
महाशिवरात्रि: पूर्व संध्या पर शिवभक्त पंचक्रोशी परिक्रमा पर निकले
पांच पड़ावों में विभाजित 85 किमी की दूरी शिवभक्त नंगे पांव 10 से 20 घंटे में तय करते है
वाराणसी । काशी पुराधिपति बाबा विश्वनाथ जितने अड़भंगी हैं, उतने उनके भक्त भी। बाबा की तरह मस्त मिजाज और औघड़ भक्त उनके प्रति अनुराग जताने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देते। उस पर अगर अवसर शिव-शक्ति के मिलन का महापर्व महाशिवरात्रि है तो हर भक्त बाराती बनने के लिए लालायित होता है। आस्था और उमंग शिवभक्त के पोर-पोर से झलकने लगती है, चाहे इसके लिए उसे कितनी भी कठिन परीक्षा क्यों न देनी पड़े। परम्परानुसार महाशिवरात्रि के पूर्व संध्या सोमवार शाम से पंचक्रोशी परिक्रमा करने के लिए युवाओं का हुजूम अनादि तीर्थ मणिकर्णिका घाट पर उमड़ने लगा है। यहां स्थित चक्रपुष्कर्णी कुंड और पवित्र गंगा में स्नान कर हजारों युवाओं का हुजूम संकल्प लेने के साथ ही पंचक्रोशी यात्रा पर निकल पड़े हैं। युवा मणिकर्णिका घाट से संकल्प लेकर भक्ति की डगर पर नंगे पांव चल रहे है। पथरीले सड़कों पर गड्ढे जैसी तमाम दुश्वारियों पर ‘हर-हर महादेव शिव शम्भो, काशी विश्वनाथ गंगे’ का उद्घोष भारी पड़ रहा है।
कर्दमेश्वर महादेव, भीमचंडी, रामेश्वर, शिवपुर, कपिलधारा, आदिकेशव होते 85 किलोमीटर की यात्रा नंगे पांव शिवभक्त 8 से 10 घंटे या 12 से 20 घंटे में पूरी करते हैं। यात्रा का समापन महाशिवरात्रि पर मंगलवार को मणिकर्णिकाघाट पर संकल्प छुड़ाकर होगा। इस सम्बन्ध में पौराणिक मान्यता है कि कभी अपने नेत्रहीन माता-पिता को कंधे पर लेकर तीर्थ कराने जा रहे बालक श्रवण की जान राजा दशरथ के शब्दभेदी बाण से चली गई थी। त्रेता में अपने पिता को दोषमुक्त कराने के लिए भगवान राम ने काशी में यह परिक्रमा की थी। तब वे जिन पांच पड़ावों से होकर गुजरे थे, वे बाद में तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध हो गए। इन पड़ावों में भीमचंडी, कर्दमेश्वर, रामेश्वरम, कपिलधारा और आदिकेशव के नाम शामिल हैं। शिवाराधना समिति के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. मृदुल मिश्र बताते हैं कि पंचक्रोशी यात्रा के एक दिन पहले यात्री या तो व्रत रखते हैं अथवा अल्पाहार कर ढुंडिराज का पूजन-अर्चन करते हैं। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर परिक्षेत्र में स्थित मंदिर में सुरक्षा कारणों से रोक-टोक के चलते शिवभक्त मणिकर्णिका घाट पर ही गंगा स्नानकर मौन संकल्प लेकर पन्चाक्षरी महामंत्र यानी ‘हर-हर महादेव शम्भो, काशी विश्वनाथ गंगे’ को मन में जप यात्रा की सफलता की कामना महादेव से करते हैं।
उन्होंने बताया कि करीब 80 किमी लंबे पंचक्रोशी परिक्रमा पथ पर 108 तीर्थों के होने का जिक्र स्कंद पुराण में है। परिक्रमा मार्ग पर शोध करने वाले दंडी संन्यासी शिवानंद सरस्वती महाराज ने भी इन तीर्थों का जिक्र किया है। डॉ. मिश्र बताते है कि यात्रा का पहला पड़ाव कर्दमेश्वर महादेव चितईपुर कन्दवा में स्थित है। यह मंदिर लगभग एक हजार वर्ष से अधिक प्राचीन है। यात्री यहां पहुंचकर मंदिर से सटे हुए कर्दम कूप का दर्शन करते हैं। इस कूप से सटा हुआ ही शंकर जी के मंदिर में सोमनाथेश्वर हैं। यात्री इनका भी दर्शन-पूजन करते हैं। इनके दर्शन का भी बड़ा माहात्म्य है। कर्दम कूप से दक्षिण की ओर सटा हुआ विरूपाक्षण है। इनका दर्शन भी यात्री करते हैं। इसी मंदिर के उत्तर दिशा में नीलकण्ठेश्वर का मंदिर है यात्री इनका आशीर्वाद भी लेते हैं। इनके दर्शन के उपरान्त यात्री कर्दमेश्वर महादेव के दरबार में हाजिरी लगाते हैं। दूसरा पड़ाव भीमचंडी है।
पंचक्रोशी यात्री भीमचण्डी विनायक के मंदिर में जाकर दर्शन-पूजन करते हैं। इसी मन्दिर से सटा हुआ गन्धर्व का मंदिर है। यहां भी यात्री पहुंचकर दर्शन-पूजन करते हैं। इसके आगे बढ़ने पर भीमचण्डेश्वर का मंदिर है। यात्रा क्रम में यात्री इनका दर्शन-पूजन भी करते है। इस मंदिर के दक्षिण तरफ भीमचण्डी देवी का मंदिर है। पंचक्रोशी यात्रा के दौरान इनके दर्शन-पूजन का भी विधान है। डॉ. मिश्र ने बताया कि यात्रा का तीसरा पड़ाव रामेश्वर है। रामेश्वर मंदिर में भी दर्शन-पूजन के बाद चौथा पड़ाव शिवपुर, कपिलधारा के बाद अन्तिम पड़ाव वरुणा, गंगा संगमतीर्थ आदिकेशव है। यहीं पर स्थित है आदिकेशव का विशाल मंदिर । मंदिर में स्थित शिव जी को ही केशवेश्वर कहा जाता है। इसी के पास संगमेश्वर के ऊपर आदि केशव विष्णु जी की प्रतिमा है। यात्री इनका दर्शन-पूजन कर आशीर्वाद लेते हैं। मान्यता है कि इनके दर्शन से समस्त प्रकार के दुःख, दरिद्रता, रोग दूर हो जाते हैं और सुख समृद्धि का उदय होता है। आदि केशव से नाव से यात्री मणिकर्णिका घाट पहुंचते हैं और संकल्प छुड़ा बाबा दरबार में हाजिरी लगाते हैं।(हि.स.)