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सिंगरौली क्षेत्र की हवाओं में तैर रहा पारा जनजीवन के लिए बना खतरा

भारत का मिनामाटा बन सकता है सोनभद्र

देवेश मोहन

सोनभद्र । सिंगरौली क्षेत्र से लेकर सोनभद्र की हवाओं में तैर रहा पारा आम जनजीवन के लिए खतरा ही नही,अपितु आने वाली पीढ़ी के लिए अभिशाप बन चुकी है।एनजीटी कोर कमेटी की रिपोर्ट की माने तो औद्योगिक इकाईयों से निकलने वाली ज़हरीली धुएं से प्रतिदिन 40 किलोग्राम मरकरी हवा में घुल रही है।जिससे सोनभद्र एवं सिंगरौली का पारा टाइम बम बनने चल पड़ा है।अगर हालात ऐसे ही बना रहा तो हम जापान के मिनामाटा की गलतियों को ही दोहराएंगे,फर्क सिर्फ यह होगा कि मिनामाटा की आबादी हजारों में थी और सिंगरौली व सोनभद्र की आबादी लाखों में है।20 साल पहले के अध्ययन में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के संगठन प्रयोगशाला भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान आईआईटीआर लखनऊ ने सिंगरौली में पारा प्रदूषण का एक बड़ा अध्ययन किया।जिसमें चौकाने वाले तथ्य उभरकर सामने आये।

अध्ययन में पाया की पारा हर जगह उच्च स्तर में मौजूद है। सोनभद्र के लोग रोग ग्रसित हो रहे हैं और उनके लक्षणों को सीधे पारे की विषाक्तता से जोड़ा जा सकता है। पर्यावरण प्रदूषण बोर्ड ने भी पारा की मौजूदगी की बात स्वीकार किया था।वर्ष 2012 में सेंटर फार साइंस एण्ड एनवायरमेंट (सीएसई) ने अपने एक अध्ययन में उत्तर प्रदेश के दूसरे सबसे बड़े जिले सोनभद्र के पर्यावरण और स्थानीय बाशिन्दों के शरीर में पारे की अत्यधिक मात्रा मौजूद होने का दावा किया है। सीएसई ने रिपोर्ट में बताया कि सोनभद्र के जल, मिट्टी, अनाज तथा मछलियों के साथ-साथ वहां के बाशिंदों के रक्त, नाखून एवं बाल के नमूने लेकर अध्ययन किया है। सोनभद्र के पर्यावरण और स्थानीय बाशिन्दों के शरीर में पारे की अत्यधिक मात्रा पायी गयी है।

अपनी रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी है कि यही स्थिति रही तो क्षेत्र में जापान के मिनामाटा शहर में वर्ष 1956 में पारे की भयानक विषाक्तता के चलते हुई सैकड़ों लोगों की मौत की पुनरावृत्ति इस क्षेत्र में भी हो सकती है। रक्त के नमूनों में पारे की मात्रा औसत सुरक्षित स्तर से छह गुना ज्यादा पायी गयी है। सीएसई की प्रदूषण निगरानी प्रयोगशाला ने यह अध्ययन प्रलेखित पद्धतियों के अनुसार की,जिसमें रक्त नमूनों में पारे की सर्वाधिक मात्रा 113.48 पीपीबी पायी गयी। जो सुरक्षित स्तर से 20 गुना ज्यादा है।भूजल को भी जहरीला कर दिया है, पारे की सर्वाधिक 0.026 पीपीएम सांद्रता डीबुलगंज के हैंडपम्प से लिये गये नमूने में पायी गयी है। जो स्थापित मानक से 26 गुना ज्यादा है,सामाजिक कार्यकर्ता जगत नारायण विश्वकर्मा के याचिका पर एनजीटी द्वारा गठित कोर कमेटी ने भी अपनी रिपोर्ट में माना कि विभिन्न परियोजनाओं से प्रतिदिन 40 किलोग्राम पारा हवा में छोड़ा जा रहा है। अब सवाल यह है कि पारा जैसे घातक तत्व सोनभद्र के हवा पानी और मिट्टी में उच्चतम स्तर पर है तो क्या यहां के लोगों पर इसका विनाशकारी प्रभाव नहीं पड़ेगा ? यह सरकार के लिए एक यक्ष प्रश्न है।जिसका उत्तर और समाधान दोनों ही सरकार के जिम्मे है।

क्या है पारा…..!

मर्करी या पारा एक ऐसा तत्व है जो वायु, जल एवं मिट्टी में पाया जाता है। यह प्रकृति का अत्यंत विषाक्त तत्व है।तंत्रिका प्रणाली पारे के सभी रूपों के लिए संवेदनशील होती है। इसके उच्च स्तर के संपर्क में आने पर मस्तिष्क और गुर्दे खराब हो सकते हैं। इसके अलावा पागलपन ,स्मृति लोप,गंभीर अवसाद, प्रलाप व्यक्तित्व परिवर्तन, गर्भवती महिलाएं अपने शरीर में मौजूद पारे को अपने बच्चों में संचारित कर सकताहै।

अनदेखी के हो सकते हैं गंभीर परिणाम

अब तक हुए अध्ययन एवं शोध ने सिंगरौली क्षेत्र में पारा के उच्चतम स्तर पर होने की बात कही है। फिर भी इस संबंध में कोई ठोस कार्रवाई सरकार की तरफ से नहीं की जा रही है।पिछले 10 वर्षों से सोनभद्र के पर्यावरण प्रदूषण पर काम कर रहे डॉक्टर अनिल गौतम पर्यावरण वैज्ञानिक लोक विज्ञान संस्थान देहरादून का मानना है कि सभी लक्षण पारे से खतरे की ओर इशारा करते हैं। रोकथाम ही इसका इलाज है, जो नहीं हो रहा है। आने वाले दिनों में सिंगरौली क्षेत्र समेत जनपद में तमाम तरह की बिमारियां होने लगेंगी। जिसका रोकथाम करना सरकार के बस की बात नहीं होगी

दिखने लगा है पारे का असर

प्राकृति के अत्यंत विषाक्त तत्वों में से एक “पारे” के विनाशकारी प्रभाव ने सोनभद्र में किसी को भी नहीं बख्शा है। इसका कितना विनाशकारी प्रभाव यहां पड़ा है इसकी कोई अध्ययन नहीं है लेकिन पारा के प्रभाव के कारण होने वाली बीमारियों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। दुद्धी ग्राम विकास समिति ने बुटबेढ़वा, मुड़ीसेमर, सलैयाडीह में अध्ययन किया।इन तीनों गांव की आबादी लगभग 10000 है।इन गांवों में पाया कि 250 से अधिक बच्चे युवा बुजुर्ग यानि कि मिर्गी रोग से पीड़ित हैं और दर्जन भर लो पागलपन के शिकार हो चुके हैं। दुद्धी ग्राम विकास समिति के अभय सिंह बताते हैं कि पिछले 8 सालों में इस तरह की बीमारी तेजी से बढ़ रही है। दुद्धी के दवा व्यवसायी शमीम अंसारी बताते हैं tegretal, magital, gardenal, valparin, sodium valparate, manital जैसी दवाइयों की बिक्री में बेतहाशा इज़ाफ़ा हुआ है।जिसका प्रयोग इन्हीं लक्षण के बीमारियों में होता है।

रोकथाम की कार्रवाई को नजरअंदाज कर रही है सरकार- प्रभात कुमार

प्रदूषण एवं पर्यावरण मामले में क्षेत्र में काफी दिनों से जागरूकता की अलख जगाने वाले पत्रकार प्रभात कुमार “मुन्ना” का मानना है कि पारा के बढ़ते प्रभाव के कारण जनपद के बार्डर एवं दुरूह इलाकों में तमाम तरह की बीमारियां जड़ जमा रही हैं।जिससे बेख़बर अनपढ़ एवं गरीब आदिवासी इसे ईश्वर की मर्जी मानकर,जैसे तैसे जीवन गुजारने को विवश हैं।उन्होंने कहा कि सेंटर थार साइंस एंड एनवायर्नमेंटल (सीएई) ने अपने अध्ययन में 20 गुना अधिक पारा सोनभद्र में पाया है।जो सीधे तौर पर आम जनजीवन के द्वारा सांसों में ऑक्सीजन के रूप में ली जाने वाली हवा “मीठे ज़हर” के रूप में ग्रहण की जा रही है।सरकार इसके रोकथाम के पुख्ता इंतजाम से परहेज कर रही है।यदि समय रहते इस पर विचार नही हुआ तो,आने वाले दिनों में स्वास्थ्य को लेकर स्थिति काफी बदतर होगी।

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