
चन्द्रग्रहण समाप्त : घाटों पर उमड़े श्रद्धालु, मंदिरों में शुद्धिकरण –अगले खगोलीय पड़ाव की चर्चा अब सूर्यग्रहण
ग्रहण के बाद घाटों पर उमड़ी भीड़, धार्मिक आस्थाओं संग वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर भी चर्चा
वाराणसी : सोमवार रात का चन्द्रग्रहण समाप्त हो चुका है। रात 10 बजकर 45 मिनट पर यह अद्भुत खगोलीय घटना अपने अंतिम चरण में पहुँची और इसके साथ ही नौ घंटे से चल रहा सूतक काल भी समाप्त हुआ। आस्था से ओत-प्रोत देशभर के लोग घाटों पर उमड़ पड़े, मंदिरों में शुद्धिकरण हुआ और श्रद्धालुओं ने स्नान, दान और मंत्रोच्चार के साथ इस घटना का समापन किया। यह ग्रहण न केवल धार्मिक मान्यताओं का केंद्र रहा बल्कि वैज्ञानिकों के लिए भी अध्ययन का विशेष अवसर बना। अब सबकी निगाहें इसी महीने पड़ने वाले सूर्यग्रहण पर टिक गई हैं, जो एक और बड़ी खगोलीय घटना होगी।
खगोलीय दृश्य – रक्तिम चाँद का जादू
चन्द्रग्रहण का दृश्य सोमवार रात से ही लाखों लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया। जब पृथ्वी सूर्य और चन्द्रमा के बीच आ जाती है, तब चन्द्रमा पर पृथ्वी की छाया पड़ती है और वह पूर्ण रूप से ढक जाता है। यही स्थिति पूर्ण चन्द्रग्रहण कहलाती है।
इस बार का चन्द्रग्रहण विशेष इसलिए रहा क्योंकि—
यह पूर्ण चन्द्रग्रहण था। चन्द्रमा का रंग गहरा लाल हो गया, जिसे Blood Moon कहा गया। पूर्णता काल करीब 83 मिनट तक रहा, जो इसे खगोल विज्ञान की दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाता है। ग्रहण का आरंभ भारतीय समयानुसार रात 7 बजकर 12 मिनट पर हुआ। धीरे-धीरे चन्द्रमा पृथ्वी की छाया में समाता गया और रात 8 बजकर 15 मिनट तक पूर्ण ग्रहण की स्थिति बन गई। इस दौरान चाँद का रंग लालिमा लिए हुए दिखाई दिया। ठीक 10 बजकर 45 मिनट पर ग्रहण का समापन हुआ।
मंदिरों की गतिविधियाँ – सूतक और शुद्धिकरण
चन्द्रग्रहण का धार्मिक जीवन पर गहरा असर होता है। जैसे ही सुबह 10 बजकर 12 मिनट पर सूतक काल शुरू हुआ, देशभर के मंदिरों में गतिविधियाँ बदल गईं। वाराणसी: काशी विश्वनाथ मंदिर, काल भैरव मंदिर और संकट मोचन मंदिर के कपाट समय से पहले बंद कर दिए गए। गंगा आरती का समय बदला गया। ग्रहण समाप्त होने के बाद मंदिरों को गंगाजल से शुद्ध किया गया और विशेष आरती हुई। उज्जैन: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में भी इसी परंपरा का पालन हुआ। ग्रहण समाप्ति पर महाआरती और रुद्राभिषेक हुआ। तिरुपति: श्री वेंकटेश्वर मंदिर 12 घंटे तक बंद रहा। ग्रहण उपरांत स्नपनाभिषेक और सुप्रभात सेवा के बाद ही दर्शन की अनुमति दी गई। चार धाम (उत्तराखंड): बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री धाम बंद रहे और सुबह शुद्धिकरण के बाद पुनः खुले। मंदिरों में ग्रहण समाप्ति पर यह मान्यता रही कि देवताओं का विशेष पूजन, शांति पाठ और हवन करने से दुष्प्रभाव समाप्त होते हैं।
घाटों पर आस्था का सैलाब
वाराणसी, प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार, नासिक और गंगा-यमुना तट पर स्थित तमाम तीर्थस्थलों पर श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। लोग रातभर स्नान की प्रतीक्षा करते रहे। ग्रहण समाप्त होते ही गंगा, यमुना, नर्मदा और गोदावरी में स्नान कर श्रद्धालुओं ने आस्था व्यक्त की। स्नान के बाद लोगों ने दान-पुण्य किया। मंदिरों के बाहर भक्तों ने मंत्रोच्चार, भजन-कीर्तन और दीपदान किया। ग्रहण के अवसर पर कई परिवारों ने ‘सामूहिक जप’ और ‘महामृत्युंजय मंत्र’ का आयोजन भी किया।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, चन्द्रग्रहण का प्रभाव कुछ राशियों पर अधिक और कुछ पर कम रहता है।
मेष, कन्या और मकर राशि वालों को मानसिक तनाव और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं।
वृषभ और तुला राशि के लिए यह आर्थिक मामलों में सतर्कता का समय है।
सिंह और धनु राशि वालों के लिए यह ग्रहण सकारात्मक भी सिद्ध हो सकता है।
उपाय के रूप में ग्रहण समाप्ति के बाद स्नान, जप और दान करने की सलाह दी गई।
वैज्ञानिक नजरिया – अंधविश्वास से परे
वैज्ञानिकों ने बार-बार दोहराया कि चन्द्रग्रहण का मानव जीवन पर कोई प्रत्यक्ष असर नहीं होता। यह केवल पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य की स्थिति के कारण बनने वाली खगोलीय घटना है। गर्भवती महिलाओं पर इसका कोई वैज्ञानिक दुष्प्रभाव सिद्ध नहीं हुआ है। भोजन पर प्रभाव की मान्यता भी खगोल विज्ञान के अनुसार आधारहीन है। हालाँकि, वैज्ञानिक इस अवसर का प्रयोग पृथ्वी के वायुमंडलीय अध्ययन, प्रकाशीय प्रभाव और चन्द्र सतह पर पड़ने वाली छाया के अध्ययन के लिए करते हैं।
सोशल मीडिया और आधुनिक परिप्रेक्ष्य
ग्रहण का असर सोशल मीडिया पर भी खूब दिखा। ट्विटर (X), इंस्टाग्राम और फेसबुक पर #LunarEclipse और #BloodMoon ट्रेंड करता रहा। लोगों ने कैमरों और मोबाइल से तस्वीरें खींचीं और साझा कीं। नेटिज़न्स ने इसे “आकाश का सबसे खूबसूरत शो” बताया। युवा वर्ग के लिए यह आस्था और विज्ञान दोनों को समझने का अवसर बना।
अंधविश्वास बनाम जागरूकता
गांव-कस्बों में अब भी ग्रहण को लेकर कई तरह की धारणाएँ हैं।
* भोजन को ढककर रखने और ग्रहण के दौरान न खाने की परंपरा।
* गर्भवती महिलाओं को घर से बाहर न निकलने की हिदायत।
* घर में मंत्र-जाप और दीपक जलाने की प्रथा।
धार्मिक मान्यता भले ही इन बातों से जुड़ी हो, लेकिन शिक्षाविद् और वैज्ञानिक अब लोगों को जागरूक करने लगे हैं। कई जगह स्कूलों और विज्ञान मंचों ने विशेष कार्यशालाएँ आयोजित कीं।
अगली बड़ी खगोलीय घटना – सूर्यग्रहण
चन्द्रग्रहण समाप्त होने के साथ ही अब चर्चा आगामी सूर्यग्रहण की शुरू हो गई है। यह सूर्यग्रहण 18 सितम्बर 2025 को लगेगा। आंशिक सूर्यग्रहण भारत के कुछ हिस्सों में दिखाई देगा, जबकि पूर्ण सूर्यग्रहण दक्षिण अमेरिका और अटलांटिक के कुछ क्षेत्रों में देखने को मिलेगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्यग्रहण का भी गहरा प्रभाव माना जाता है। खगोल विज्ञानियों के लिए यह एक और अध्ययन का अवसर होगा। इस तरह सितम्बर 2025 खगोल विज्ञान और धार्मिक आस्था दोनों दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माह बन गया है।
दान और सामाजिक सरोकार
ग्रहण समाप्ति पर स्नान-दान की परंपरा निभाते हुए लोगों ने गरीबों को भोजन, कपड़े और अन्न वितरित किए। कई धार्मिक संस्थाओं ने सामूहिक दान शिविर लगाए। वाराणसी में बाबा गणिनाथ भक्त मण्डल और मध्यदेशीय वैश्य महासभा ने मिलकर श्रद्धालुओं को जल, फल और प्रसाद वितरित किया।
इस चन्द्रग्रहण ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि आस्था और विज्ञान साथ-साथ चल सकते हैं। आकाश में खगोलीय नज़ारा देख कर लोग चकित हुए। मंदिरों में आस्था की झलक मिली। घाटों पर लाखों लोगों ने स्नान कर परंपरा निभाई। सोशल मीडिया पर इसकी तस्वीरें गूँज उठीं। अब सबकी नज़रें इसी माह के सूर्यग्रहण पर टिकी हैं। खगोल विज्ञानियों और श्रद्धालुओं दोनों के लिए यह एक और अवसर होगा, जब आकाश धरती से संवाद करता हुआ दिखेगा।
लोगों की प्रतिक्रियाएँ
ग्रहण समाप्त होते ही घाटों और मंदिरों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। कई लोगों ने इसे “आस्था और विज्ञान का संगम” बताया। युवाओं ने जहां मोबाइल से चन्द्रग्रहण के नज़ारे कैद किए, वहीं बुज़ुर्ग पारंपरिक अनुष्ठानों में व्यस्त दिखे।इस तरह 8 सितम्बर की रात पड़ा चन्द्रग्रहण धार्मिक आस्था और वैज्ञानिक जिज्ञासा दोनों का केंद्र रहा। अब अगले चन्द्रग्रहण का इंतज़ार खगोल विज्ञानियों और श्रद्धालुओं दोनों को रहेगा।
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