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नेपाल : सुशीला कार्की बनीं पहली महिला अंतरिम प्रधानमंत्री

युवा आंदोलन, राजनीतिक उथल-पुथल और सत्ता परिवर्तन के बीच न्यायपालिका से आईं सत्ता के शिखर पर

काठमांडू से निकलती खबर ने पूरे नेपाल को झकझोर दिया। शुक्रवार रात शीतल निवास में एक विशेष और संक्षिप्त समारोह आयोजित हुआ, जहाँ राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने सर्वोच्च न्यायालय की पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को नेपाल की अंतरिम प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई। यह क्षण केवल सत्ता परिवर्तन का प्रतीक नहीं था, बल्कि नेपाल के लोकतांत्रिक इतिहास में एक नई इबारत लिखी गई। कार्की नेपाल की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं, और वह भी उस दौर में जब देश गहरे राजनीतिक संकट और व्यापक विरोध प्रदर्शनों से गुजर रहा है।

समारोह में उपराष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश, वरिष्ठ सरकारी अधिकारी, सुरक्षा प्रमुख और राजनयिक समुदाय के प्रतिनिधि मौजूद रहे। वातावरण गंभीर भी था और ऐतिहासिक भी। यह पदभार ऐसे समय आया है जब युवा शक्ति सड़कों पर है, भ्रष्टाचार विरोधी आवाजें बुलंद हैं और सत्ता की नींव हिल चुकी है।

युवाओं का आंदोलन और ओली सरकार का पतन

पिछले कुछ महीनों से नेपाल की सड़कों पर जिस लहर ने जन्म लिया, उसे दुनिया ने “Gen Z आंदोलन” के नाम से जाना। यह सिर्फ एक छात्र आंदोलन नहीं, बल्कि बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, परिवारवाद और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमले के खिलाफ जनाक्रोश का विस्फोट था। सरकार द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय आग में घी का काम कर गया। हजारों युवा काठमांडू से लेकर छोटे कस्बों तक सड़कों पर उतर आए। पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच टकराव हुआ, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचा, कई लोग घायल और मृत हुए। हालात इतने विकट हो गए कि तत्कालीन प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली पर दबाव असहनीय हो गया। लगातार बढ़ते विरोध और जनआक्रोश के बीच अंततः ओली ने इस्तीफा दे दिया।

सुशीला कार्की: न्यायपालिका से सत्ता के शीर्ष तक

सुशीला कार्की का जन्म सात जून 1952 को विराटनगर में हुआ था। वह सात भाई-बहनों में सबसे बड़ी हैं। कानून की शिक्षा पूरी करने के बाद 1979 में उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की। वर्ष 2007 में वरिष्ठ अधिवक्ता बनने के बाद उनका कद बढ़ता गया। कार्की जुलाई 2016 से जून 2017 तक नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रहीं। अपने कार्यकाल में उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर रुख अपनाया और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को मजबूत किया। उनके निर्णय अक्सर चर्चित रहे और उन्होंने राजनीतिक दबावों के बावजूद न्यायिक गरिमा बनाए रखी। यही छवि उन्हें आज उस मुकाम तक ले आई है जहाँ वे न्यायपालिका से निकलकर सीधे कार्यपालिका के शीर्ष पर पहुँच गईं।

शपथ ग्रहण का क्षण और महिला नेतृत्व का उदय

शीतल निवास में जब कार्की ने प्रधानमंत्री पद और गोपनीयता की शपथ ली, तो नेपाल के लोकतंत्र में नया अध्याय दर्ज हुआ। यह सिर्फ सरकार का अंतरिम नेतृत्व नहीं, बल्कि महिला नेतृत्व की ऐतिहासिक जीत थी।नेपाल की राजनीति में अब तक महिला नेतृत्व केवल प्रतीकात्मक रहा था। लेकिन कार्की की नियुक्ति ने यह साबित किया कि महिलाएँ न केवल न्यायपालिका या सामाजिक क्षेत्र में, बल्कि देश की कार्यपालिका के शिखर पर भी स्थान पा सकती हैं।

चुनौतियों का पहाड़ और जनता की उम्मीदें

कार्की का कार्यकाल आसान नहीं होगा। देश उथल-पुथल से गुजर रहा है। युवाओं का आंदोलन पूरी तरह शांत नहीं हुआ है, बेरोज़गारी और महंगाई का दबाव बना हुआ है, निवेश और पर्यटन प्रभावित हैं। अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में उनकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी चुनाव तक की राह तैयार करना है। जनता चाहती है कि निष्पक्ष, पारदर्शी और समयबद्ध चुनाव कराए जाएँ ताकि लोकतंत्र की जड़ों को मजबूती मिले। संवैधानिक बहस भी सामने है। आलोचक पूछ रहे हैं कि क्या न्यायपालिका से सीधे राजनीति में आना संविधान की भावना के अनुरूप है। हालांकि, वर्तमान संकट में यह नियुक्ति जनता के विश्वास को बहाल करने के प्रयास के रूप में देखी जा रही है।

लोकतंत्र और भविष्य की संभावनाएँ

नेपाल के लोकतांत्रिक सफर में यह बदलाव निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है। यदि सुशीला कार्की भ्रष्टाचार विरोधी नीतियों को मजबूत कर पाती हैं, जनता का विश्वास जीत लेती हैं और चुनावों को निष्पक्ष बना पाती हैं, तो यह अंतरिम कार्यकाल लंबे समय तक याद किया जाएगा। युवाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे केवल नारों से संतुष्ट नहीं होंगे। वे रोजगार, अवसर, समानता और पारदर्शिता की मांग कर रहे हैं। ऐसे में कार्की का नेतृत्व तभी सफल माना जाएगा जब वह इन आकांक्षाओं को दिशा दे सकें।

इतिहास की नई इबारत

नेपाल की राजनीति में शुक्रवार की रात ने एक नया इतिहास गढ़ा। न्यायपालिका की पूर्व मुख्य न्यायाधीश से देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने तक का सफर केवल व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए प्रेरणा है। यह परिवर्तन संदेश देता है कि लोकतंत्र में जनता की शक्ति सर्वोपरि है, कि महिलाएँ अब केवल दर्शक नहीं बल्कि नेतृत्व की धुरी हैं, और यह कि न्याय की प्रतिष्ठा राजनीति में भी नए मार्ग प्रशस्त कर सकती है। सुशीला कार्की के सामने चुनौतियाँ बड़ी हैं, लेकिन अवसर भी उतने ही बड़े हैं। यह देखना शेष है कि यह अंतरिम नेतृत्व नेपाल को स्थिरता, शांति और विकास की ओर ले जाने में कितना सफल होता है।

नेपाल में हुए विरोध प्रदर्शनों में 51 लोगों की मौत की पुष्टि: पुलिस

नेपाल में गत सोमवार से शुरु हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान मरने वालों की संख्या बढ़कर 51 हो गयी है।काठमांडू पोस्ट ने सोशल मीडिया एक्स पर यह जानकारी दी है। इसमें कहा गया है कि नेपाल पुलिस के सह-प्रवक्ता, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक रमेश थापा ने शुक्रवार को बताया कि मरने वालों में 47 नेपाली नागरिक, तीन पुलिसकर्मी, एक भारतीय नागरिक शामिल हैं। मृतकों में से 36 के शव महाराजगंज स्थित त्रिभुवन विश्वविद्यालय शिक्षण अस्पताल में रखे गये हैं। यहां इन शवों का पोस्टमार्टम हुआ था।

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