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बिहार में डराने लगा अब कोरोना

अधिकांश मंत्री,अधिकारी और नेता आइसोलेट,सरकार की लापरवाही उजागर

अजीत मिश्र

पटना।लगता है बिहार में नीतीश सरकार कोरोना महामारी के सामने सरेंडर कर चुकी है।बड़े स्तर पर राज्य सरकार के राजपत्रित अधिकारी कोरोना पोजेटिव हो रहे हैं।सरकार के परिजन समेत मंत्री,सचिवालय कर्मी सहित पक्ष विपक्ष के नेता भी लगातार पोजेटिव हो रहे हैं।अभी जिस स्तर पर कोरोना की टेस्टिंग होनी थी सब वीआईपी लोगों के टेस्टिंग में अधिकांश किट खप जा रही है।इसके अलावा राज्य में सम्पूर्ण लॉक डाउन के बावजूद कड़ाई से आदेश का अनुपालन नहीं हो पा रहा है।लफन्दर और गैर जिम्मेदार तत्व अभी भी बिना मास्क के कुत्ते की तरह सड़क पर कोरोना के वाहक बनकर मुँह उठाये चारो ओर घूम रहे हैं।कुल मिलकर यही कहना सही है बिहार में जिसका डर था वही हुआ है।खुद बिहार की राजधानी पटना में हीं कोरोना की स्थिति नियंत्रण से बाहर होती दिख रही है।अब तो लगता है कि महामारी के समक्ष नीतीश सरकार ने अपनी हार मान ली है।कह सकते हैं कि बिहार में जिसका डर था वही हुआ।पूरे राज्य की कौन कहे खुद राजधानी पटना में हीं कोरोना की स्थिति नियंत्रण से बाहर होता दिख रहा है।इसका कारण यह भी है कि सरकार की सभी मशीनरियां एक-एक करके हाथ खड़े करते जा रहे हैं।

राज्य सरकार के बड़े हॉस्पिटल पीएमसीएच,एनएमसीएच और आरएमआरआई का लैब भी अब संक्रमित हो गया है जिसकी वजह से फिलहाल कई दिनों तक कोरोना का टेस्ट संभव नहीं होगा।वहीं दूसरी ओर केंद्रीय हॉस्पिटल एम्स बिना टेस्ट रिपोर्ट के भर्ती लेने को तैयार हीं नहीं है। दो दिनों के टेस्ट रिपोर्ट का मूल्यांकन करें तो पटना में सौ में 20 से 30 व्यक्ति प्रतिदिन कोरोना पांजिटिव मिलते रहे हैं।अब तो हालत यह हो गयी है कि राजधानी के हर मुहल्ले में कोविद19 दस्तक दे चुका है। जितने लोगों का अस्पताल में इलाज चल रहा है उससे 10 गुना लोग घर में खुद आइसोलेट होकर खुद ठीक होने का इंतजार कर रहै हैं।राज्य के लिये सबसे चिंताजनक बात यह है कि एम्स और एनएमसीएच जैसे हॉस्पिटल भी अब गम्भीर पोजेटिव रोगियों के ईलाज में अब हाथ खड़ा कर चुके हैं।बताते हैं कि आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स)जहां राज्यस्तरीय अस्पतालों की अपेक्षा बेहतर इलाज की व्यवस्था है वहां बिहार सरकार के दो-दो मंत्री सहित भाजपा के कई विधायक ,नेता और ब्यूरोक्रेट भर्ती किये गये हैं।इससे भी हो सकता है कि वीआईपी को छोड़कर बहुत कम समान्य मरीज़ों का एम्स में अब इलाज चल रहा है।राजधानी कई जगह बनाये गये आइसोलेशन सेंटर पाटलिपुत्रा स्टेडियम औऱ पाटलिपुत्रा अशोक होटल में भी अब एक बेड भी खाली नहीं रह गया है यही स्थिति अन्य आइसोलेशन सेंटरों का भी है।बिहार के जागरूक लोग मानते हैं कि बिहार में कभी भी लगा ही नहीं कि कोरोना को लेकर सरकार संवेदनशील है।

सरकार खुद इसे लेकर लापरवाह दिख रहा है।जिस समय सरकार को कोरोना महामारी के प्रति युद्धस्तर पर अभियान चलाना चाहिए,सरकार के लोग आगामी चुनाव को लेकर वीसी से अभियान चला रहे हैं।इसके कारण भी कई जगह सोशल सिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ी हैं और बड़ी संख्या में नेता भी पोजेटिव हुए हैं।अब जो हालत हैं उसमें कोरोना के कारण राज्य की जनता से ज्यादा सरकार हीं डरी हुई दिख रही है जब से कोरोना पोजेटिवों की संख्या बढ़ी है राज्य के अधिकांश सीनियर अधिकारी, मंत्री और मुख्यमंत्री सभी आइसोलेट हो गये हैं। इसका सीधा असर जिलों या प्रखंडों में काम करने वाले अधिकारियों और डॉक्टरों पर पड़ा है वहीं काम चोर अधिकारियों के लिये तो बहार के दिन आ गये हैं।

जिले के डीएम और अन्य राजपत्रित अधिकारी अपने सहित पूरे परिवार का कोरोना टेस्ट करा रहे हैं।जबकि कोरोना वाँरियर में भी अगर कोई लक्षण है तो उसका टेस्ट जिले में गठित टीम के अनुमति के बगैर नहीं करना है ऐसा ऊपर से गाइडलाइन जारी किया गया है।यही हाल राज्य के लगभग जिलों का है जहां सीनियर अधिकारी खुद डरे हुए दिख रहे हैं। आरोप तो यह भी है कि राज्य के स्वास्थ्य मंत्री पूरे कोरोना काल में एक दिन भी लोगों का हाल चाल जानने बाहर नहीं निकले हैं।सबकुछ लगभग भगवान भरोसे चल रहा है।इस परेशान करने वाली स्थिति में जानकारों का कहना कि सरकार को तत्काल कड़े कदम उठाते हुए पटना के सभी बड़े अस्पतालों और होटलों को अपने नियंत्रण में ले लेना चाहिए और जो जिस तरीके से खर्च करने को तैयार है उन्हे उस तरह कि सुविधा सरकार उपलब्ध कराये क्योंकि सिर्फ एक एम्स के सहारे पूरे बिहार को संभालना बहुत कठिन है।अभी स्थिति ऐसी है कि जिनके पास इलाज कराने के लिए पैसे नहीं हैं वह इलाज नहीं करा पा रहे हैं और कोरोना के वाहक बने फिर रहे हैं।स्वाभाविक भी है कि गरीब लोग सरकारी अस्पताल और ओइसोलेशन सेंटर के हीं भरोसे हैं और यही कारण है कि सरकार पर लगातार दबाव बढता जा रहा है।हालांकि इस बीच मुख्यमंत्री प्रति दिन बीस हजार रोजाना टेस्ट कराने का आदेश दिये हैं लेकिन अब तो यह भी नाकाफी है टेस्ट को लेकर अब सरकार को पूरी छूट देने की तत्काल जरूरत है।

राज्य के लिये सबसे खतरनाक स्थिति यह है कि प्रचार माध्यमों के लगातार जागरूक किये जाने के बावजूद अधिकांश लोग मास्क और सेनेटाइजर को लेकर लापरवाह बने हुए।सम्पूर्ण लॉक डाउन की घोषणा के बावजूद आटो चालक और दुकानदार पुलिसकर्मियों कर्मियों के साथ आंखमिचौली खेल रहे हैं।मस्जिदों,चर्चों और मंदिरों में लोग सरकार के रोक के बावजूद पहुंच रहे हैं।एक और रेखांकित करने वाली बात है कि कई जगह कोरोना पोजेटिव मिलने के बावजूद मरीज़ मूल स्थान से भाग गये हैं।स्वास्थ्य कर्मियों नगर निगम और नगर परिषदों के अधिकारियों की भी लापरवाही सुनने को मिल रही है कि जहाँ कोरोना पोजेटिव मिल रहे हैं उस स्थल की घेरेबंदी भी नहीं हो रही है।वहाँ सावधानी के कोई पोस्टर भी नहीं चिपकाया जा रहा हैं।अब सवाल उठता है कि सरकार के निकम्मेपन के कारण बिहार में कोरोना का लगभग मास स्प्रेड हो चुका है।अब यहाँ प्रतिदिन हज़ार से अधिक मरीज निकल रहे हैं।शहर,शहर और गाँव गाँव कोरोना अपने पांव पसार चुका है।मृतकों भी लगातार संख्या बढ़ती जा रही है।कोढ़ में खाज यह है कि राज्य में कहीं भी अस्पतालों में मरीजों के भर्ती की व्यवस्था नहीं दिख रही है।सरकार अधिकारी, डॉक्टर और पुलिस अपने हाथ खड़े किए हुए दिखाई दे रही है।ऐसे में केंद्र सरकार को भी दिल्ली की तरह बिहार में भी तत्काल हस्तक्षेप कर लोगों को बचाने का उपाय करना चाहिए।वरना बिहार की जनसंख्या में लाशों के अंबार दिखने में अब देर नहीं है।

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