बॉलीवुड में सलमान खान या अक्षय कुमार का होता है।

उनकी फिल्मों के डायलॉग्स युवाओं की ज़ुबान पर चढ़ गए। उनकी स्टाइल भोजपुरी सिनेमा के फैशन ट्रेंड बन गई। लोग उनके बालों की स्टाइल, बोलचाल और पहनावे की नकल करने लगे। पवन सिंह अब सिर्फ़ एक अभिनेता नहीं, बल्कि ब्रांड बन चुके थे। भोजपुरी संगीत में भी वे लगातार छाए रहे। उनके हर साल दर्जनों एल्बम रिलीज़ होते रहे – “हमरा बानी प्रेम रोगी”, “डोलिया में डोला सजन”, “नथुनिया से तोहरा ललिप लग जाई” जैसे गाने आज भी भोजपुरी विवाह और त्योहारों में गूंजते हैं। YouTube पर उनके गानों ने रिकॉर्ड तोड़ व्यूज़ बटोरे। उनकी आवाज़ ने भोजपुरी गीतों को नया जीवन दिया। “लॉलीपॉप लागेलू” की तरह कई और गाने भी भोजपुरी संगीत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले गए।

उनकी लोकप्रियता इतनी थी कि 2016 में वे भोजपुरी सिनेमा के सबसे अधिक फीस लेने वाले अभिनेता बन गए। उनकी एक फिल्म की फीस लाखों से बढ़कर करोड़ों तक पहुँच गई। लेकिन पवन सिंह का स्टारडम सिर्फ़ उनकी सफलता से नहीं बना – यह बना उनके संघर्ष, आत्मविश्वास और जनता से जुड़ाव से। वे हर इंटरव्यू में कहते हैं – “मैंने कभी खुद को स्टार नहीं समझा। मैं बस वही पवन सिंह हूँ, जो आरा की मिट्टी में पला-बढ़ा।” उनकी यह विनम्रता और सादगी ही है, जिसने दर्शकों को उनसे भावनात्मक रूप से जोड़े रखा।

विवाद, आलोचना और साहस – जब स्टारडम के साथ आई जिम्मेदारी

हर सफलता की कहानी के पीछे कुछ कठिन अध्याय भी होते हैं। पवन सिंह की यात्रा भी इससे अछूती नहीं रही। एक ओर जहाँ वे भोजपुरी सिनेमा के सबसे बड़े स्टार बन चुके थे, वहीं दूसरी ओर विवादों और आलोचनाओं ने भी उनका पीछा किया।भोजपुरी इंडस्ट्री में जिस वक्त पवन सिंह का दबदबा था, उसी समय कुछ लोग उनके बढ़ते प्रभाव से असहज होने लगे।फिल्मों में लगातार हिट होने और रिकॉर्ड तोड़ लोकप्रियता पाने के बाद, उन्हें इंडस्ट्री के “सुपरस्टार” के रूप में देखा जाने लगा।लेकिन शोहरत के साथ-साथ अफवाहें, झूठे आरोप और व्यक्तिगत विवाद भी उनके साथ जुड़ने लगे।

सबसे पहले चर्चा में आया उनका निजी जीवन।उनकी पहली पत्नी नीलम सिंह की अचानक मृत्यु ने पूरे देश को झकझोर दिया।यह घटना 2015 की थी, जब पवन सिंह ने खुद को दुनिया से लगभग अलग कर लिया था। मीडिया में इस घटना को लेकर कई अटकलें लगाई गईं, कई सवाल उठाए गए, लेकिन उन्होंने हर बात का जवाब संयम और शांति से दिया। उन्होंने कहा था – “जिंदगी कभी आसान नहीं रही, पर मैं टूटकर भी खड़ा रहना जानता हूँ।”

यह वक्त उनके लिए बेहद कठिन था। उनकी निजी ज़िंदगी के इस दर्दनाक मोड़ ने उन्हें भीतर से हिला दिया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। धीरे-धीरे उन्होंने खुद को फिर से संभाला और अपने काम में लौट आए। फिल्मी करियर में भी विवादों की कमी नहीं रही। कभी उनके गानों के बोलों को लेकर आलोचना हुई, कभी फिल्मों की हिंसक विषयवस्तु पर सवाल उठे। कई बार सोशल मीडिया पर ट्रोल भी किया गया। लेकिन पवन सिंह ने कभी जवाब देने के बजाय अपनी कला से जवाब दिया।

उनका मानना है कि “कलाकार का जवाब उसका काम होता है।” उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था – “लोग मुझे जितना गिराने की कोशिश करते हैं, मैं उतना ही मेहनत से उठता हूँ।” पवन सिंह के कुछ विवाद उनके को-स्टार्स से भी जुड़े। उनका नाम कई बार राजनीति से लेकर इंडस्ट्री की गुटबाज़ी तक में घसीटा गया। लेकिन दर्शकों का प्यार कभी कम नहीं हुआ। उनके फैंस हर बार उनके साथ खड़े रहे और यही उनके आत्मविश्वास की असली ताकत बनी।

आज भी पवन सिंह अपनी स्पष्टवादिता और ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं। वे किसी भी मंच पर बिना लाग-लपेट के अपनी बात रखते हैं। उनका कहना है – “अगर मैं भोजपुरी की सेवा कर रहा हूँ, तो मुझे किसी से डरने की जरूरत नहीं।” यही उनका साहस है — यही उनका स्टारडम। उन्होंने साबित किया कि सफलता सिर्फ़ चमक नहीं, बल्कि साहस से हर अंधेरे का सामना करने की क्षमता है।

परिवार, रिश्ते और पवन सिंह का निजी जीवन

सफलता की ऊँचाइयाँ अक्सर इंसान को अकेला कर देती हैं।चमकदार दुनिया के पीछे छिपे भावनात्मक संघर्ष को बहुत कम लोग समझ पाते हैं।भोजपुरी सिनेमा के सुपरस्टार पवन सिंह की ज़िंदगी भी ऐसी ही कहानी है – जहाँ शोहरत, संघर्ष और निजी रिश्तों का गहरा संगम है।पवन सिंह भले ही आज करोड़ों दिलों के हीरो हैं, लेकिन अंदर से वे अब भी वही आरा का देसी लड़का हैं – जो अपनी मिट्टी, अपनी माँ और अपने रिश्तों से गहराई से जुड़ा है। उनका परिवार शुरू से ही संगीत और भक्ति परंपरा से जुड़ा रहा।

पवन कहते हैं -“मेरे पिता का आशीर्वाद, माँ की दुआ और परिवार की प्रेरणा ही मेरी असली पूँजी है।” उनकी माँ हेमलता देवी ने उनके जीवन में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जब भी वे किसी कठिन दौर से गुज़रे, माँ ने ही उन्हें मानसिक सहारा दिया। उन्होंने हमेशा पवन को यह सिखाया – “बेटा, अगर तुम्हारे पास प्रतिभा है, तो दुनिया एक दिन तुम्हारे पैरों में होगी।”

पवन सिंह के जीवन का सबसे दर्दनाक दौर वह था जब उनकी पहली पत्नी नीलम सिंह ने 2015 में आत्महत्या कर ली।इस हादसे ने उन्हें भीतर तक तोड़ दिया।वे महीनों तक खुद को सार्वजनिक जीवन से दूर रखे रहे। मीडिया ने कई अटकलें लगाईं, लेकिन पवन ने कभी किसी पर उंगली नहीं उठाई। उन्होंने कहा -“कुछ घाव ऐसे होते हैं जो वक्त नहीं भरता, बस इंसान उन्हें जीना सीख जाता है।” कई सालों बाद, उन्होंने खुद को फिर से संभाला और 2018 में ज्योति सिंह से विवाह किया। उनका यह रिश्ता परिवार और माँ की इच्छा से तय हुआ।

अपने रिश्तों में पवन सिंह हमेशा भावनात्मक रहे हैं। वे अपने परिवार को अपनी सबसे बड़ी ताकत मानते हैं। उनकी बहनें और रिश्तेदार आज भी आरा में रहते हैं, और पवन समय मिलने पर अक्सर गाँव जाते हैं। गाँव में वे बिल्कुल साधारण आदमी की तरह रहते हैं – बिना किसी सुरक्षा के, बिना किसी तामझाम के। वे मंदिरों में दर्शन करने जाते हैं, पुराने दोस्तों से मिलते हैं, और कभी-कभी खेतों की मिट्टी में बैठ जाते हैं। यही “गाँव का लड़का” ही असली पवन सिंह है – जो अपने स्टारडम से ज़्यादा, अपनी जड़ों पर गर्व करता है।

उनकी यह भावनात्मक सादगी ही उन्हें दूसरों से अलग बनाती है। उनके लिए रिश्ते “प्रदर्शन” नहीं, बल्कि “समर्पण” हैं। और शायद इसी कारण उनके फैंस उन्हें सिर्फ़ भोजपुरी सिनेमा का हीरो नहीं, बल्कि दिलों का इंसान मानते हैं।

भोजपुरी सिनेमा में योगदान – बदलाव की धारा के वाहक

भोजपुरी सिनेमा का इतिहास अगर लिखा जाएगा, तो उसमें पवन सिंह का नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज होगा। क्योंकि उन्होंने सिर्फ़ अभिनय और गायन नहीं किया – उन्होंने भोजपुरी फ़िल्मों को सम्मान और पहचान दिलाई। 2000 के दशक की शुरुआत में भोजपुरी इंडस्ट्री दोराहे पर थी। एक ओर पारंपरिक फिल्में बन रही थीं, जो सीमित दर्शकों तक पहुँचती थीं, दूसरी ओर कुछ हल्की-फुल्की कहानियों ने इंडस्ट्री की छवि कमजोर कर दी थी। तभी इस सिनेमा को एक ऐसे चेहरे की ज़रूरत थी, जो भोजपुरी की गरिमा और ताक़त को फिर से स्थापित कर सके। और वह चेहरा था – पवन सिंह।

उनकी एंट्री ने भोजपुरी सिनेमा में नया जोश भर दिया। उन्होंने दर्शकों को यह विश्वास दिलाया कि भोजपुरी फिल्में भी उतनी ही प्रभावशाली और लोकप्रिय हो सकती हैं जितनी हिंदी या दक्षिण भारतीय सिनेमा। पवन सिंह की फिल्मों में लोक संस्कृति, पारिवारिक मूल्य और सामाजिक संदेश की झलक साफ़ दिखती है। उन्होंने ऐसे किरदार निभाए जो गाँवों की सच्ची कहानियों से जुड़े थे – कभी बेटा, कभी प्रेमी, कभी पति, कभी किसान – हर भूमिका में वे आम आदमी की भावनाओं को परदे पर उतार लाते। उनकी फिल्म “सत्या” ने भोजपुरी सिनेमा में एक्शन का नया दौर शुरू किया।“गदर” और “वांटेड” जैसी फिल्मों ने दर्शकों को यह एहसास कराया कि भोजपुरी सिनेमा में तकनीकी और अभिनय स्तर दोनों तेजी से आगे बढ़ सकते हैं।

लेकिन पवन सिंह का असली योगदान सिर्फ़ बॉक्स ऑफिस पर नहीं है।उन्होंने भोजपुरी सिनेमा की भाषा और संगीत को पूरे देश में फैलाया।उनके गाने शादी-ब्याह, तीज-त्योहार और पार्टी का हिस्सा बन गए। आज “लॉलीपॉप लागेलू” दुनिया भर में भोजपुरी पहचान का प्रतीक है। वे अपने हर गाने में भोजपुरी संस्कृति की आत्मा को ज़िंदा रखते हैं। उनके गाने सिर्फ़ मनोरंजन नहीं, बल्कि उस मिट्टी की आवाज़ हैं जहाँ से वे निकले। पवन सिंह ने इंडस्ट्री में नए कलाकारों को भी मौका दिया। वे अपने सहयोगियों का सम्मान करते हैं और अक्सर कहते हैं -“भोजपुरी इंडस्ट्री हम सबकी है, यहाँ कोई छोटा या बड़ा नहीं।” उनकी इस सोच ने उन्हें सिर्फ़ अभिनेता नहीं, बल्कि भोजपुरी सिनेमा के नेता के रूप में स्थापित किया।

उनका योगदान इतना व्यापक है कि आज भोजपुरी सिनेमा की कोई भी सफलता की कहानी पवन सिंह के बिना अधूरी है। उन्होंने यह साबित किया कि अगर जुनून सच्चा हो, तो भाषा कोई बाधा नहीं होती। भोजपुरी बोलने में गर्व महसूस कराने का श्रेय भी काफी हद तक उन्हीं को जाता है। आज जब भारत के कोने-कोने में कोई बच्चा “लॉलीपॉप लागेलू” पर नाचता है, या कोई बुजुर्ग “हमरा बानी प्रेम रोगी” गुनगुनाता है, तो वहाँ सिर्फ़ गाना नहीं चलता – वहाँ भोजपुरी की आत्मा गूँजती है।

राजनीति और सामाजिक जुड़ाव – जनसेवा की राह पर कलाकार

हर बड़ा कलाकार अपने समाज से कुछ न कुछ लौटाना चाहता है। पवन सिंह भी ऐसे ही कलाकार हैं जिन्होंने अपनी शोहरत का इस्तेमाल सिर्फ़ नाम और पैसा कमाने के लिए नहीं किया, बल्कि समाज को कुछ देने की भावना से किया। भोजपुरी सिनेमा के सबसे बड़े चेहरों में से एक होने के बावजूद उन्होंने कभी खुद को “सिर्फ़ अभिनेता” नहीं माना। उनकी सोच हमेशा से यह रही है कि कलाकार सिर्फ़ परदे का नहीं, बल्कि समाज का भी हिस्सा होता है।

पवन सिंह अक्सर अपने इंटरव्यूज़ में कहते हैं – “अगर मेरी आवाज़ और पहचान लोगों के काम आ सके, तो वही मेरी सबसे बड़ी कमाई है।” वे कई सामाजिक अभियानों से जुड़े रहे हैं। गरीबों की मदद, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में उन्होंने कई संगठनों के साथ मिलकर काम किया है। बाढ़ और आपदा के समय वे लगातार राहत कार्यों में योगदान देते हैं। 2020 की कोरोना महामारी के दौरान उन्होंने न सिर्फ़ आर्थिक मदद दी, बल्कि अपने सोशल मीडिया के ज़रिए लोगों को जागरूक किया।

उन्होंने कहा था – “भोजपुरी जनता मेरा परिवार है। इस मुश्किल घड़ी में एक-दूसरे का साथ ही असली ताक़त है।”उनकी लोकप्रियता इतनी गहरी है कि जब भी वे किसी सामाजिक या राजनीतिक मुद्दे पर बोलते हैं, तो वह आवाज़ सीधे जनता तक पहुँचती है। उन्होंने कई मौकों पर भोजपुरी भाषा, कलाकारों और उत्तर भारतीयों के सम्मान के लिए अपनी बात खुलकर रखी। दिल्ली, मुंबई और यूपी-बिहार में भोजपुरी भाषा और कलाकारों के सम्मान की बात उन्होंने कई मंचों से कही। वे भोजपुरी गौरव के सबसे मजबूत चेहरों में से एक बन गए हैं। जब भी किसी ने भोजपुरी सिनेमा या कलाकारों को लेकर सवाल उठाया, पवन सिंह ने डटकर जवाब दिया।

उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था – “भोजपुरी कोई गरीब की भाषा नहीं है, यह भारत की आत्मा है। अगर मैं इस मिट्टी से निकला हूँ, तो इस मिट्टी की इज्ज़त मेरा धर्म है।”उनका यह रुख दर्शाता है कि वे सिर्फ़ सिनेमा के नहीं, बल्कि समाज के भी नायक हैं। वह अक्सर अपने गाँव और ज़िले के युवाओं को प्रेरित करते हैं कि मेहनत और ईमानदारी से काम करें। वे कहते हैं – “मैं आरा की गलियों से यहाँ तक पहुँचा हूँ, तो कोई भी पहुँच सकता है। बस हिम्मत मत हारो।” यही भाव उन्हें एक जनप्रिय चेहरा बनाता है।

पवन सिंह की विरासत – आवाज़ जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी

हर युग में कुछ कलाकार ऐसे होते हैं जो अपने समय से आगे निकल जाते हैं। जो केवल मनोरंजन नहीं करते, बल्कि अपनी कला से समाज, संस्कृति और भाषा की पहचान बन जाते हैं। भोजपुरी सिनेमा के लिए पवन सिंह वही नाम हैं। उन्होंने न सिर्फ़ सिनेमा और संगीत को नई ऊँचाई दी, बल्कि भोजपुरी को सम्मान और गरिमा का स्थान दिलाया। जहाँ पहले भोजपुरी गाने सिर्फ़ सीमित क्षेत्रों तक सुने जाते थे, वहीं पवन सिंह की आवाज़ ने उन्हें वैश्विक मंचों तक पहुँचाया। उनका गीत “लॉलीपॉप लागेलू” अब किसी गाने से ज़्यादा एक प्रतीक बन चुका है – एक ऐसी पहचान, जो यह साबित करती है कि भाषा चाहे क्षेत्रीय हो, पर कला हमेशा वैश्विक होती है।

उनकी फिल्मों ने भोजपुरी समाज के भावनात्मक और सांस्कृतिक जीवन को जीवंत किया।उन्होंने ग्रामीण भारत के संघर्षों, पारिवारिक रिश्तों और मानवीय संवेदनाओं को बड़े पर्दे पर उस ईमानदारी से दिखाया, जैसा शायद किसी और ने नहीं किया। उनकी कहानी हर उस नौजवान के लिए प्रेरणा है जो छोटे कस्बे या गाँव से बड़े सपने लेकर निकलता है। वे यह सिखाते हैं कि- “अगर आपके भीतर जुनून है, तो कोई शहर, कोई सिस्टम, कोई मुश्किल आपको रोक नहीं सकती।”

पवन सिंह अब सिर्फ़ एक अभिनेता नहीं, बल्कि भोजपुरी गौरव के प्रतीक हैं। उनकी आवाज़, उनका अंदाज़ और उनका व्यक्तित्व आने वाले कलाकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। सिनेमा में उनका योगदान केवल फिल्मों तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने यह साबित किया कि भोजपुरी सिनेमा भी मूल्य, कला और भावना में किसी से कम नहीं। उनकी लोकप्रियता अब सीमा पार कर चुकी है – नेपाल, मॉरीशस, सूरीनाम, फिजी और कैरेबियन देशों में रहने वाले भोजपुरी मूल के लोग पवन सिंह को “अपना बेटा” मानते हैं।

यह केवल एक स्टारडम नहीं – यह एक सांस्कृतिक आंदोलन है, जो यह कहता है कि भोजपुरी बोलना, सुनना और उस पर गर्व करना कोई शर्म नहीं, बल्कि सम्मान है। पवन सिंह की विरासत आने वाली पीढ़ियों को यही सिखाएगी कि – प्रतिभा, मेहनत और सादगी – यही सफलता का असली रास्ता हैं। वह आज भी कहते हैं – “मैं कलाकार नहीं, जनता का बेटा हूँ। जिस दिन लोग मुझे भूल जाएंगे, मैं फिर भी अपने गाँव लौट जाऊँगा -वहीं मेरी असली पहचान है।” और शायद यही सादगी, यही सच और यही जुड़ाव पवन सिंह को भोजपुरी सिनेमा का सबसे बड़ा सुपरस्टार और सबसे बड़ा इंसान बनाता है।

पवन सिंह की कहानी एक साधारण इंसान की असाधारण यात्रा है – जहाँ मिट्टी की खुशबू, माँ की दुआ, संघर्ष की धूप और मेहनत की रौशनी सब शामिल हैं। उनकी आवाज़ सिर्फ़ कानों में नहीं, बल्कि करोड़ों दिलों में गूंजती है – और आने वाले दशकों तक गूंजती रहेगी।

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