मोदी ने युवाओं से मिलकर देश को विकसित बनाने का किया आह्वान
मोदी ने लोगों से गौरेया को बचाने का किया आह्वान
नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकसित भारत के निर्माण में युवाओं की भूमिका को अहम बताते हुए उनसे यहां भारत मंडपम में अगले साल जनवरी में आयोजित होने वाले ‘विकसित भारत यंग लीडर्स डायलॉग’ में भाग लेने तथा मिलकर देश का निर्माण एवं विकास करने का आह्वान किया है।श्री मोदी ने रविवार को रेडियो पर प्रसारित अपने मासिक कार्यक्रम मन की बात में कहा, “विकसित भारत के निर्माण में युवाओं का रोल बहुत बड़ा है। युवा मन जब एकजुट होकर देश की आगे की यात्रा के लिए मंथन करते हैं, चिंतन करते हैं, तो निश्चित रूप से इसके ठोस रास्ते निकलते हैं।
”उन्होंने कहा, “आप जानते हैं 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर देश ‘युवा दिवस’ मनाता है। अगले साल स्वामी विवेकानंद जी की 162वीं जयंती है | इस बार इसे बहुत खास तरीके से मनाया जाएगा | इस अवसर पर 11-12 जनवरी को दिल्ली के भारत मंडपम में युवा विचारों का महाकुंभ होने जा रहा है, और इस पहल का नाम है ‘विकसित भारत यंग लीडर्स डायलॉग’| देशभर से करोड़ों युवा इसमें भाग लेंगे | गाँव, प्रखंड, जिले, राज्य और वहाँ से निकलकर चुने हुए ऐसे दो हजार युवा भारत मंडपम में ‘विकसित भारत यंग लीडर्स डायलॉग ‘ के लिए जुटेंगे|”उन्होंने कहा कि आपको याद होगा, मैंने लाल किले की प्राचीर से ऐसे युवाओं से राजनीति में आने का आह्वान किया है, जिनके परिवार का कोई भी व्यक्ति और पूरे परिवार का राजनीति से कोई वास्ता नहीं है, ऐसे एक लाख युवाओं को, नए युवाओं को, राजनीति से जोड़ने के लिए देश में कई तरह के विशेष अभियान चलेंगे|
उन्होंने कहा, “ ‘विकसित भारत यंग लीडर्स डायलॉग ‘ भी ऐसा ही एक प्रयास है। इसमें देश और विदेश से विशेषज्ञ आएंगे | अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय हस्तियाँ भी रहेंगी| मैं भी इसमें ज्यादा-से-ज्यादा समय उपस्थित रहूँगा |”प्रधानमंत्री ने कहा कि युवाओं को सीधे हमारे सामने अपने दृष्टिकोण को रखने का अवसर मिलेगा| देश इन दृष्टिकोण को कैसे आगे लेकर जा सकता है? कैसे एक ठोस रोडमैप बन सकता है? इसका एक खाका तैयार किया जाएगा, तो आप भी तैयार हो जाइए, जो भारत के भविष्य का निर्माण करने वाले हैं, जो देश की भावी पीढ़ी हैं, उनके लिए ये बहुत बड़ा मौका आ रहा है | आइए, मिलकर देश बनाएं, देश को विकसित बनाएं ।
”श्री मोदी ने कहा कि ‘मन की बात’ में, हम अक्सर ऐसे युवाओं की चर्चा करते हैं, जो निस्वार्थ भाव से समाज के लिए काम कर रहे हैं। ऐसे कितने ही युवा हैं जो लोगों की छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान निकालने में जुटे हैं | हम अपने आस-पास देखें तो कितने ही लोग दिख जाते है, जिन्हें, किसी ना किसी तरह की मदद चाहिए,कोई जानकारी चाहिए। मुझे ये जानकर अच्छा लगा कुछ युवाओं ने समूह बनाकर इस तरह की बात को भी संबोधित किया किया है।उन्होंने बताया कि लखनऊ के रहने वाले वीरेंद्र हैं, जाे बुजुर्गों को डिजिटल जीवन प्रमाणपत्र बनवाने के काम में मदद करते हैं। आप जानते हैं कि नियमों के मुताबिक सभी पेंशनभोगियों को साल में एक बार जीवन प्रमाणपत्र जमा कराना होता है।
उन्होंने कहा कि 2014 तक इसकी प्रक्रिया यह थी कि इसे बैंकों में जाकर बुजुर्ग को खुद जमा करना पड़ता था। आप कल्पना कर सकते हैं कि इससे हमारे बुजुर्गों को कितनी असुविधा होती थी । अब ये व्यवस्था बदल चुकी है। अब डिजिटल जीवन प्रमाणपत्र देने से चीजें बहुत ही सरल हो गई हैं, बुजुर्गों को बैंक नहीं जाना पड़ता। बुजुर्गों को तकनीक की वजह से कोई दिक्कत ना आए, इसमें, वीरेंद्र जैसे युवाओं की बड़ी भूमिका है। वह अपने क्षेत्र के बुजुर्गों को इसके बारे में जागरूक करते रहते हैं। इतना ही नहीं वो बुजुर्गों को तकनीक सेवी भी बना रहे हैं। ऐसे ही प्रयासों से आज डिजिटल जीवन प्रमाणपत्र पाने वालों की संख्या 80 लाख के आँकड़े को पार कर गई है। इनमें से दो लाख से ज्यादा ऐसे बुजुर्ग हैं, जिनकी आयु 80 के भी पार हो गई है।
प्रधानमंत्री ने युवाओं को नेशनल कैडेट कोर (एनसीसी) दिवस की बताई देते हुए कहा कि आपने अपने आस-पास देखा होगा, जब भी कहीं कोई आपदा होती है, चाहे बाढ़ की स्थिति हो, कहीं भूकंप आया हो, कोई हादसा हुआ हो, वहाँ, मदद करने के लिए एनसीसी के कैंडिडेट्स जरूर मौजूद हो जाते हैं । आज देश में एनसीसी को मजबूत करने के लिए लगातार काम हो रहा है । वर्ष 2014 में करीब 14 लाख युवा एनसीसी से जुड़े थे | अब 2024 में, 20 लाख से ज्यादा युवा एनसीसी से जुड़ चुके हैं। उन्होंने कहा कि देश की सीमाओं के किनारे रहने वाले युवाओं को ज्यादा से ज्यादा एनसीसी से जोड़ने का अभियान भी लगातार जारी है ।
मोदी ने लोगों से गौरेया को बचाने का किया आह्वान
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गौरेया को रोज़मर्रा के जीवन में महत्वपूर्ण बताते हुए लोगों से इसकी वापसी के लिए प्रयास करने का आह्वान किया है।श्री मोदी ने रविवार आकाशवाणी पर अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ में कहा कि आप सभी लोगों ने बचपन में गौरेया को अपने घर की छत पर, पेड़ों पर चहकते हुए ज़रूर देखा होगा।
उन्होंने कहा, “गौरेया को तमिल और मलयालम में कुरुवी, तेलुगु में पिच्चुका और कन्नड़ा में गुब्बी के नाम से जाना जाता है। हर भाषा, संस्कृति में, गौरेया को लेकर किस्से-कहानी सुनाए जाते हैं। हमारे आसपास जैव विविधता को बनाए रखने में गौरेया का एक बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है, लेकिन, आज शहरों में बड़ी मुश्किल से गौरेया दिखती है।”उन्होंने कहा,“ बढ़ते शहरीकरण की वजह से गौरेया हमसे दूर चली गई है। आज की पीढ़ी के ऐसे बहुत से बच्चे हैं, जिन्होंने गौरेया को सिर्फ तस्वीरों या वीडियो में देखा है। ऐसे बच्चों के जीवन में इस प्यारी पक्षी की वापसी के लिए कुछ अनोखे प्रयास हो रहे हैं।
चेन्नई के कूडुगल ट्रस्ट ने गौरेया की आबादी बढ़ाने के लिए विद्यालय के बच्चों को अपने अभियान में शामिल किया है। संस्थान के लोग स्कूलों में जाकर बच्चों को बताते हैं कि गौरेया रोज़मर्रा के जीवन में कितनी महत्वपूर्ण है। ये संस्थान बच्चों को गौरेया का घोंसला बनाने की प्रशिक्षण देते है। इसके लिए संस्थान के लोगों ने बच्चों को लकड़ी का एक छोटा-सा घर बनाना सिखाया। इसमें गौरेया के रहने, खाने का इंतजाम किया। ये ऐसे घर होते हैं, जिन्हें किसी भी इमारत की बाहरी दीवार पर या पेड़ पर लगाया जा सकता है। बच्चों ने इस अभियान में उत्साह के साथ हिस्सा लिया और गौरेया के लिए बड़ी संख्या में घोंसला बनाना शुरू कर दिया । पिछले चार वर्षों में संस्था ने गौरेया के लिए ऐसे 10 हज़ार घोंसले तैयार किए हैं।
”उन्होंने कहा,“ कूडुगल ट्रस्ट की इस पहल से आसपास के इलाकों में गौरेया की आबादी बढ़नी शुरू हो गई है। आप भी अपने आसपास ऐसे प्रयास करेंगे, तो निश्चित तौर पर गौरेया फिर से हमारे जीवन का हिस्सा बन जाएगी।”प्रधानमंत्री ने कहा कि कर्नाटका के मैसुरु की एक संस्था ने बच्चों के लिए ‘अर्ली बर्ड ’ नाम का अभियान शुरू किया है। यह संस्था बच्चों को पक्षियों के बारे में बताने के लिए खास तरह की पुस्तकालय चलाती है। इतना ही नहीं, बच्चों में प्रकृति के प्रति जिम्मेदारी का भाव पैदा करने के लिए ‘प्रकृति शिक्षा किट’ तैयार किया है।
”श्री मोदी ने कहा कि इस किट में बच्चों के लिए कहानी की किताब, खेल और जिग-सॉ पहेलियाँ हैं। यह संस्था शहर के बच्चों को गांवों में लेकर जाती है और उन्हें पक्षियों के बारे में बताती है। उन्होंने कहा, “इस संस्था के प्रयासों की वजह से बच्चे पक्षियों की अनेक प्रजातियों को पहचानने लगे हैं। ‘मन की बात’ के श्रोता भी इस तरह के प्रयास से बच्चों में अपने आसपास को देखने, समझने का अलग नज़रिया विकसित कर सकते हैं।”(वार्ता)
बच्चे पुस्तकालयों से जुड़ें, नयी तकनीक सीखें, विरासत बचाएं: मोदी