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तीस लाख करोड़ रुपये के निर्यात पर मोदी ने जतायी प्रसन्नता

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश से 400 अरब डॉलर, यानी 30 लाख करोड़ रुपये के निर्यात का लक्ष्य हासिल करने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा है कि यह भारत के सामर्थ्य को दर्शाता है ।श्री मोदी ने रविवार को आकाशवाणी पर ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कहा कि पहली बार सुनने में लगता है कि ये अर्थव्यवस्था से जुड़ी बात है, लेकिन ये, अर्थव्यवस्था से भी ज्यादा, भारत के सामर्थ्य से जुड़ी बात है। एक समय में भारत से निर्यात का आँकड़ा कभी 100 अरब, कभी डेढ़-सौ अरब, कभी 200 सौ अरब तक हुआ करता था, अब आज, भारत 400 अरब डॉलर पर पहुँच गया है।

इसका एक मतलब ये कि दुनिया भर में भारत में बनी चीज़ों की मांग बढ़ रही है, दूसरा मतलब ये कि देश की सप्लाई चेन दिनों-दिन और मजबूत हो रही है और इसका एक बहुत बड़ा सन्देश भी है। देश, विराट कदम तब उठाता है जब सपनों से बड़े संकल्प होते हैं। जब संकल्पों के लिये दिन-रात ईमानदारी से प्रयास होता है, तो वो संकल्प सिद्ध भी होते है ।प्रधानमंत्री ने कहा कि देश के कोने-कोने से नए-नए उत्पाद विदेश जा रहे हैं। असम के हैलाकांडी के लेदर प्रोडक्ट हों या उस्मानाबाद के हैंडलूम उत्पाद , बीजापुर की फल-सब्जियाँ हों या चंदौली का काला चावल, सबका निर्यात बढ़ रहा है। लद्दाख की विश्व प्रसिद्ध खुबानी दुबई में भी मिलेगी और सउदी अरब में तमिलनाडु से भेजे गए केले मिलेंगे। अब सबसे बड़ी बात ये कि नए-नए उत्पाद नए-नए देशों को भेजे जा रहे हैं। जैसे हिमाचल, उत्तराखण्ड में पैदा हुए मिलेट्स (मोटे अनाज) की पहली खेप डेनमार्क को निर्यात की गयी।

आंध्र प्रदेश के कृष्णा और चित्तूर जिले के बंगनपल्ली और सुवर्णरेखा आम, दक्षिण कोरिया को निर्यात किये गए। त्रिपुरा से ताजा कटहल, हवाई रास्ते से, लंदन निर्यात किये गए और तो और पहली बार नागालैंड की राजा मिर्च को लंदन भेजा गया। इसी तरह भालिया गेहूं की पहली खेप, गुजरात से केन्या और श्रीलंका निर्यात की गयी।उन्होंने कहा कि यह सूची बहुत लम्बी है और जितनी लम्बी ये सूची है, उतनी ही बड़ी मेक इन इंडिया की ताकत है, उतना ही विराट भारत का सामर्थ्य है, और सामर्थ्य का आधार है – हमारे किसान, हमारे कारीगर, हमारे बुनकर, हमारे इंजीनियर, हमारे लघु उद्यमी, ढ़ेर सारे अलग-अलग पेशे के लोग, ये सब इसकी सच्ची ताकत हैं। इनकी मेहनत से ही 400 बिलियन डॉलर के निर्यात का लक्ष्य प्राप्त हो सका है और मुझे खुशी है कि भारत के लोगों का ये सामर्थ्य अब दुनिया के कोने-कोने में, नए बाजारों में पहुँच रहा है। जब एक-एक भारतवासी लोकल के लिए वोकल होता है, तब, लोकल को ग्लोबल होते देर नहीं लगती है।

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