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बच्चे पुस्तकालयों से जुड़ें, नयी तकनीक सीखें, विरासत बचाएं: मोदी

साफ सफाई को लेकर देशवासियों में आयी स्वदायित्व की भावना : मोदी

नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बच्चों का पुस्तकालयों से जुड़ कर नवीनता एवं रचनात्मकता की ओर बढ़ने तथा नवीन प्रौद्योगिकी के साथ साथ, हमारी विरासत एवं संस्कृति की खोज कर समाज के सामने लाने का आह्वान किया और कहा, “जो देश, जो स्थान, अपने इतिहास को संजोकर रखता है, उसका भविष्य भी सुरक्षित रहता है।”श्री मोदी ने आकाशवाणी पर अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ में बच्चों को प्रेरणा देते हुए कहा कि आजकल बच्चों की पढ़ाई को लेकर कई तरह के प्रयोग हो रहे हैं । कोशिश यही है कि हमारे बच्चों में रचनात्मकता और बढ़े, किताबों के लिए उनमें प्रेम और बढ़े – कहते भी हैं ‘किताबें’ इंसान की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं, और अब इस दोस्ती को मजबूत करने के लिए, पुस्तकालय से ज्यादा अच्छी जगह और क्या होगी।

उन्होंने कहा, “मैं चेन्नई का एक उदाहरण आपसे साझा करना चाहता हूं। यहां बच्चों के लिए एक ऐसी पुस्तकालय तैयार की गई है, जो, रचनात्मकता और सीखने का हब बन चुका है। इसे प्रकृत् अरिवगम् के नाम से जाना जाता है। इस पुस्तकालय का विचार, प्रौद्योगिकी की दुनिया से जुड़े श्रीराम गोपालन जी की देन है। विदेश में अपने काम के दौरान वे नवीन प्रौद्योगिकी की दुनिया से जुड़े रहे। लेकिन, वो, बच्चों में पढ़ने और सीखने की आदत विकसित करने के बारे में भी सोचते रहे । भारत लौटकर उन्होंने प्रकृत् अरिवगम् को तैयार किया । इसमें तीन हजार से अधिक किताबें हैं, जिन्हें पढ़ने के लिए बच्चों में होड़ लगी रहती है । किताबों के अलावा इस पुस्तकालय में होने वाली कई तरह की गतिविधियां भी बच्चों को लुभाती हैं । कहानी का सत्र हो, कला कार्यशाला हो, स्मरण प्रशिक्षण कक्षा, रोबोटिक्स कक्षा या फिर सार्वजनिक संबोधन, यहां, हर किसी के लिए कुछ-न-कुछ जरूर है, जो उन्हें पसंद आता है।

”श्री मोदी ने हैदराबाद में ‘फूड फॉर थॉट फाउंडेशन के पुस्तकालयों का उल्लेख करते हुए कहा कि इन शानदार पुस्तकालयों का भी प्रयास यही है कि बच्चों को ज्यादा-से-ज्यादा विषयों पर ठोस जानकारी के साथ पढ़ने के लिए किताबें मिलें। बिहार में गोपालगंज के ‘प्रयोग पुस्तकालय’ की चर्चा तो आसपास के कई शहरों में होने लगी है। इस पुस्तकालय से करीब 12 गांवों के युवाओं को किताबें पढ़ने की सुविधा मिलने लगी है, साथ ही ये, पुस्तकालय पढ़ाई में मदद करने वाली दूसरी जरूरी सुविधाएँ भी उपलब्ध करा रही है । कुछ पुस्तकालय तो ऐसे हैं, जो, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में छात्रों के बहुत काम आ रहे हैं । ये देखना वाकई बहुत सुखद है कि समाज को सशक्त बनाने में आज पुस्तकालय का बेहतरीन उपयोग हो रहा है । आप भी किताबों से दोस्ती बढ़ाइए, और देखिए, कैसे आपके जीवन में बदलाव आता है।

प्रधानमंत्री ने गुयाना के उदाहरण साझा करते हुए कहा, “परसों रात ही मैं दक्षिण अमेरिका के देश गयाना से लौटा हूं । भारत से हजारों किलोमीटर दूर, गुयाना में भी, एक ‘मिनी भारत’ बसता है । आज से लगभग 180 वर्ष पहले, गुयाना में भारत के लोगों को, खेतों में मजदूरी के लिए, दूसरे कामों के लिए, ले जाया गया था । आज गुयाना में भारतीय मूल के लोग राजनीति, व्यापार, शिक्षा और संस्कृति के हर क्षेत्र में गुयाना का नेतृत्व कर रहे हैं । गुयाना के राष्ट्रपति डॉ. इरफान अली भी भारतीय मूल के हैं, जो, अपनी भारतीय विरासत पर गर्व करते हैं । जब मैं गुयाना में था, तभी, मेरे मन में एक विचार आया था – जो मैं ‘मन की बात’ में आपसे साझा कर रहा हूं । गुयाना की तरह ही दुनिया के दर्जनों देशों में लाखों की संख्या में भारतीय हैं । दशकों पहले की 200-300 साल पहले की उनके पूर्वजों की अपनी कहानियां हैं।

”उन्होंने बच्चों से सवाल किया, “क्या आप ऐसी कहानियों को खोज सकते हैं कि किस तरह भारतीय प्रवासियों ने अलग-अलग देशों में अपनी पहचान बनाई! कैसे उन्होंने वहाँ की आजादी की लड़ाई के अंदर हिस्सा लिया! कैसे उन्होंने अपनी भारतीय विरासत को जीवित रखा? मैं चाहता हूं कि आप ऐसी सच्ची कहानियों को खोजें, और मेरे साथ साझा करें। आप इन कहानियों को नमो एप पर या माईगॉव पर इंडियन डायस्पोरा स्टोरीज़ के साथ भी साझा कर सकते हैं।”श्री मोदी ने ओमान में चल रही एक विशिष्ट परियोजना का दिलचस्पी से उल्लेख करते हुए कहा कि अनेकों भारतीय परिवार कई शताब्दियों से ओमान में रह रहे हैं। इनमें से ज्यादातर गुजरात के कच्छ से जाकर बसे हैं। इन लोगों ने व्यापार के महत्वपूर्ण लिंक तैयार किए थे। आज भी उनके पास ओमानी नागरिकता है, लेकिन भारतीयता उनकी रग-रग में बसी है।

ओमान में भारतीय दूतावास और भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार के सहयोग से एक टीम ने इन परिवारों के इतिहास को संरक्षित करने का काम शुरू किया है। इस अभियान के तहत अब तक हजारों दस्तावेज़ जुटाए जा चुके हैं। इनमें डायरी, एकाउंट बुक, लेजर, पत्रक और टेलीग्राम शामिल हैं। इनमें से कुछ दस्तावेज तो सन् 1838 के हैं। ये दस्तावेज, भावनाओं से भरे हुए हैं। बरसों पहले जब वो ओमान पहुंचे, तो उन्होंने किस प्रकार का जीवन जिया, किस तरह के सुख-दुख का सामना किया और ओमान के लोगों के साथ उनके संबंध कैसे आगे बढ़े, ये सब कुछ इन दस्तावेजों का हिस्सा है। ‘मौखिक इतिहास परियोजना’ ये भी इस मिशन का एक महत्वपूर्ण आधार है। इस मिशन में वहां के वरिष्ठ लोगों ने अपने अनुभव साझा किए हैं। लोगों ने वहाँ अपने रहन-सहन से जुड़ी बातों को विस्तार से बताया है।

प्रधानमंत्री ने बताया कि ऐसी ही एक ‘मौखिक इतिहास परियोजना’ भारत में भी हो रही है । इस परियोजना के तहत इतिहास प्रेमी देश के विभाजन के कालखंड में पीड़ितों के अनुभवों का संग्रह कर रहें हैं। अब देश में ऐसे लोगों की संख्या कम ही बची है जिन्होंने, विभाजन की विभीषिका देखी है। ऐसे में यह प्रयास और ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। उन्होंने कहा, “जो देश, जो स्थान, अपने इतिहास को संजोकर रखता है, उसका भविष्य भी सुरक्षित रहता है। इसी सोच के साथ एक प्रयास हुआ है जिसमें गांवों के इतिहास को संजोने वाली एक निर्देशिका बनाई है। समुद्री यात्रा के भारत के पुरातन सामर्थ्य से जुड़े साक्ष्यों को सहेजने का भी अभियान देश में चल रहा है। इसी कड़ी में, लोथल में, एक बहुत बड़ा संग्रहालय भी बनाया जा रहा है।

”श्री मोदी ने लोगों से आग्रह किया कि यदि उनके संज्ञान में कोई पाण्डुलिपि हो, कोई ऐतिहासिक दस्तावेज हो, कोई हस्तलिखित प्रति हो तो उसे भी वे भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार की मदद से सहेज सकते हैं।प्रधानमंत्री ने पूर्वी यूरोप के देश स्लोवाकिया में भारतीय संस्कृति को लेकर हो रहे काम का जिक्र करते हुए कहा, “मुझे स्लोवाकिया में हो रहे ऐसे ही एक और प्रयास के बारे में पता चला है जो हमारी संस्कृति को संरक्षित करने और उसे आगे बढ़ाने से जुड़ा है। यहां पहली बार स्लोवाक भाषा में हमारे उपनिषदों का अनुवाद किया गया है। इन प्रयासों से भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रभाव का भी पता चलता है। हम सभी के लिए ये गर्व की बात है कि दुनिया-भर में ऐसे करोड़ों लोग हैं, जिनके हृदय में, भारत बसता है।”

साफ सफाई को लेकर देशवासियों में आयी स्वदायित्व की भावना : मोदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छता अभियान को निरंतर चलने वाला अभियान बताते हुए आज कहा कि इसके कारण देशवासियों खासकर सरकारी दफ्तरों में लोगों की मानसिकता में बदलाव आया है और अब वे स्वदायित्व की भावना से ना सिर्फ साफ-सफाई कर रहे हैं बल्कि रिसाइकिलिंग से धन भी अर्जित कर रहे हैं।श्री मोदी ने आकाशवाणी पर अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ में सरकारी कार्यालयों में आये बदलाव पर खुशी जाहिर करते हुए कहा, “आपने देखा होगा, जैसे ही कोई कहता है ‘सरकारी दफ्तर’ तो आपके मन में फाइलों के ढ़ेर की तस्वीर बन जाती है । आपने फिल्मों में भी ऐसा ही कुछ देखा होगा। सरकारी दफ्तरों में इन फाइलों के ढ़ेर पर कितने ही मजाक बनते रहते हैं, कितनी ही कहानियां लिखी जा चुकी हैं। बरसों-बरस तक ये फाइलें ऑफिस में पड़े-पड़े धूल से भर जाती थीं, वहां, गंदगी होने लगती थी – ऐसी दशकों पुरानी फाइलों और कबाड़ को हटाने के लिए एक विशेष स्वच्छता अभियान चलाया गया।

आपको ये जानकर खुशी होगी कि सरकारी विभागों में इस अभियान के अद्भुत परिणाम सामने आए हैं। साफ-सफाई से दफ्तरों में काफी जगह खाली हो गई है। इससे दफ्तर में काम करने वालों में एक स्वदायित्व का भाव भी आया है। अपने काम करने की जगह को स्वच्छ रखने की गंभीरता भी उनमें आई है।”प्रधानमंत्री ने कहा, “आपने अक्सर बड़े-बुजुर्गों को ये कहते सुना होगा, कि जहां स्वच्छता होती है, वहां, लक्ष्मी जी का वास होता है । हमारे यहाँ ‘कचरे से कंचन’ का विचार बहुत पुराना है। देश के कई हिस्सों में ‘युवा’ बेकार समझी जाने वाली चीजों को लेकर, कचरे से कंचन बना रहे हैं । तरह-तरह के नवान्वेषण कर रहे हैं। इससे वो पैसे कमा रहे हैं, रोजगार के साधन विकसित कर रहे हैं। ये युवा अपने प्रयासों से टिकाऊ जीवनशैली को भी बढ़ावा दे रहे हैं ।

मुंबई की दो बेटियों का ये प्रयास, वाकई बहुत प्रेरक है । अक्षरा और प्रकृति नाम की ये दो बेटियाँ, कतरन से फैशन के सामान बना रही हैं । आप भी जानते हैं कपड़ों की कटाई-सिलाई के दौरान जो कतरन निकलती है, इसे बेकार समझकर फेंक दिया जाता है । अक्षरा और प्रकृति की टीम उन्हीं कपड़ों के कचरे को फैशन उत्पाद में बदलती है। कतरन से बनी टोपियां, बैग हाथों-हाथ बिक भी रही है।”उन्होंने साफ-सफाई को लेकर उत्तर प्रदेश के कानपुर में जारी एक अच्छी पहल की जानकारी साझा करते हुए कहा कि कानपुर कुछ लोग रोज सुबह की सैर पर निकलते हैं और गंगा के घाटों पर फैले प्लास्टिक और अन्य कचरे को उठा लेते हैं। इस समूह को ‘कानपुर प्लॉगर्स ग्रुप’ नाम दिया गया है। इस मुहिम की शुरुआत कुछ दोस्तों ने मिलकर की थी। धीरे-धीरे ये जन भागीदारी का बड़ा अभियान बन गया।

शहर के कई लोग इसके साथ जुड़ गए हैं। इसके सदस्य, अब, दुकानों और घरों से भी कचरा उठाने लगे हैं। इस कचरे से रिसाइकिल संयंत्र में ट्री गार्ड तैयार किए जाते हैं, यानि, इस ग्रुप के लोग कचरे से बने ट्री गार्ड से पौधों की सुरक्षा भी करते हैं।उन्होंने एक और उदारण देते हुए कहा, “छोटे-छोटे प्रयासों से कैसी बड़ी सफलता मिलती है, इसका एक उदाहरण असम की इतिशा भी है। इतिशा की पढ़ाई-लिखाई दिल्ली और पुणे में हुई है। इतिशा कारपोरेट दुनिया की चमक-दमक छोड़कर अरुणाचल की सांगती घाटी को साफ बनाने में जुटी हैं। पर्यटकों की वजह से वहां काफी प्लास्टिक कचरा जमा होने लगा था। वहां की नदी जो कभी साफ थी वो प्लास्टिक कचरे की वजह से प्रदूषित हो गई थी। इसे साफ करने के लिए इतिशा स्थानीय लोगों के साथ मिलकर काम कर रही है। उनके ग्रुप के लोग वहां आने वाले सैलानियों को जागरूक करते हैं और प्लास्टिक कचरे को जमा करने के लिए पूरी घाटी में बांस से बने कूड़ेदान लगाते हैं।

”प्रधानमंत्री ने कहा कि ऐसे प्रयासों से भारत के स्वच्छता अभियान को गति मिलती है। ये निरंतर चलते रहने वाला अभियान है। उन्होंने लोगों से अपील की कि उनके परिवेश में आस-पास भी ऐसा जरूर होता ही होगा। अत: वे ऐसे प्रयासों के बारे में उन्हें जरूर लिखते रहें।(वार्ता)

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