“अपने नागरिकों के अधिकारों और गरिमा की रक्षा करना हमारा साझा कर्तव्य है”: राष्ट्रपति
नई दिल्ली में आयोजित मानवाधिकार दिवस समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि मानवाधिकार संविधान का मूल तत्व हैं और भारत ने वैश्विक मानवाधिकार ढांचे को मजबूत किया है। उन्होंने न्याय, समानता और गरिमा को समावेशी विकास का आधार बताते हुए कहा कि मानवाधिकारों को विकास से अलग नहीं किया जा सकता। महिलाएं, बच्चों, कमजोर वर्गों व कैदियों के अधिकारों की रक्षा पर विशेष जोर देते हुए उन्होंने हर नागरिक से मानवाधिकारों की जिम्मेदारी निभाने का आह्वान किया।
- मानवाधिकार दिवस समारोह में राष्ट्रपति ने बताया-न्याय और शांति एक-दूसरे के पूरक, विकास के केंद्र में मानव गरिमा जरूरी
नयी दिल्ली : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बुधवार को यहां कहा कि मानवाधिकार हमारे संविधान की दृष्टि में निहित हैं और भारत ने मानवाधिकारों के वैश्विक ढांचे को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।श्रीमति मुर्मू ने यह बात राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा आयोजित मानवाधिकार दिवस समारोह को संबोधित करते हुये कही। उन्होंने कहा कि मानवाधिकार दिवस हमें यह याद दिलाने का अवसर है कि सार्वभौमिक मानवाधिकार अविभाज्य हैं और वह एक न्यायपूर्ण, समान और दयालु समाज की नींव तैयार करते हैं। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने मानव गरिमा, समानता और न्याय पर आधारित दुनिया की कल्पना की थी।
उन्होंने कहा कि मानवाधिकार सामाजिक लोकतंत्र को बढ़ावा देने के साथ बिना किसी डर के जीने का अधिकार, बिना किसी बाधा के सीखने का अधिकार, बिना किसी शोषण के काम करने का अधिकार और गरिमा के साथ वृद्धावस्था बिताने का अधिकार प्रदान करता है। श्रीमती मुर्मू ने कहा, ‘हमने दुनिया को याद दिलाया है कि मानवाधिकारों को विकास से अलग नहीं किया जा सकता। साथ ही, भारत ने हमेशा इस शाश्वत सत्य का पालन किया है: न्याय के बिना शांति नहीं है और शांति के बिना न्याय नहीं है।
‘श्रीमति मुर्मू ने इस बात पर जोर दिया कि अंत्योदय के दर्शन के अनुरूप, अंतिम व्यक्ति सहित सभी के लिए मानवाधिकार सुनिश्चित किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि 2047 तक विकसित भारत के निर्माण की दिशा में राष्ट्र की विकास यात्रा में प्रत्येक नागरिक को सक्रिय भागीदार होना चाहिए। तभी विकास को सही मायने में समावेशी कहा जा सकता है।राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राज्य मानवाधिकार आयोग, न्यायपालिका और नागरिक समाज के साथ मिलकर संवैधानिक विवेक के सतर्क प्रहरी के रूप में काम करने पर प्रसन्नता व्यक्त की।
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के लोगों, साथ ही महिलाओं और बच्चों से जुड़े कई मुद्दों पर स्वत: संज्ञान लिया है। उन्होंने यह भी कहा कि मानावधिकार आयोग ने इस साल अपने स्थापना दिवस समारोह के दौरान जेल में बंद कैदियों के मानवाधिकारों के विषय पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने विश्वास जताया कि इन चर्चाओं से उपयोगी नतीजे निकलेंगे।
श्रीमति मूर्मू ने कहा कि महिलाओं का सशक्तिकरण और उनका कल्याण मानवाधिकारों के मुख्य स्तंभ हैं। उन्होंने सार्वजनिक जगहों और कार्यस्थलों पर महिलाओं की सुरक्षा पर एक सम्मेलन के आयोजन करने पर प्रसन्न्ता जताते हुये कहा कि ऐसे सम्मेलन से निकले निष्कर्ष महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि एनएचआरसी राज्य और समाज के कुछ आदर्शों को व्यक्त करता है। भारत सरकार ऐसे भावों को पहले कभी न देखे गए पैमाने पर अमल में ला रही है। पिछले एक दशक में, हमने देखा है कि हमारा देश एक अलग सोच के साथ आगे बढ़ा है – हक से सशक्तिकरण की ओर और दान से अधिकारों की ओर। सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रही है कि स्वच्छ पानी, बिजली, खाना पकाने की गैस, स्वास्थ्य सेवा, बैंकिंग सेवा, शिक्षा और बेहतर स्वच्छता जैसी रोज़मर्रा की ज़रूरी सेवाएं सभी को मिलें। इससे हर घर का उत्थान होता है और गरिमा सुरक्षित होती है।
श्रीमति मुर्मू ने कहा कि हाल ही में, सरकार ने वेतन, औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थितियों से संबंधित चार लेबर कोड के माध्यम से एक बड़े सुधार को लागू करने की अधिसूचना जारी की है। यह परिवर्तनकारी बदलाव भविष्य के लिए तैयार कार्यबल और अधिक लचीले उद्योगों की नींव रखता है।राष्ट्रपति ने हर नागरिक से यह पहचान करने का आह्वान किया कि मानवाधिकार केवल सरकारों, एनएचआरसी, नागरिक समाज संगठनों और ऐसे अन्य संस्थानों की ज़िम्मेदारी नहीं हैं।
उन्होंने कहा कि हमारे साथी नागरिकों के अधिकारों और गरिमा की रक्षा करना हम सभी का साझा कर्तव्य है। यह कर्तव्य हम सभी पर एक दयालु और ज़िम्मेदार समाज के सदस्यों के रूप में है। (वार्ता)
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