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बिहार मंत्रिमंडल में कानू समाज की उपेक्षा: छह विधायक, फिर भी एक भी मंत्री नहीं

बिहार में नए मंत्रिमंडल के गठन के बाद मद्धेशिया कानू समाज में गहरा असंतोष है। विधानसभा चुनाव 2025 में समाज के सभी छह उम्मीदवारों ने भारी मतों से जीत हासिल की थी, लेकिन सरकार ने मंत्रिमंडल में एक भी विधायक को शामिल नहीं किया। सामाजिक संगठनों ने इसे समुदाय की उपेक्षा और जनमत का अनादर बताया है। पूर्व मंत्रियों समेत सभी विजयी विधायकों को नजरअंदाज किए जाने से समर्थकों में रोष बढ़ रहा है। समाज का कहना है कि उसने एनडीए को एकमुश्त समर्थन दिया था और अब सम्मानजनक प्रतिनिधित्व की अपेक्षा रखता है।

  • मध्यदेशिया कानू समाज की ऐतिहासिक जीत के बाद भी प्रतिनिधित्व न मिलने से नाराज़गी तेज, संगठनों ने कहा -यह जनमत का अपमान है।

पटना। बिहार में नए मंत्रिमंडल के गठन के बाद मध्यदेशिया कानू (हलवाई) समाज में तीखी प्रतिक्रिया देखी जा रही है। एनडीए गठबंधन ने विधानसभा चुनाव 2025 में इस समुदाय को छह टिकट दिए थे और छह के छह उम्मीदवार भारी मतों से विजयी हुए थे। इसके बावजूद मंत्रिमंडल में समुदाय के किसी भी विधायक को स्थान नहीं दिया गया, जिससे समाज के भीतर असंतोष और नाराज़गी बढ़ गई है।

समाज के लोगों का कहना है कि जब चार-पाँच विधायकों वाली छोटी पार्टियों को भी मंत्रिपद दिया गया है, तो छह विधायकों वाले उनके समुदाय को नजरअंदाज करना राजनीतिक असंतुलन और जनमत की अवहेलना है। कई संगठनों ने इसे “अनुचित” और “अपमानजनक” निर्णय बताया है।

समाज के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि 2025 के चुनाव में समुदाय ने एकमुश्त मतदान कर एनडीए को रिकॉर्ड समर्थन दिया था, और यह उम्मीद की जा रही थी कि सरकार मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व देकर इस समर्थन का सम्मान करेगी। लेकिन नियुक्तियों की सूची जारी होने के बाद समुदाय में तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है।

पूर्व कैबिनेट मंत्री प्रमोद कुमार गुप्ता और पूर्व कैबिनेट मंत्री केदार प्रसाद गुप्ता के समर्थकों में भी नाराज़गी बढ़ी है। दोनों नेताओं ने इस चुनाव में बंपर जीत दर्ज की थी और पिछली सरकारों में प्रभावी भूमिका निभाई थी। समाज का कहना है कि अनुभवी और जनाधार वाले नेताओं को मंत्री पद न मिलना समुदाय के सम्मान और योगदान को कमतर आंकने जैसा है।

बाबा गणिनाथ भक्त मंडल के राष्ट्रीय संरक्षक राजेंद्र प्रसाद गुप्ता और मध्यदेशीय वैश्य महासभा उप्र के महामंत्री संगठन मनोज मध्यदेशिया ने भी एनडीए गठबंधन के इस निर्णय पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि मध्यदेशिया कानू समाज ने तन, मन और धन से एनडीए का समर्थन किया। उन्होंने दावा किया कि इस समुदाय के मतदाताओं ने राज्य भर की कई सीटों पर चुनाव परिणामों को प्रभावित किया और गठबंधन को मजबूत विजय दिलाई।

सामाजिक संगठनों का कहना है कि आरजेडी द्वारा टिकट न मिलने की नाराज़गी को समुदाय ने एनडीए के पक्ष में मतदान कर स्पष्ट किया था। छह में छह सीटों पर हुई जीत को समुदाय अपनी राजनीतिक एकजुटता और प्रभाव का प्रमाण मानता है। ऐसे में मंत्रिमंडल में शून्य प्रतिनिधित्व को वे असंतुलित और निराशाजनक निर्णय बता रहे हैं।

कई संगठनों का यह भी कहना है कि यह मामला केवल मंत्री पद तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सम्मान, साझेदारी और सामाजिक प्रतिनिधित्व की मांग से जुड़ा है। समुदाय के युवाओं और बुद्धिजीवियों का मानना है कि यदि उनकी अनदेखी जारी रही, तो समाज भविष्य में अपने राजनीतिक विकल्पों और रणनीतियों पर पुनर्विचार कर सकता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि मद्धेशिया कानू समाज आर्थिक रूप से सक्षम, संगठित और चुनावों में प्रभावी भूमिका निभाने वाला समुदाय है। ऐसे समुदाय की उपेक्षा करना गठबंधन के लिए भविष्य में चुनौती बन सकता है। सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे को लेकर समुदाय की तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है।

कई संगठनों ने मांग की है कि सरकार मंत्रिमंडल में जल्द संतुलन स्थापित करे और समुदाय को सम्मानजनक प्रतिनिधित्व दे। समाज का कहना है कि उन्होंने चुनाव में अपनी भूमिका निभाई है, अब सरकार पर जिम्मेदारी है कि वह इस योगदान को स्वीकार करे।

समुदाय का कहना है कि वह सम्मान, हिस्सेदारी और न्याय की अपनी मांग पर अडिग है। संगठनों ने साफ संकेत दिया है कि यदि सरकार ने इस असंतोष को गंभीरता से नहीं लिया, तो इसका प्रभाव आने वाले वर्षों में बिहार की राजनीति पर स्पष्ट रूप से दिखाई देगा।

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