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नेहरू-इंदिरा से अलग है मोदी का दौर: नया भारत, नयी सोच, नयी गति

नेहरू-इंदिरा के युग में समाजवाद और आपातकाल बनाम मोदी के दौर में निवेश, नवाचार और पारदर्शिता

  • 11 साल में मोदी का नेतृत्व, विपक्षी चुनौतियों के बीच सुधारों की रफ़्तार बरकरार
  • 3.5% ‘हिंदू रेट ऑफ़ ग्रोथ’ से आज चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था तक का सफर
  • रक्षा, कल्याण योजनाओं और डिजिटल भारत ने बनाया नया वैश्विक भारत

नई दिल्ली : भारत की राजनीति के सतरंगी फलक में नरेन्द्र मोदी के 11 साल के नेतृत्व ने एक नयी आभा और नया रंग दिया है तथा नया भारत जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के भारत से कई मायनों में अलग है।

विश्लेषकों के अनुसार यह फ़र्क नीतियों और योजनाओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि कार्य संस्कृति, निर्णय और कार्यक्रम कार्यान्वयन की रफ़्तार में भी है। राजनीतिक विसात के मामले में जहां नेहरू और इंदिरा के समय विपक्ष की आवाज़ मद्धिम थी, वहीं मोदी के सामने एक तेज़-तर्रार विपक्ष है, जो हर क़दम पर सवाल उठाता है।विरासत की पड़ताल और पुराने – नये पृष्ठों की तुलना करने वाले इन विश्लेषकों को दिखता है कि नेहरू का भारत नये सपनों का देश था- आज़ादी की ताज़ी हवा में सांस लेता, समाजवादी नीतियों के आधार पर भविष्य के सपने देखता देश। उनकी गुटनिरपेक्ष विदेश नीति ने भारत को वैश्विक मंच पर एक नैतिक आवाज़ दी, लेकिन 1962 के चीन युद्ध ने रक्षा नीतियों की कमज़ोरी उजागर की।उस दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ़्तार धीमी थी, लगभग 3.5 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि। उसे बाद में ‘हिंदू रेट ऑफ़ ग्रोथ’ कह कर देश को बदनाम किया गया। यह शब्द भले ही विवादास्पद हो, लेकिन उस दौर की आर्थिक नीतियों की सीमाओं को दर्शाता है। उस समय निजी उद्यमिता को बढ़ाया नहीं गया, सरकारी नियंत्रण हावी रहा। विपक्ष नाममात्र का था। कम्युनिस्ट और सोशलिस्ट दल क्षेत्रीय स्तर पर सिमटे थे, जिससे नीतिगत ख़ामियों पर सवाल कम उठे।

नेहरू के दौर के कुछ वर्ष बाद देश का नेतृत्व संभालने वाली इंदिरा गांधी ने 1971 के बंगलादेश युद्ध से भारत की सैन्य ताक़त दिखायी, लेकिन उनकी सरकार द्वारा लगाये गये आपातकाल (1975-77) ने भारतीय लोकतंत्र पर स्याही छिड़क दी। उस समय ‘गरीबी हटाओ’ वाला सरकारी नारा गूंजा, मगर लाइसेंस राज और भ्रष्टाचार ने अर्थव्यवस्था को जकड़ लिया। विपक्ष इंदिरा के समय कुछ उभरा, 1977 में जनता पार्टी ने चुनौती दी, लेकिन वह क्षणिक था। नेहरू और इंदिरा के दौर में विपक्ष की कमज़ोरी ने शासन को आसान बनाया, लेकिन सुधारों की दिशा में देश पिछड़ गया।मोदी का 2014 से अब तक का दौर अलग है। इस दौरान उनकी पार्टी ने दो बार लोक सभा में स्पष्ट बहुत हासिल कर अस्थिर गठबंधन-सरकारों के लम्बे सिलसिले को तोड़ा।

साल 2024 के चुनाव में भाजपा के लिए गठबंधन की ज़रूरत बन गया। वर्तमान अठारहवीं लोक सभा के कार्यकाल में विपक्षी इंडिया गठबंधन ‘कांग्रेस, सपा, तृणमूल, द्रमुक’ने न केवल संसद में, बल्कि सड़कों पर भी तीखी बहस छेड़ रखी है। विपक्ष हर मुद्दे पर आक्रामक है और इससे लोकतंत्र जीवंत हुआ है, सरकार को जवाब देने पड़ते हैं। इन चुनौतियों के बावजूद प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने सरकार को उसकी तय राह पर बनाये रखा है, सुधारों की गति बनी हुई है तथा भारत आर्थिक और सैन्य शक्ति के रूप में उभरा है।मोदी सरकर ने आर्थिक मोर्चे पर पुराने समाजवादी आर्थिक सोच को तोड़ा है।

नेहरू युग की पंचवर्षीय योजनायें सरकारी नियंत्रण वाली अर्थव्यवस्था की प्रतीक थीं, मोदी ने, नीति आयोग नाम की संस्था के साथ सहकारी संघवाद की नयी अवधारणा पर कार्य शुरू किया, जिसका एक मुख्य तत्व निवेश और नवाचार के क्षेत्र में राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा लाना है।मोदी के नेतृत्व में लागू हुई वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली (जीएसटी), इंसॉल्वेंसी कोड और डिजिटल इंडिया से निजी क्षेत्र में उद्यमिता को नये पंख दिये हैं। भारत आज दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है। आयकर छूट 12 लाख रुपये तक बढ़ी, जो मध्यम वर्ग पर कर का भार कम करने वाली है। सम्पर्क सुविधायें बढाने पर सरकार के जोर से हवाई अड्डों की संख्या 11 साल में 74 से बढ़कर क़रीब 160 हो गयी—यह बुनियादी ढांचे की नयी उड़ान है।

वैश्विक दबावों- जैसे ट्रंप टैरिफ़ (आयात शुल्क)- के बावजूद भारत ने अपनी आर्थिक बुनियाद को मजबूत बनाये रखा है।रक्षा क्षेत्र में मोदी ने साहसिक क़दम उठाये। नेहरू के समय 1962 का युद्ध एक सबक था, इंदिरा के समय बंगलादेश युद्ध ऐतिहासिक जीत थी, मगर रक्षा आधुनिकीकरण धीमा रहा। मोदी ने स्वदेशी रक्षा उपकरणों से आत्मनिर्भरता को रफ़्तार दी। सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक, और 2025 के ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की एक नयी ताकत दिखायी।शासन में पारदर्शिता और गति मोदी सरकार की पहचान है। सरकार ने वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक 2025 से मुस्लिम समुदाय के गरीब ओर बेसहारा लोगों के लिए नयी उम्मीद जगायी है। ‘एक देश, एक चुनाव’ का प्रस्ताव चुनावी ख़र्च और अस्थिरता को कम कर सकता है। तीन नये आपराधिक क़ानून—भारतीय न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता, साक्ष्य अधिनियम-औपनिवेशिक जंजीरों को तोड़ते हुए न्याय प्रक्रिया को जन-केंद्रित करने वाला सुधार है।

आगामी जनगणना में जातिगत गणना की मंज़ूरी सामाजिक न्याय को मजबूत करने वाला कदम है।गरीब कल्याण में डीबीटी ने लाखों-करोड़ रुपये सीधे खातों में पहुंचाये गये हैं, इससे सरकार की बचत के साथ साथ पैसे का पूरा उपयोग सुनिश्चित हुआ। मुफ्त बिजली वाली पीएम सूर्य घर योजना ने एक करोड़ परिवारों को सौर ऊर्जा देने का अभियान तेजी पर है। आयुष्मान भारत से 10 करोड़ गरीब परिवारों को पांच लाख रुपये तक मुफ्त इलाज की सुविधा मिली और अब इसमें 70 वर्ष से अधिक उम्र के हर नागरिकों इसके दायरे में ला दिया गया है। मोदी ने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ ने जनता से सीधा रिश्ता जोड़ा है।तुलना तो समय का नियम है, राजनीति के कैनवास पर नेहरू, इंदिरा और मोदी की तुलना स्वाभाविक है।

हर युग अपने नायकों को गढ़ता है, और हर नायक अपने समय की चुनौतियों के साथ अपने ढंग और अपनी सोच के हिसाब से निपटता है। प्रधानमंत्री मोदी का नया भारत एक नये जनादेश की नयी गूंज है, इसमें विगत के नायकों की प्रतिष्ठा है, साथ ही नयी राह बनाने का अदम्य उत्साह है। (वार्ता)

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