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आईएएसएसटी ने खाद्य वस्तुओं में कार्सियोजेनिक एवं म्युटैजेनिक यौगिकों का पता लगाने के लिए इलेक्ट्रोकैमिकल सेंसिंग प्लेटफार्म का विकास किया

नई दिल्ली । गुवाहाटी स्थित विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी उन्नत अध्ययन संस्थान (आईएएसएसटी) ने कभी कभी क्योर्ड मीट, बैकोन कुछ पनीर एवं कम वसा वाले दूध जैसी खाद्य वस्तुओं में कार्सियोजेनिक एवं म्युटैजेनिक यौगिकों एन-नाइट्रोसोडिमेथिलामाइन (एनडीएमए)  और एन-नाइट्रोसोडिथैनोलामाइन (एनडीईए) का पता लगाने के लिए इलेक्ट्रोकैमिकलसेंसिंग प्लेटफार्म का विकास किया है। इसे डीएनए में कार्बन नैनोमैटेरियल्स (कार्बन डौट्स) को स्थिर कर देने के जरिये एक मोडिफायड इलेक्ट्रोड विकसित करने के द्वारा अर्जित किया गया।

वैज्ञानिकों ने बताया कि शहरों में रहने वाले भारतीयों की बदलती भोजन शैली के कारण उन पर क्योर्ड मीट, बैकोन कुछ पनीर एवं कम वसा वाले सूखे दूध और मछली जैसी खाद्य वस्तुओं में नाइट्रोसैमीन परिवार से संबंधित हानिकारक रसायनों का खतरा मंडराने लगता है। ऐसे रसायनों में एनडीएमए एवं एनडीईए जैसे कार्सियोजेनिक शामिल होते हैं जो हमारे डीएनए की रसायनिक संरचना को भी बदल सकते हैं। इसलिए, उनका पता लगाने के लिए अनुसंधान तकनीकों का विकास किया जाना महत्वपूर्ण है।

नाइट्रोसैमीन का पता लगाने के लिए प्रयुक्त अधिकांश तकनीकों में μM अनुसंधान सीमाएं होती हैं। जर्नल एसीएस एैपल बायो मेटर में प्रकाशित इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने एन- नाइट्रोसैमीन के संवेदनशील और चयनात्मक अनुसंधान के लिए कार्बन डौट्स के सतह पर स्थिर किए गए डीएनए का उपयोग करने के जरिये एक इलेक्टोकैमिकल सेंसिंग प्लेटफार्म का निर्माण किया है। एनडीएमए एवं एनडीईए के लिए क्रमशः 9.9×10−9 M और 9.6×10−9 M अन्वेषण सीमा निर्धारित की गई।

इलेक्टोकैमिकल बायोसेंसर प्लेटफार्म का विकास डीएनए को बदलने के लिए एनडीएमए एवं एनडीईए की क्षमता का उपयोग करने के द्वारा किया गया। एक कार्बन आधारित नैनोमैटेरियल, कार्बन डौट्स (सीडीएस) का उपयोग किया गया जो एक जैवसंगत तथा पर्यावरण के लिए हितैषी मैटेरियल के रूप में पहले से ही स्थापित है। प्राकृतिक रूप से व्युत्पन्न चितोसन ( श्रृम्प, लोबस्टर एवं क्रैब के शेल से प्राप्त प्राकृतिक बायोपोलीमर) एक पर्यावरण के लिए अनुकूल टिकाऊ मैटेरियल है जिसका उपयोग सीडी को संश्लेषित करने के लिए किया गया।

चूंकि यह एक इलेक्टोकैमिकल सेंसर है, इलेक्ट्रोड का विकास कार्बन डौट्स (कार्बन नैनोपार्टिकल्स) को डिपोजिट करने के द्वारा और फिर उन पर बैक्टेरियल डीएनए को स्थिर करने के जरिये किया गया। इस इलेक्ट्रोड प्रणाली का उपयोग वर्तमान पीक के मापन के लिए किया गया। एनडीएमए एवं एनडीईए दोनों ही इलेक्ट्रोड में उपस्थित डीएनए की रसायनिक संरचना को बदल देते हैं जिससे यह अधिक संवाही हो जाता है जिसका परिणाम अंततोगत्वा सवंर्द्धित वर्तमान पीक के रूप में आता है।

संरचनागत रूप से समान कुछ ऐसे ही रसायनिक यौगिकों को यह जांच करने के लिए जोड़ा गया कि क्या वे प्रणाली में हस्तक्षेप कर सकते हैं। लेकिन ये रसायन डीएन क्रम को नहीं बदल सकते, इसलिए वे प्रणाली को प्रभावित नहीं करते।

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